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सावधान! ये दवाइयां आपकी किडनी खराब कर देती हैं

किसी भी चीज़ के लिए दवाई लेने जा रहे हैं तो डॉक्टर को अपनी कंडीशन ज़रूर बताएं.

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कोई भी हर्बल सप्लीमेंट लेने से पहले देखना चाहिए कि वो हानिकारक न हो किडनी के लिए
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

अमित 45 साल के हैं. कन्नौज के रहने वाले हैं. उन्हें बहुत सालों से आर्थराइटिस की दिक्कत है. इस कारण उन्हें जोड़ों और हड्डियों में काफ़ी दर्द रहता है. इस दर्द से निपटने के लिए वो कई सालों से दवाइयां खा रहे हैं. अमित बताते हैं कि इतने सालों में उन्होंने कई बार बिना डॉक्टर से सलाह-मशवरा किए अपना डोज़ बढ़ाया है. ज़रा भी दर्द होने पर वो पेन किलर ले लेते थे. अब इसका नतीजा ये हुआ है कि उनकी किडनियों पर असर पड़ गया है. इसके लक्षण दिखने लगभग 2 साल पहले शुरू हुए. उनको बहुत ज़्यादा थकान महसूस होती, चेहरे और पैरों पर बहुत सूजन रहती, पेशाब नहीं आता था. आता भी तो वो बहुत गाढ़े पीले रंग का होता.
जब अमित ने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला उनमें नेफ्रोटॉक्सिसिटी की शुरुआत हो चुकी है. यानी उनकी किडनियां खराब होना शुरू हो चुकी हैं. इसका बड़ा कारण था कुछ दवाइयां जो अमित बहुत सालों से ले रहे थे. फ़िलहाल उनका इलाज चल रहा और साथ में डायलिसिस भी. वो चाहते हैं हम नेफ्रोटॉक्सिसिटी पर एक एपिसोड बनाएं. ये क्या होता है, क्यों होता है, किन दवाइयों को खाने से किडनी खराब हो सकती है, डॉक्टर से पूछकर लोगों को बताएं.
अब दर्द होने पर पेन किलर खाना बहुत ही आम बात है. हम सब ही ऐसा करते हैं. पर बहुत सारे लोग ज़रूरत से ज़्यादा पेन किलर खाते हैं. या कुछ ऐसी दवाइयां खाते हैं जो उनकी किडनियों को हमेशा के लिए खराब कर सकती हैं, नेफ्रोटॉक्सिसिटी कर सकती है. तो सबसे पहले ये जान लीजिए नेफ्रोटॉक्सिसिटी क्या है. नेफ्रोटॉक्सिसिटी क्या है? ये हमें बताया डॉक्टर अनुराग कुमार ने.
Dr. Anurag Kumar डॉक्टर अनुराग कुमार, सुपर स्पेशलिस्ट, यूरोलॉजी, एस्टर ग्रुप ऑफ़ हॉस्पिटल्स, दुबई


-किडनियों का काम होता है खून को साफ़ करना.
-कुछ ऐसे हार्मोन्स और एंजाइम बनाना जो सेहत के लिए बहुत ज़रूरी होते हैं.
-किडनियों के अंदर छोटी-छोटी कोशिकाएं होती हैं जो किडनी का सारा काम करती हैं.
-इन कोशिकाओं को नेफ्रॉन्स बोलते हैं.
-अगर ये कोशिकाएं खराब होने लगें किसी दवाई या पदार्थ के सेवन से.
-तो इस कंडीशन को नेफ्रोटॉक्सिसिटी कहा जाता है. कारण -नेफ्रोटॉक्सिसिटी के लिए कई दवाइयां ज़िम्मेदार हैं.
-जैसे दर्द की दवाइयां यानी पेन किलर.
-अक्सर आर्थराइटिस के मरीज़ या जिन लोगों को दर्द रहता है वो लोग इन दवाइयों का दुरुपयोग करते हैं.
-जिसकी वजह से उनकी किडनियां खराब होने लगती हैं.
-नेफ्रोटॉक्सिसिटी होने लगती है.
-कुछ एंटीबायोटिक होती हैं जैसे अमीनोग्लाइकोसाइड्स, पैरासिलीन, सिफालोस्पोरिन.
-ये भी किडनी के लिए हानिकारक होती हैं.
Adult kidneys constantly grow, remodel themselves, study finds | News Center | Stanford Medicine किडनियों का काम होता है खून को साफ़ करना


-जिन कैंसर के मरीजों की कीमोथेरेपी चल रही होती है, उनको दी जाने वाली दवाइयों से भी नेफ्रोटॉक्सिसिटी हो सकती है.
-बाजार में कुछ सप्लीमेंट्स मिलते हैं जो वज़न घटाने या गैस्ट्राइटिस से छुटकारा पाने के लिए इस्तेमाल होते हैं.
-ये हर्बल सप्लीमेंट्स होते हैं.
-इनमें अरिस्ट्रोलोकिक एसिड नाम का पदार्थ होता है.
-रूबार्ब नाम का पदार्थ होता है.
-इनसे भी नेफ्रोटॉक्सिसिटी होती है. लक्षण -माइल्ड से मॉडरेट नेफ्रोटॉक्सिसिटी में कोई भी लक्षण नहीं दिखते हैं.
-लक्षण तब आते हैं जब किडनी काफ़ी हद तक खराब हो चुकी होती है.
-थकान महसूस होती है.
-चिड़चिड़ापन रहता है.
-स्किन पर रैशेज़ हो जाते हैं.
-खुजली होती है.
-शरीर में सूजन आ जाती है.
-ख़ास तौर पर चेहरे पर सूजन आ जाती है.
-पैरों में सूजन आ जाती है.
-धीरे-धीरे पेशाब में कमी आने लगती है.
-पेशाब की मात्रा कम हो जाती है.
Kidney Diseases | Narayana Health माइल्ड से मॉडरेट नेफ्रोटॉक्सिसिटी में कोई भी लक्षण नहीं दिखते हैं


-पेशाब में प्रोटीन जाने के कारण झाग बन जाता है.
-पेशाब का रंग बदल जाता है.
-नेफ्रोटॉक्सिसिटी जब आगे बढ़ जाती है, किडनी ज़्यादा खराब हो जाती है तब हड्डियां कमज़ोर होने लगती हैं.
-अनीमिया हो सकता है.
-किडनी पूरी तरह खराब होने की वजह से शरीर के सारे सिस्टम खराब होने लगते हैं. हेल्थ रिस्क -नेफ्रोटॉक्सिसिटी पर अगर ध्यान नहीं दिया जाए तो किडनी हमेशा के लिए खराब हो जाती है.
-जिसकी वजह से पेशेंट को डायलिसिस या रीनल ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ती है. कौन लोग नेफ्रोटॉक्सिसिटी के ज़्यादा रिस्क पर हैं? -कुछ लोगों को नेफ्रोटॉक्सिसिटी होने का ज़्यादा रिस्क होता है.
-जिन लोगों की उम्र 60 साल से ज़्यादा है.
-जिनके शरीर में पानी की कमी रहती है.
-हाइपरटेंशन है.
-डायबिटीज है.
-जो लोग दवाइयां नियमित तौर पर नहीं लेते.
-जिन लोगों की बीमारियां कंट्रोल में नहीं हैं.
Know the Signs and Stages of Kidney Disease नेफ्रोटॉक्सिसिटी पर अगर ध्यान नहीं दिया जाए तो किडनी हमेशा के लिए खराब हो जाती है


-हार्ट फेलियर के मरीज़.
-लिवर फेलियर के मरीज़.
-वो मरीज़ जिनकी कोई सर्जरी हुई है जिसमें आइवी कंट्रास्ट दिया गया हो.
-ये सभी लोग नेफ्रोटॉक्सिसिटी के ज़्यादा रिस्क पर होते हैं. बचाव -जो भी लोग नेफ्रोटॉक्सिसिटी के ज़्यादा रिस्क पर हैं, उन्हें बहुत ध्यान देना चाहिए.
-दर्द की दवाइयों का सेवन कम करना चाहिए.
-किसी भी चीज़ के लिए दवाई लेने जा रहे हैं तो डॉक्टर को अपनी कंडीशन ज़रूर बताएं.
-ताकि दवाइयों को कंट्रोल रूप से दिया जा सके.
-अक्सर लोग जो दवाइयां रोज़ खाते हैं, उसका डोज़ भी कंट्रोल करना पड़ता है.
-डोज़ को घटाना पड़ता है.
-अगर कोई एंटीबायोटिक चल रही है तो किडनी के फंक्शन के अनुसार उसके डोज़ को भी घटाना पड़ता है.
-पानी पर्याप्त मात्रा में लेना चाहिए.
World Kidney Day: Drinking 8 Glasses Of Water Flushes Toxins And Other Myths About Renal Health - Facts About Kidney Health | The Economic Times जो भी लोग नेफ्रोटॉक्सिसिटी के ज़्यादा रिस्क पर हैं, उन्हें बहुत ध्यान देना चाहिए


-शुगर और ब्लड प्रेशर की दवाइयां नियमित रूप से लेनी चाहिए.
-कोई भी हर्बल सप्लीमेंट लेने से पहले देखना चाहिए कि वो हानिकारक न हो किडनी के लिए. इलाज -अगर नेफ्रोटॉक्सिसिटी हो जाती है तो उसके इलाज के लिए एक्सपर्ट को दिखाना पड़ता है.
-कुछ दवाइयां आती हैं जो शुरुआत के किडनी डैमेज को ठीक कर सकती हैं.
-या किडनी को ज़्यादा डैमेज होने से रोक सकती हैं.
-एनएसएटेल-सिस्टीन नाम की दवाई इसमें दी जाती है.
-अगर किडनी हमेशा के लिए खराब हो जाती है तो विकल्प बहुत ही कम बचते हैं.
-ऐसे लोगों को डायलिसिस की ज़रूरत पड़ती है.
-या किडनी ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ती है.
-सपोर्टिव ट्रीटमेंट में अनीमिया को ठीक करना पड़ता है.
-ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में लाना पड़ता है.
-किडनी खराब होने से जो भी सिस्टम बिगड़ रहे हैं उनका इलाज करना पड़ता है.
कुछ दवाइयां आपकी किडनी के लिए नुकसानदेह होती हैं. इनसे जितना दूर रहें उतना अच्छा है. डॉक्टर साहब ने जिन दवाइयों के नाम बताए हैं, उनकी लिस्ट बना लीजिए और इनका सेवन कम से कम करिए. साथ ही अगर आपको बताए गए लक्षण महसूस हो रहे हैं तो उन्हें इग्नोर न करें. अपने डॉक्टर से मिलें. जांच करवाएं और जो दवाइयां दिक्कत दे रही हैं, उन्हें डॉक्टर की सलाह लेकर बदलने की कोशिश करें.