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युवाओं के दिल इतनी जल्दी क्यों खराब हो रहे हैं? डॉक्टर ने असल वजह बता दी

Atrial Fibrillation में दिल की धड़कनें तेज़ होने लगती है. छाती में दर्द होता है. सांस लेने में दिक्कत शुरू हो जाती है. सिर्फ यही नहीं, जो पूरे शरीर में खून का फ्लो है, वो भी बिगड़ जाता है.

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एट्रियल फ़िब्रिलेशन के मामले पहले सिर्फ बुज़ुर्गों में ही देखे जाते थे

हमारा दिल जितना कॉम्प्लैक्स, उतने ही काम का. आपको पता है दिल के चार चैंबर होते हैं? माने दिल अगर एक घर है तो, इसके चार कमरे हैं. दो ऊपर और दो नीचे. जो ऊपर वाले चैंबर हैं. इन्हें एट्रिया (Atria in heart) कहते हैं. और, नीचे वाले चैंबर्स को वेंट्रिकल (ventricles of heart). इन दोनों एट्रिया और दोनों वेंट्रिकल्स में बड़ी गहरी दोस्ती होती है. किसी अच्छी टीम की तरह हमेशा मिलकर काम करते हैं ये चारों.

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दिल के चार चैंबर होते हैं (सांकेतिक तस्वीर)

ऊपर एट्रिया में शरीर के अलग-अलग हिस्सों से खून आता है. वो साफ होता है. फिर नीचे वेंट्रिकल्स से होते हुए ये शुद्ध खून शरीर के अलग-अलग अंगों में पहुंचा दिया जाता है. लेकिन, कई बार एट्रिया और वेंट्रिकल्स में मिसअंडरस्टैंडिंग हो जाती है. इनका जो परफेक्ट कॉम्बिनेशन है, वो गड़बड़ा जाता है. इस गड़बड़ी को मेडिकल भाषा में एट्रियल फ़िब्रिलेशन (atrial fibrillation) कहते हैं.

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एट्रियल फ़िब्रिलेशन  (सांकेतिक तस्वीर)

इसमें दिल की धड़कनें तेज़ होने लगती हैं. छाती में दर्द होता है. दबाव महसूस होता है. सांस लेने में दिक्कत शुरू हो जाती है. सिर्फ यही नहीं, जो पूरे शरीर में खून का फ्लो है, वो भी बिगड़ जाता है. इससे खून का थक्का बनने का रिस्क बढ़ जाता है. खून का थक्का बनाना, माने हार्ट फेल (heart failure) और स्ट्रोक (stroke) का सीधा खतरा. सबसे बड़ी बात. आजकल युवाओं में एट्रियल फ़िब्रिलेशन के बहुत सारे मामले सामने आ रहे हैं. और, ये युवाओं में हार्ट अटैक की एक बड़ी वजह है.

ऐसे में आज डॉक्टर से जानेंगे कि एट्रियल फ़िब्रिलेशन होता क्या है? युवाओं में इसके मामले क्यों बढ़ रहे हैं? इसके लक्षण क्या हैं? और, एट्रियल फ़िब्रिलेशन से बचाव और इलाज कैसे किया जाए?

एट्रियल फ़िब्रिलेशन क्या है?

ये हमें बताया डॉक्टर ब्रजेश कुमार मिश्रा ने. 

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डॉ. ब्रजेश कुमार मिश्रा, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, मणिपाल हॉस्पिटल, गुरुग्राम

एट्रियल फ़िब्रिलेशन दिल की धड़कनों का अनियमित हो जाना है. इसमें दिल का ऊपरी चैंबर 400 से 600 बार प्रति मिनट की दर से सिकुड़ता है. इससे हमारा पल्स रेट बहुत तेज़ हो जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत सारे इलेक्ट्रिकल सिग्नल दोबारा ऊपरी चैंबर में जा रहे होते हैं. इस वजह से दिल तेज़ी से धड़कता है.

आजकल एट्रियल फ़िब्रिलेशन बीमारी युवाओं को क्यों हो रही है?

- युवाओं में एट्रियल फ़िब्रिलेशन होने का सबसे आम कारण तनाव है.

- इसके अलावा मोटापा होना.

- ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया होना.

- हाइपरटेंशन यानी हाई बीपी.

- डायबिटीज़.

- अत्यधिक शराब पीना.

- कैफीन वाली चीज़ें लेना.

- ड्रग्स की लत.

- कार्डियोमायोपैथी होना, जो ये दिल की मांसपेशियों से जुड़ी बीमारी है.

- कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ होना.

- थायरॉयड डिसऑर्डर्स होना.

- पेरिकार्डाइटिस होना.

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एट्रियल फ़िब्रिलेशन में सीने में तेज़ दर्द होता है

एट्रियल फ़िब्रिलेशन के लक्षण

- दिल की धड़कन का तेज़ और अनियमित हो जाना.

- ब्लैकआउट हो जाना.

- पल्स रेट हाई होना.

- सीने में दर्द होना.

- अगर एट्रियल फ़िब्रिलेशन लंबे समय तक रहे तो ये हार्ट की पंपिग को दबा सकता है. यानी दिल की खून को ठीक तरह पंप करने की क्षमता कम हो जाती है.

- इस वजह से सांस लेने में दिक्कत हो सकती है.

- सांस फूल सकती है.

- अगर दिल के तेज़ धड़कने के साथ बाकी लक्षण महसूस हो रहे हैं तो आपको एट्रियल फ़िब्रिलेशन हो सकता है.

एट्रियल फ़िब्रिलेशन से बचाव और इलाज

इससे बचने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं. रोज़ टहलें. एक्सरसाइज़ करें. योग-प्राणायाम करें. तनाव न लें. नशे से दूर रहें. ये सारी चीज़ें करके आप एट्रियल फ़िब्रिलेशन से बच सकते हैं. हालांकि अगर फिर भी आपको एट्रियल फ़िब्रिलेशन हो जाता है तो इसके उपचार के लिए कुछ दवाइयां दी जाती हैं. कभी-कभी ये जेनेटिक कारणों से भी होता है. अगर परिवार में किसी को एट्रियल फ़िब्रिलेशन है तो हो सकता है बिना कारण ये आपको भी हो जाए. अगर बिना रिस्क फैक्टर ये किसी व्यक्ति को है तो इसे लोन एट्रियल फ़िब्रिलेशन (Lone atrial fibrillation) कहते हैं. ऐसे में जांच कराना सबसे ज़रूरी है. 

मरीज़ को बीटा ब्लॉकर्स, कॉर्डारोन और दूसरी दवाइयां दी जाती हैं. कई बार मरीज़ में स्ट्रोक या पैरालिसिस की आशंका भी होती है. इसके लिए एक स्कोरिंग सिस्टम है जिससे पता चलता है कि एट्रियल फ़िब्रिलेशन के मरीज़ को स्ट्रोक आने का कितना चांस है. अगर किसी पुरुष का CHA2DS2-VASc स्कोर 2 से ज़्यादा है और महिलाओं में 3 या उससे ज़्यादा है तो एंटीकोगुलेंट दवाइयां देकर मरीज़ को स्ट्रोक और पैरालिसिस से बचाया जाता है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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