आपने टाइप 1 डायबिटीज के बारे में सुना होगा. टाइप 2 डायबिटीज के बारे में सुना होगा. पर क्या आपने 1.5 डायबिटीज के बारे में सुना है? इसको LADA भी कहते हैं. इस तरह की डायबिटीज आजकल बहुत आम है. ख़ासतौर पर 20-30 साल के लोगों में. डॉक्टर्स से जानते हैं टाइप 1.5 डायबिटीज या LADA आखिर क्या है. ये टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज से कैसे अलग हैं? ये किन लोगों को हो सकती है और इसका इलाज क्या है.
डायबिटीज 1 और 2 तो सुने थे, ये 'डायबिटीज 1.5' क्या है जो युवाओं में फैल रहा?
इस डायबिटीज का एक और नाम है- LADA.

ये हमें बताया डॉक्टर अशोक कुमार झिंगन ने.

डायबिटीज दो तरह की होती है. टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज. इन दोनों के बीच एक और डायबिटीज होती है. इसको कहते हैं LADA यानी लेटेंट ऑटोइम्यून डायबिटीज इन एडल्ट्स. ये एक तरह से टाइप 1 डायबिटीज ही है. इसमें इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो जाता है. जहां से इंसुलिन बनता है, उन सेल्स को शरीर के ही एंटीबॉडी खत्म कर देते हैं. इस वजह से इंसुलिन बनना बंद हो जाता है. इंसुलिन के बंद होने से ब्लड शुगर बढ़ जाता है. उसके कारण डायबिटीज के लक्षण आते हैं. जैसे बार-बार पेशाब आना, ज़्यादा प्यास लगना, वज़न कम होना, चिड़चिड़ापन, पेशाब और बाकी शरीर में इन्फेक्शन होना.
टाइप 1 डायबिटीज बच्चों को होता है. ये 3-4 साल की उम्र में शुरू हो जाता है. बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज का मुख्य कारण कोई केमिकल, वातावरण या टॉक्सिन हो सकता है. ये टॉक्सिन दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स में हो सकते हैं. वायरल इन्फेक्शन भी एक कारण है.
एडल्ट्स को होने वाला डायबिटीज 22-23 साल में या उसके बाद भी हो सकता है. उनमें एकाएक वज़न कम होना शुरू हो जाता है. शुगर लेवल बढ़ने लगता है. दवाइयां देने के बावजूद शुगर कंट्रोल में नहीं आता. जांच करने से पता चलता है उनको LADA डायबिटीज है. टाइप 1 डायबिटीज में ऑटो एंटीबॉडी बन जाते हैं. इनकी वजह से इंसुलिन बनना बंद हो जाता है. इंसुलिन बनना एकदम बंद हो जाए तो इंजेक्शन की ज़रुरत पड़ती है. ज़िंदगीभर इंसुलिन के इंजेक्शन की ज़रुरत पड़ती है. उसके साथ नॉर्मल ज़िंदगी जी सकते हैं.

टाइप 2 डायबिटीज में आमतौर पर फैमिली हिस्ट्री होती है. ये देखा गया है कि 70-90 पर्सेंट लोगों को 30-40 साल के बाद टाइप 2 डायबिटीज हो जाता है. इन लोगों को मोटापे की भी समस्या होती है. ब्लड प्रेशर भी रहता है. कोलेस्ट्रोल भी ज़्यादा रहता है. ऐसे लोगों को डाइट, एक्सरसाइज और दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है. फिर भी कंट्रोल न हो तो बाद में इंसुलिन की ज़रुरत पड़ती है. टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज में बहुत फ़र्क है. 90 पर्सेंट रोगी टाइप 2 डायबिटीज के होते हैं. 5-10 पर्सेंट मरीज़ टाइप 1 के होते हैं.
LADA इनके बीच की स्टेज है. ये उन लोगों में देखी जाती है जो 30-40 साल के होते हैं. उसके बाद भी हो सकता है. पर इसको टाइप 2 डायबिटीज नहीं समझना चाहिए. दोनों का इलाज अलग होता है. LADA टाइप 1 का ही एक हिस्सा है. इन लोगों में अक्सर ये देखा जाता है कि अगर ये इंसुलिन लेते रहें तो इनका जीवन एकदम नॉर्मल रहता है. बहुत सारे ऐसे टेस्ट भी होते हैं जिनसे ये पता चल जाता है कि शरीर में ऐसे एंटीबॉडी बन रहे हैं. टेस्ट से इंसुलिन बनने से पहले की स्थिति भी पता चल जाती है. LADA आजकल काफ़ी आम है. ये बच्चों के बजाय एडल्ट्स में दिखता है. लेकिन ये टाइप 1 डायबिटीज का ही एक हिस्सा है.
टाइप 1.5 डायबिटीज क्या है, ये तो आप समझ ही गए होंगे. आजकल यंग उम्र में कई लोगों को डायबिटीज की समस्या हो रही है. आप डॉक्टर से जांच कर के पता लगवा सकते हैं कि आपको डायबिटीज है या नहीं, अगर है तो कौन सा. उसी के हिसाब से इलाज किया जाता है.
(यहां बताई गईं बातें, इलाज के तरीके और जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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