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आंखें तिरछी क्यों हो जाती हैं?

इसमें जिस आंख का नंबर ज़्यादा होता है उस आंख से कम दिखाई देता है.

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अगर चश्मे का नंबर है तो समय-समय पार आंख चेक करवाएं

(यहां बताई गईं बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

जितेंदर पटना के रहने वाले हैं. उनका एक बेटा है जिसकी उम्र चार साल है. जितेंदर का कहना है कि उसकी एक आंख की पुतली सीधी नहीं है. अंदर की तरफ़ है. साथ ही उसको उस आंख से कम भी दिखाई देता है. जितेंदर जानना चाहते हैं कि वो क्या करें, जिससे उनके बेटे की आंख ठीक हो जाए. डॉक्टर्स का कहना है कि उनके बेटे को जो समस्या है उसे आम भाषा में लेज़ी आई कहते हैं. जितेंदर को डर है कि कहीं उनके बेटे की आंख हमेशा के लिए तो ऐसी नहीं हो जाएगी. अब लेज़ी आई बच्चों को होने वाली एक आम समस्या है.

'द हिंदू' में छपी ख़बर के मुताबिक, लेज़ी आई 4 प्रतिशत बच्चों को प्रभावित करती है. देश की आबादी देखी जाए तो 4 प्रतिशत एक बहुत बड़ा नंबर है.  ऐसे में ज़रूरी है लोगों को इसके बारे में सही जानकारी हो. तो सबसे पहले समझते हैं लेज़ी आई क्या होती और इसका इलाज क्या है.

लेज़ी आई क्या और क्यों होती हैं?

ये हमें बताया डॉक्टर कमल बी कपूर ने.

Dr. Kamal B Kapur - Sharp Sight Eye Hospitals | Best Eye Centre Near Me |  NABH and CGHS Approved
डॉक्टर कमल बी कपूर, मेडिकल डायरेक्टर एंड को-फाउंडर, शार्प साइट आई हॉस्पिटल्स

-लेज़ी आई मतलब आंख में कोई विकार नहीं है

-पर उस आंख से ब्रेन कम देख पाता है

-ऐसा तब होता है जब बचपन से ही किसी की आंख कमज़ोर हो

-ख़ासकर दोनों आंखों के चश्मे का नंबर अलग हो

-यानी एक आंख के चश्मे का नंबर ज़्यादा हो और दूसरी आंख के चश्मे का नंबर कम हो

-साथ ही बचपन में चश्मा न पहना जाए

-इसमें जिस आंख का नंबर ज़्यादा होता है उस आंख से कम दिखाई देता है

-ब्रेन को आदत पड़ जाती है उस आंख से कम देखने की

-ब्रेन सारा काम दूसरी आंख से करना शुरू कर देता है

-इसकी वजह से पेशेंट को लेज़ी आई हो जाती है

-यानी बड़े होने के बाद इस आंख से इंसान देख भी ले तो भी ब्रेन उसको पूरी तरह से नहीं समझ पाता

-जिस तरह बच्चे से तुतलाकर बात करने पर बच्चा कभी-कभी उसकी आदत डाल लेता है

-क्योंकि उसने वही सुना होता है और उसी को कॉपी कर के वो बोलने की कोशिश करता है, ठीक वैसे ही लेज़ी आई में होता है  

-अगर बच्चों में आंखों की कमज़ोरी जल्दी उम्र में पकड़ी जाए और उनको चश्मा लग जाए तो लेज़ी आई की संभावना कम होती है

-पर जो बच्चे 7,8,9 साल की उम्र पार कर चुके होते हैं ऐसे में ब्रेन उस आंख से कम देखने की आदत डाल लेता है

Can LASIK Fix a Lazy Eye (Amblyopia)? What You Need to Know | MyVision.org
अगर डॉक्टर ने बताया है कि चश्मे का नंबर है और चश्मा लगाना चाहिए

-इसके कारण आंख लेज़ी हो जाती है

-बड़ी उम्र में पूरे चश्मे का नंबर देने के बवाजूद आंख पूरी तरह से नहीं देख पाती

इलाज

-बच्चों की आंखों का समय पर चेकअप होना चाहिए

-अगर डॉक्टर ने बताया है कि चश्मे का नंबर है और चश्मा लगाना चाहिए

-तो छोटे बच्चों को ज़रूर चश्मा लगाना चाहिए

-ऐसे बच्चों में आंखों का भैंगापन होने की संभावना होती है

-इलाज के लिए सही चश्मे का नंबर दिया जाता है

-आंखों की कसरत की जाती है

-अच्छी आंख को बंदकर के, कमज़ोर आंख पर जोर डाला जाता है

-ये सब चश्मा लगाकर किया जाता है

-ये सब डॉक्टर की देखरेख में होता है

-अपने आप ऐसा करने से दूसरी आंख की रोशनी भी कमज़ोर हो सकती है, इसलिए ऐसा डॉक्टर की सलाह से ही करें

-कितने समय के लिए करना है, ये डॉक्टर बताते हैं

-6-8 घंटे अच्छी आंख को बंद कर के, कमज़ोर आंख पर जोर दिया जाए

-ऐसे वो वीडियो गेम खेल सकते हैं, कार्टून देख सकते हैं

-जब बच्चे के इंटरेस्ट की चीज़ दिखाई जाए तो वो ज़्यादा कोशिश करता है

-इसलिए बच्चों की आंखें टेस्ट करवाएं

-अगर चश्मे का नंबर है तो समय-समय पार आंख चेक करवाएं

जैसा डॉक्टर साहब ने बताया, ज़रूरी है कि मां-बाप बच्चों की आंखें टेस्ट करवाते रहें ताकि ये प्रॉब्लम समय रहते पकड़ में आ जाए. 

 

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