- बाप के कपड़े उतर गए, बेटी को पहनाने में. बेटी ने अपने कपड़े उतार दिए बॉय फ्रेंड को रिझाने में
- बाप ने कतरा-कतरा करके कमाई थी इज्जत, बेटी वैलेंटाइंस डे पर एक चॉकलेट में बेच आई.
- दो तस्वीरों का एक कोलाज शेयर किया गया. एक में कुछ कपल्स एक दूसरे के आलिंगन में दिख रहे थे, वहीं दूसरे में कुछ भ्रूण. साथ में लिखा, 'हमारे देश के कुछ युवक-युवतियां अपने माता-पिता के संस्कार और देश की संस्कृति की धज्जियां उड़ाते इस तरह मनाएंगे वैलेंटाइंस डे और उसका तोहफा 8-9 महीने बाद नाली, गटर में इस तरह छोड़ जाएंगे.'

- मीम्स शेयर किए गए. एक में लिखा था- वैलेंटाइंस डे के टाइम ओयो रूम्स और मेडिकल स्टोर्स- पैसा ही पैसा होगा.
- एक मीम चलता है, जिसमें 14 फरवरी को वैलेंटाइन्स डे और 9 महीने बाद 14 नवंबर को बाल दिवस बताया जाता है.
ऐसे लोगों से मेरा जेन्यूइन सवाल है कि भैया आप लोगों ने देश के युवाओं को क्या समझकर रखा है? आपको क्या लगता है कि इस दिन कपल्स जब मिलते हैं तो आपस में क्या बात करते होंगे? हे आई लव यू, हे आई लव यू टू. चलो ओयो चलते हैं? क्या वो इतने बेवकूफ हैं कि उन्हें सेक्स करना होगा तो वो केवल 14 फरवरी को करेंगे? साल में 364 दिन और भी होते हैं. ब्रो, वैलेंटाइंस डे इज़ नॉट इक्वल टू सेक्स.
इन लोगों ने एक अलग ही सिस्टम शुरू किया है. किसी चीज़ को खत्म करना है तो उसी दिन, उसी तारीख पर कोई और दिन मनाना शुरू कर दो. 14 फरवरी को वैलेंटाइंस डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाओ, अमर जवान दिवस मनाओ. क्रिसमस के दिन तुलसी पूजन दिवस मनाओ. बीते दिनों कानपुर से एक फोटो आई, जिसमें दिख रहा है कि शहर में आसाराम के पोस्टर लगे हुए हैं. नाबालिग लड़कियों से बलात्कार का दोषी आसाराम. पोस्टर में 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने की अपील की गई है. क्या वैलेंटाइंस डे के विरोध में हमने अपनी आंखें ऐसे बंद कर ली हैं कि एक रेपिस्ट को फॉलो करने में हमें कोई बुराई नहीं दिखती?

और वैलेंटाइंस डे हो और बजरंग दल-शिवसेना की बात न हो ऐसा हो सकता है? ग्रेजुएशन के दिनों में मेरे शहर में वैलेंटाइंस डे के दिन एक अलग ही तरह का कर्फ्यू लग जाता था. बाकी दिन तो दोस्त अपनी बाइक पर लिफ्ट दे देते थे लेकिन उस दिन रिस्क कोई नहीं लेता था. शहर के अलग-अलग चौराहों पर बजरंग दल या शिवसेना वाले होते थे जिस भी बाइक पर लड़का और लड़की बैठे होते उन्हें रोक लेते थे और खबरें बताती हैं कि हालात अब भी बदले नहीं हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 13 फरवरी को शिवसेना वालों ने लाठी-पूजा की. दिख गए बाबू-सोना तो तोड़ देंगे शरीर का कोना-कोना जैसी बातें कहीं, जाने लोकलाज या गठबंधन का Cause था कि शिवसेना अब इन लोगों से दूरी दिखाने लगी है. इसी मामले में उनके नेता कहते मिले ये हमारे लोग नहीं हैं. लेकिन बातों के पीछे की बात क्या है, वो उद्धव ठाकरे या बाल ठाकरे के वैलेंटाइन्स डे पर दिए पुराने बयानों में दिख जाती है. ऐसे लोगों ने वैलेंटाइंस डे के दिन साथ दिखने वाले कपल्स की शादी कराने तक की बात भी कही है. बजरंग दल वालों ने 12 फरवरी को हैदराबाद में ग्रीटिंग कार्ड्स जला दिए, संत वैलेंटाइन का पुतला भी जलाया. दलील वही पाश्चात्य संस्कृति वाली.
ये वो लोग हैं जिन्हें दो लोगों का प्रेम में होना अखरता है. दो लोगों के अपनी मर्ज़ी से एक-दूसरे के साथ होने से इन्हें तकलीफ होती है. ये लोग भारतीय संस्कृति बचाने की आड़ में गुंडागर्दी करते हैं. मारपीट, जबरन शादी करवाते हैं. कपल्स की परेड निकालते हैं? क्यों और किस अधिकार से ये लोग ऐसी हरकतें करते हैं?
सबको चाहिए कि फिल्म में शाहरुख खान को हिरोइन मिले, सबको दुख होता है जब अंजली का पहला प्यार अधूरा रह जाता है. सबको नारायण शंकर पर गुस्सा आता है जब उसकी जिद की वजह से मेघा और राज मिल नहीं पाते. लेकिन अपने आस-पास घटने वाली प्रेम कहानी लोगों गले नहीं उतरती. उसे सेक्स में समेटकर संस्कृति की दुहाई देने लगते हैं. लड़कियों पर संस्कार के नाम पर अलग तरह का प्रेशर क्रिएट करने की कोशिश की जाती है ताकि वो प्यार के चक्करों से दूर रहें.
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एक अडल्ट लड़की और लड़का ये तय कर सकते हैं कि वो अपने लिए क्या चाहते हैं. किसी कपल के 14 फरवरी बस एक तारीख हो सकती है, किसी कपल के लिए ये एक खास दिन हो सकता है अपने प्रेम के इज़हार का. जिस तरह नया साल, जन्मदिन, फ्रेंडशिप डे कैसे मनाना है ये लोगों की इंडिविजुअल चॉइस होती है वैसे ही वैलेंटाइंस डे को भी रहने दीजिए.
विरोध में कुछ लोग तर्क देते हैं कि ये एक विदेशी त्योहार है, जिसे कुछ कंपनियों ने अपना सामान बेचने के लिए भारत में प्रचारित किया. लेकिन रक्षा बंधन से लेकर दीवाली तक, सारे ही त्योहारों पर कंपनियों की मार्केटिंग का असर है तो क्या उन त्योहारों के खिलाफ भी आप इसी तरह दुष्प्रचार करेंगे?
असली लड़ाई खुद को रेलेवेंट बनाये रखने की है. डर को पोसते रहने की है. एक जोक चलता है, जहां भगवान नहीं पहुंच पाते, वहां मां-बाप को भेज देते हैं और जहां मां-बाप नहीं पहुंच पाते वहां बजरंग दल पहुंच जाता है. ये तमाम खौफ, सड़कों और पार्कों की नौटंकियां, मां-बाप के अपने बच्चों पर भरोसा न करने का बाईप्रोडक्ट हैं. बाज़ार अगर वैलेन्टाइंस डे के लिए काम करता है, तो बाज़ार ही वैलेन्टाइंस डे के विरोध का भी स्कोप तैयार करता है. जवान होते बच्चे कहीं अपने फैसले खुद न लेने लगें, मां-बाप के कथित कंट्रोल से छिटक न जाएं और सबसे बड़ा डर कहीं प्यार न कर बैठे. इलाज़ ये निकाला गया कि प्रेम को सेक्स बता दो, हर डरे हुए घरवाले की मूक सहमति मिल जाएगी. बेहतर इलाज ये है कि मां-बाप बच्चों पर भरोसा रखें, और ये दुराग्रह मन से निकाल ही दें कि वो बच्चों को जबरिया प्रेम, सेक्स या अपने फैसले करने से रोक सकेंगे. दुनिया की रीत ऐसी ही है. दबाने पर पलटवार करती है. यकीन न हो तो खुद को देख लें.