उनकी मौत की ख़बर आने पर एक्ट्रेस शबाना आज़मी, डायरेक्टर अरिंदम सिल ने शोक जताया.
उषा का जन्म जोधपुर, राजस्थान में हुआ. परिवार वाले मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे. बचपन में भरतनाट्यम सीखती थीं. बाद में पढ़ाई के लिए कोलकाता शिफ्ट हो गईं. श्री शिक्षायतन कॉलेज से पढ़ाई की, हिंदी साहित्य में. उसके बाद पढ़ाना शुरू कर दिया. ये बात है साल 1970 की. पढ़ाने के साथ-साथ उषा ने एक्टिंग भी शुरू की. संगीत कला मंदिर नाम की संस्था के साथ. गुड़िया घर नाम के प्ले में उनकी एक्टिंग की बहुत तारीफ हुई थी. पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया. इसके छह साल बाद उन्होंने रंगकर्मी नाम की संस्था शुरू की.

पश्चिम बंगाल और हिंदी थिएटर
पश्चिम बंगाल को संगीत और कला के क्षेत्र में काफी रिच माना जाता है. यहां हिंदी थिएटर बीसवीं सदी की शुरुआत से ही मौजूद रहा. इतना, कि हिंदी भाषी क्षेत्रों की तुलना में यहां हिंदी नाटक ज़्यादा समय तक चलते हैं. ज्यादा शोज़ करते हैं. रंगकर्मी से पहले यहां अनामिका, अदाकार और पदातिक जैसे थिएटर ग्रुप एक्टिव थे, जो हिंदी में नाटक तैयार करते और दिखाते थे. इस लोकप्रियता को बनाए रखने और इसे और भी थोड़ा आगे ले जाने में उषा गांगुली की बहुत बड़ी भूमिका रही. 1980 से उन्होंने निर्देशन शुरू किया. उससे पहले बाहर के डायरेक्टर रंगकर्मी थिएटर के नाटक डायरेक्ट किया करते थे. लेकिन उषा गांगुली के स्टाइल और उनकी बड़ी कास्ट ने उनके थिएटर की धूम मचा दी. तृप्ति मित्रा और मृणाल सेन जैसे बड़े नामों से डायरेक्शन सीखने वाली उषा गांगुली अब खुद अपने नाटकों के साथ जगह बना रही थीं.

उनके कुछ बेहद पॉपुलर नाटक रहे महाभोज, लोक कथा, रुदाली. रुदाली नाटक महाश्वेता देवी की इसी नाम की एक कहानी पर आधारित था. 1992 में इसके लिए उषा को बेस्ट डायरेक्टर का सम्मान भी दिया गया था. बर्तोल्त ब्रेख्त की लम्बी कहानी मदर करेज एंड हर चिल्ड्रेन पर आधारित हिम्मत माई, और स्वदेश दीपक के लिखे नाटक कोर्ट मार्शल को भी उन्होंने डायरेक्ट किया. उनके ओरिजिनल नाटकों में अंतर्यात्रा और खोज बहुत पॉपुलर हुए. 2004 में फिल्म आई थी रेनकोट, उसकी स्क्रिप्ट पर भी उन्होंने काम किया था.
अपने नाटकों के किरदारों को समझने और उन्हें बेहतर तरीके से स्टेज पर उतारने के लिए उषा तगड़ी रिसर्च करती थीं. महाश्वेता देवी की कहानी रुदाली को नाटक के रूप में ढालने के लिए उन्होंने पंजाब में ‘स्यापे’ और बिहार में ‘रुदाली’ की परम्पराओं के बारे में जानकारी इकठ्ठा की. रुदालियां वो होती थीं, जो किसी के मरने पर शोक जताने जाया करती थीं और बुक्का फाड़-फाड़ कर रोती थीं.

देश से विदेश तक
रंगकर्मी ग्रुप हिंदी में भारत के सबसे पॉपुलर और एक्टिव नाट्य समूहों में से एक रहा. जर्मनी, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अमेरिका तक में शो किए. लेकिन जब उषा गांगुली का नाटक सफल हुआ था, तब लोगों ने उन्हें सीरियसली नहीं लिया था. 2006 के पृथ्वी थिएटर फेस्टिवल के दौरान एक इंटरव्यू में उन्होंने अतुल तिवारी को बताया,
‘जब आप कैरम खेल रहे होते हैं और रानी वाली गोटी पिल जाती है, तो लोग कहते हैं न कि तुक्के से पिली है. महाभोज के मामले में भी यही हुआ था. लोगों ने कहा कि स्क्रिप्ट अच्छी थी, इसलिए प्रोडक्शन सफ़ल हुआ.’उषा गांगुली को 1998 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान दिया गया. वो कई अकादमियों की एग्जीक्यूटिव कमिटी की मेंबर भी रहीं. जब तक पढ़ाती रहीं, तब तक साथ-साथ थिएटर करती रहीं. रिटायरमेंट के बाद पूरी तरह से थिएटर में ही रच-बस गई थीं.
उनका अंतिम संस्कार कोलकाता के केवड़ातला क्रिमेटोरियम में किया गया. उनके परिवार वाले और रंगकर्मी थिएटर के सदस्य वहां मौजूद थे.
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