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भारत को उसकी पहली महिला राष्ट्रपति 1977 में मिल जाती, अगर ये महिला हां कर देतीं

लेकिन रुक्मिणी देवी ने प्रस्ताव ठुकरा दिया था.

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भरतनाट्यम की अलग-अलग मुद्राओं में रुक्मिणी देवी. इन्होने भरतनाट्यम की शैली को श्रृंगार से भक्ति की तरफ बदला. (तस्वीर: विकिमीडिया)
चेन्नई में कलाक्षेत्र नाम का एक स्कूल है. यहां पर भरतनाट्यम सिखाया जाता है.  दूर दूर से बच्चे आते हैं यहां सीखने. इस स्कूल को शुरू करने वाली थीं रुक्मिणी देवी. जिन्होंने भरतनाट्यम को आम महिलाओं तक पहुंचाया. कौन थीं रुक्मिणी देवी?
आज़ादी से पहले के मद्रास में नीलकंठ शास्त्री और सेशाम्मल के घर जन्मीं. 29 फरवरी 1904 को. इनके पिता एनी बेसेंट से बहुत प्रभावित थे. थियोसोफिकल सोसाइटी के मेंबर रहे. उनकी वजह से रुक्मिणी भी उससे जुड़ीं. वहीं उनकी मुलाक़ात अपने होने वाले पति जॉर्ज एरंडेल (अरुणदले) से हुई. ब्रिटिश नागरिक थे. शादी के बाद इन्होने पूरी दुनिया घूमी. मोंटेसरी स्कूलों की शुरुआत करने वाली मारिया मोंटेसरी से भी मिलीं. रशियन बैले डांसर एना पावलोवा से उनकी मुलाकात ने उनकी ज़िन्दगी बदल दी.
पावलोवा से मुलाकात के बाद रुक्मिणी की रुचि बैले में हुई. और वो एना की टीम के एक सदस्य से बैले सीखने लगीं. तभी एना ने बातचीत में उनका ध्यान भारतीय शास्त्रीय नृत्य की तरफ दिलाया. रुक्मिणी को एहसास हुआ कि भारत के क्लासिकल नृत्य अनदेखे हो गए हैं और उनके कद्रदानों की गिनती गिरती जा रही है. इसके बाद ही उन्होंने भरतनाट्यम पर काम करना शुरू किया.
Rukmini Sahapedia 700 इनके पति  केबुलावे पर मारिया मोंटेसरी भारत आई थीं, और यहां पर मोंटेसरी स्कूलों की शुरुआत हुई. (तस्वीर: sahapedia)

पहले इसे साधिर के नाम से जाना जाता था. भरतनाट्यम की नृत्य परंपरा देवदासियों से जोड़कर देखी जाती थी. देवदासियां वो महिलाएं थीं जिनकी शादी 'भगवान से कर दी जाती थी' और ये मंदिर में ही रहकर सेवा करती थीं. ये किस्से मशहूर थे कि उनका पुजारियों द्वारा यौन शोषण किया जाता था. उनके द्वारा किया जाने वाला साधिर नृत्य थोड़ा कामुक हुआ करता था, और उसमें काफी सजावट होती थी.
रुक्मिणी देवी ने भरतनाट्यम की छवि बदली. रामायण और गीत गोविन्द के पदों पर प्रस्तुतियां तैयार कीं. 1936 में अपने पति के साथ मिलकर उन्होंने कलाक्षेत्र शुरू किया. तब से लेकर अब तक ये एक बड़ा नाम बन चुका है. आज के समय में ये एक डीम्ड यूनिवर्सिटी है.
Ruk Stamp 1987 700 1987 में भारत सरकार ने उनकी याद में डाक टिकट जारी किया था. (तस्वीर: विकिमीडिया)

1952 में राज्य सभा का जब गठन हुआ, तब उसमें शामिल होने वाले पहली महिला थीं रुक्मिणी देवी. 1977 में डॉक्टर फखरुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के बाद राष्ट्रपति का पद खाली हुआ. उस समय मोरारजी देसाई जनता दल की सरकार चला रहे थे. प्रधानमंत्री थे. उन्होंने जाकर रुक्मिणी देवी से पूछा, क्या आप प्रेसिडेंट बनना चाहेंगी? रुक्मिणी देवी ने पूछा, ‘किसकी प्रेसिडेंट’. मोरारजी देसाई ने जवाब दिया, ‘भारत की’. उन्होंने इनकार कर दिया. अगर उन्होंने हां कर दी होती, तो इतिहास रचने के साथ एक और बड़ी इंटरेस्टिंग चीज़ होती. 1980 में, जब इंदिरा गांधी दोबारा प्रधानमंत्री बनीं, तब देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, दोनों ही पदों पर महिलाएं होतीं. पर ऐसा न हुआ. पहली महिला राष्ट्रपति के लिए देश को 2007 तक का इंतज़ार करना पड़ा. जब प्रतिभा देवीसिंह पाटिल पहली महिला राष्ट्रपति बनीं.
रुक्मिणी देवी को 1956 में पद्मभूषण, 1957 में संगीत अकादमी अवॉर्ड दिया गया. 1984 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें कालिदास सम्मान दिया.
इंडिया टुडे की लिस्ट, जिसमें उन सौ लोगों के नाम थे जिहोने भारत को नया रूप देने में मदद की, उनमें से एक नाम रुक्मिणी देवी का भी था.


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