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Pink Tax की डिबेट में कहां फंसे हैं, महिलाएं तो पुरुषों के रेजर के भी पैसे दे रही हैं!

दुनिया-जहान में महिलाओं को पिंक टैक्स के नाम पर कई प्रोडक्टस पर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा पैसा देना पड़ता है. बात सिर्फ इतनी ही नहीं है क्योंकि कई बार एक जैसे पैसे देकर भी उनको कम सुविधाएं मिलती हैं. गैर बराबरी का चक्कर आम से लेकर पांच सितारा होटलों में भी साफ दिखता है.

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महिलाओं को क्यों देना पड़ता है पिंक टैक्स और रेजर टैक्स

सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, गुड्स एण्ड सर्विस टैक्स (GST), इनकम टैक्स, गिफ्ट टैक्स, कैपटल गेन टैक्स, वैल्यू एडिड टैक्स (VAT) जैसे टैक्स के नाम आपने सुने होंगे. नाम भी सुने होंगे और टैक्स का भुगतान भी किया होगा. ये सारे टैक्स की एक खास बात है. इनमें कोई जेंडर नहीं होता. क्या महिला क्या पुरुष. सब टैक्स भरते हैं. मगर एक टैक्स ऐसा भी है जो सिर्फ महिलाओं के माथे मढ़ दिया गया है. बात हो रही है पिंक टैक्स (Pink Tax: Kiran Mazumdar-Shaw) की. नाम पढ़ते ही आपके दो रिएक्शन हो सकते हैं. पहल ये क्या बला है और दूसरा अरे ये कहीं,

वो वाला टैक्स तो नहीं जिसकी बात भारत की मशहूर उद्यमी किरण मजूमदार-शॉ कर रहीं हैं. अगर आप दूसरे रिएक्शन वाले हैं तो आप सही हैं. जो आप पहले रिएक्शन वाले हैं तो भी गलती आपकी नहीं. क्योंकि इस टैक्स के बारे में आमतौर पर खुलकर बात होती नहीं. हम आज इसी पिंक टैक्स का कलर जानेंगे और साथ में ब्लैक टैक्स, रेजर टैक्स की भी बात करेंगे.

क्या है पिंक टैक्स

ये शब्द सबसे पहले साल 2015 में प्रचलन में आया जब New York City डिपार्टमेंट ने एक जैसी साइज, एक जैसी कैटेगरी, एक जैसी क्वान्टिटी वाले कई प्रोडक्टस पर स्टडी की. सेम-सेम मगर डिफरेंट वाला मामला. मतलब जैसे कोई प्रोडक्ट पुरुषों के लिए बना है और उसी का एक वर्जन महिला के लिए भी बना है तो कीमत में अंतर है. पुरुषों के उत्पाद के मुकाबले महिलाओं के उत्पाद के लिए ज्यादा कीमत वसूली जा रही. ऐसे प्रोडक्टस की लंबी लिस्ट है.

जैसे लिपबाम से लेकर रेजर तक. जहां एकदम एक जैसा दिखने वाला पुरुषों का लिपबाम 165 रुपये का है तो महिलाओं को इसके लिए 265 रुपये देना पड़ रहे हैं. एक आम सा रेजर अगर महिला इस्तेमाल करे तो उसको 80 रुपये देना होंगे तो पुरुषों को महज 70 रुपये. कीमतों में तो कई बार 50 फीसदी से ज्यादा का फर्क दिखता है. लिस्ट बहुत लंबी है. जैसे पुरुषों का डियो 70 रुपये का मिल रहा है तो महिलाओं को इसके लिए 115 रुपये चुकाना पड़ेंगे. हद तो ये है कि ये सारा फर्क ज्यादातर समय एक ही कंपनी के बनाए प्रोडक्ट में देखा जाता है. क्या ब्यूटी प्रोडक्ट क्या कपड़े. हर जगह हाल एक जैसा. इसलिए प्रोडक्ट लिस्ट को मैं यहीं खत्म करता हूं क्योंकि मेरे हिसाब से आपको अपने आसपास के बाजार या शॉपिंग मॉल में जाकर खुद देखना चाहिए.  

एक सलाह. अकेले जाना क्योंकि अगर मम्मी, दीदी, पत्नी या किसी महिला मित्र के साथ गए और उन्होंने इस अंतर को देख लिया तो शायद डांट आपको पड़ेगी. क्योंकि कंपनी तो वहां होगी नहीं. और इस अंतर का जवाब आपके पास होगा नहीं. ये हुआ पिंक टैक्स अब जरा एक और टैक्स को देखते हैं जो हमारी साथी गरिमा ने नोटिस किया है. ऐसे तो इस टैक्स का कोई नाम नहीं इसलिए हमने खुद इसका नाम रख दिया है.

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रेजर टैक्स

हमारी सिनेमा टीम की साथी गरिमा अक्सर काम के सिलसिले में एक शहर से दूसरे शहर जाती हैं. जाहिर है इसके लिए होटलों में रुकना होता है. ऐसी ही एक यात्रा के दौरान उन्होंने एक अजीब बात नोटिस की. होटल चाहे तीन सितारा हो या पांच सितारा. या कोई ठीक-ठाक सा. बाथरूम में तमाम प्रोडक्ट के साथ रेजर या फिर शेविंग किट जरूर मिलती है. मतलब पुरुषों के मतलब की चीज. लेकिन सेनेटरी पैड का कोई नामों-निशान नहीं होता. उन्होंने तो बाकायदा इसका वीडियो बनाकर अपने सोशल मीडिया हैंडल से पोस्ट भी किया है.

होटल का चार्ज एक जैसा है तो फिर रेजर का होना और सेनेटरी पैड का नहीं होना एक किस्म का टैक्स ही हुआ. वैसे आपकी जानकारी के लिए बात दें कि एक सेनेटरी पैड की कीमत रेजर के मुकाबले बहुत कम होती है. 10 रुपये के अल्ले-पल्ले. मगर 70 वाला रेजर मिलेगा 10 वाला पैड नहीं. इसको लेकर होटल वालों का जवाब भी अजीब है. उनके मुताबिक

अगर किसी महिला को पैड चाहिए तो हम उपलब्ध करा देते हैं

ये क्या बात हुई. मतलब दो बजे रात को दर्द में पहले फोन लगाओ. ये एक किस्म से एक्स्ट्रा सर्विस टैक्स जैसा है.

अरे भाई ये क्या है…

आज तो जानकर भाई लिखा क्योंकि फायदा तो भाइयों मतलब पुरुषों का हो रहा. सिर्फ प्रोडक्ट में ही नहीं बल्कि नौकरी में भी. कोई रहस्य नहीं कि महिलाओं को पुरुषों को मुकाबले कम सैलरी मिलती है. हर जगह अंतर नजर आता है यहां तक की AC के तापमान में भी. क्या हुआ चौंक गए. हमें भी इसके बारे में नहीं पता था मगर जब हमारी इनहाउस हेल्थ एक्सपर्ट सरवत ने इसके बारे में बताया तो मेरे पास कोई उत्तर नहीं था.

कहने का मतलब हर जगह झोल है रे बाबा. इतना पढ़कर शायद आप कहोगे कि इस पर कार्रवाई होनी चाहिए. नहीं हो सकती क्योंकि कीमतें तय करना, सैलरी तय करना कोई गैर कानूनी नहीं है. भले गैर कानूनी नहीं मगर अनैतिक (unethical) तो बिल्कुल है.

आखिर में एक जरूरी बात. मुद्दा कीमत नहीं बल्कि बराबरी का है. किरण मजूमदार-शॉ बायोकॉन की मालिक हैं, अरबपति हैं. हमारी साथी गरिमा और सरवत भी बढ़िया कमाती हैं. कमाना-धमाना तो छोड़ दीजिए. नहीं कमाने पर भी उनका मनी मैनेजमेंट पुरुषों के मुकाबले बेहतर होता है. ऐसे में उनको जो खरीदना होगा वो खरीद लेंगी. मगर पैसे क्यों ज्यादा देना.

 पिंक टैक्स, रेजर टैक्स और पता नहीं कौन से टैक्स. कानून नहीं तो क्या बात ही नहीं होगी. 
 

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