मां और दादी को देखकर सीखी पेंटिंग IGNCA वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुर्गाबाई ने बचपन में अपनी मां और दादी को देखकर चित्रकारी सीखी. उनकी मां और दादी, मिट्टी के घरों की दीवारों पर लाल और सफेद रंग से डिगना चित्रकारी करती थीं. इस तरह की चित्रकारी ग्रामीण इलाकों में त्योहारों या शादी-ब्याह के मौके पर की जाती है. उन्हें देखकर दुर्गाबाई ने भी डिगना चित्रकारी करना शुरू किया. 15 की उम्र में दुर्गाबाई की शादी सुभाष व्याम से हुई, सुभाष खुद लकड़ी की मूर्तियां बनाते थे.
शादी के कुछ वक्त बाद 1996 दुर्गाबाई और सुभाष गांव से भोपाल आ गए, रोज़ी-रोटी की तलाश में. यहां दुर्गाबाई ने लोगों के घरों में काम करना शुरू किया ताकि उनके घर का खर्च निकल सके.

दुर्गाबाई व्याम
दुर्गाबाई ने दैनिक भास्कर को बताया,
"मैं भोपाल में कोठियों में झाड़ू-पोछा का काम करने लगी. मैं कई घरों में लोपापोती के दौरान डिज़ाइन बनाया करती थी. कच्चे मकानों की दीवारों पर गोंड भित्ती चित्रकला बनाया करती थी... दीवारों की चित्रकारी पहले कपड़ों, फिर कैनवास पर करने लगी... मैं अपनी चित्रकला में पारंपरिक कथाओं का चित्रण करती हूं. शुरुआत में कैनवास शीट पर चित्रकारी के 150 से 200 रुपये मिलते थे. काम के आधार पर भोपाल के संग्रहालय में चित्रकारी का काम मिल गया."दुर्गाबाई बताती हैं कि उनके मुंहबोले भाई जनगण सिंह श्याम ने उन्हें बहुत प्रेरित किया. जनगण सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं, वो एक चर्चित कलाकार थे. दुर्गाबाई बताती हैं कि अब उन्हें एक पेंटिंग के 3500 रुपये से डेढ़ लाख रुपये तक मिल जाते हैं.
जब चित्रकला की प्रदर्शनी के लिए विदेश गईं दुर्गाबाई दुर्गाबाई ने 1997 में भोपाल के भारत भवन में पेटिंग करनी शुरू की. इसके बाद भोपाल के जनजाति संग्रहालय ने उन्हें काम दिया. उन्होंने दिल्ली, मुंबई,देहरादून, खजुराहो समेत देश के कई शहरों में अपनी पेंटिंग की प्रदर्शनी की है. दुर्गाबाई की प्रतिभा भारत तक सीमित नहीं रही. साल 2011 में प्रकाशित अपनी सबसे चर्चित पुस्तक 'भीमायना' की प्रदर्शनी के लिए वो लंदन और जर्मनी भी गईं. 'भीमायना' किताब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के जीवन को चित्रकला के माध्यम से दिखाती है. इसके अलावा दुर्गाबाई की 11 किताबें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें उन्होंने लोक कहानियों, रीति-रिवाज़ , त्योहार आदि का चित्रण किया है.

दुर्गाबाई व्याम की चित्रकारी की किताब 'भीमायन'
दुर्गाबाई अपनी चित्रकला के लिए कई और पुरस्कार पहले भी जीत चुकी हैं. साल 2004 में दुर्गा बाई को मध्य प्रदेश के हस्तशिल्प विकास परिषद द्वारा सम्मानित किया गया था. 2008 में उन्हें तारा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित बच्चों की किताब 'द नाइट लाइफ ऑफ ट्रीज़' के लिए इटली में बोलोग्ना रागाज़ी पुरस्कार प्रदान किया गया था. दुर्गा बाई को 2006-2007 के लिए IGNCA स्कॉलरशिप भी दी गई थी.
दुर्गाबाई व्याम अपने पति के साथ आदिवासी लोक संस्कृति और कला को आगे बढ़ाने के लिए एक संस्था भी चलाती हैं.