आपका दिल वो पहला अंग है जो मां के पेट में बनता है. यानी वो तब से काम कर रहा है. लगातार. ये धड़कता रहता है, आप जिंदा रहते हैं. सारी बातों की लॉलीपॉप ये है कि दिल का सही तरह और सही समय पर धड़कना बेहद ज़रूरी है. पर कई बीमारियों के चलते ये पूरा सिस्टम प्रभावित होता है.
दिल धड़कना बंद कर दे तो काम आती है पेसमेकर मशीन, लेकिन लगती कैसे है?
जब दिल का अपना पेसमेकर काम करना बंद कर देता है तब बाहर एक मशीनी पेसमेकर लगाने की ज़रूरत पड़ती है.

लल्लनटॉप के व्यूअर हैं विक्रांत. उनकी मां को कोरोनरी आर्टरी डिजीज नाम की दिल की बीमारी हुई है. इसकी वजह से उनका दिल ठीक तरह से धड़क नहीं पा रहा. दिल ठीक तरह धड़क सके, इसके लिए डॉक्टर ने शरीर में एक मशीन फ़िट करने की सलाह दी है. ये मशीन है पेसमेकर. आप में से कई लोग इसके बारे में जानते भी होंगे.
अब विक्रांत चाहते हैं कि हम डॉक्टर से पूछकर ये बताएं कि पेसमेकर कैसे लगाया जाता है. इसे लगाने की ज़रूरत क्यों पड़ती है और अगर पेसमेकर लगा है तो किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है.
ये हमें बताया डॉ. वैभव मिश्रा ने.

हमारे शरीर में एक नेचुरल पेसमेकर होता है जिसका काम होता है दिल को बताना कि कब उसको धड़कना है. जिस तरह किसी भी गाड़ी में एक फ्यूल सप्लाई और इलेक्ट्रिकल सप्लाई होती है या घरों में पानी और बिजली की सप्लाई होती है, ठीक उसी तरह दिल में भी खून की सप्लाई होती है और एक इलेक्ट्रिकल सिस्टम होता है. ये सिस्टम दिल को सही समय पर बताता है कि कब धड़कना है. ये दिल को 60-90 के बीच में धड़कवाता है.
एक्सरसाइज करते हुए या बुखार में धड़कन अपने आप बढ़ जाती है. कई सारी दिल की ऐसी बीमारियां होती हैं जिनमें इस नेचुरल पेसमेकर पर असर पड़ता है. हार्ट रेट स्लो हो जाता है और दिल उसे बढ़ा नहीं पाता. सबसे आम बीमारी जिसमें पेसमेकर लगता है वो है कोरोनरी आर्टरी डिजीज. इसमें दिल के अंदर ब्लड सप्लाई कम हो जाती है. कई बीमारियों में वॉल्व ख़राब हो जाता है और दिल का नेचुरल पेसमेकर प्रभावित होता है. कई दिल की बीमारियां जन्मजात होती हैं. ऐसी स्थिति में पेसमेकर लगवाने की ज़रूरत पड़ती है. 24 घंटे वाला ECG टेस्ट बता देता है कि पेसमेकर लगवाने की ज़रूरत है या नहीं.
पेसमेकर लगाने की प्रक्रिया बहुत जटिल नहीं है. इसमें सर्जरी की ज़रूरत नहीं पड़ती. इसको कैथ लैब में किया जाता है. स्किन के नीचे एक नस के ज़रिए पेसमेकर को डाला जाता है. वो स्किन के नीचे रहता है और ऊपर से सूचर (टांके) लगा दिए जाते हैं. नस के ज़रिए वो पेसमेकर दिल से जुड़ा रहता है. लीडलेस पेसमेकर भी आते हैं. और भी कई तरह के पेसमेकर उपलब्ध हैं. ये दिल के अलग-अलग हिस्सों को धड़कने में मदद करते हैं. जब दिल का अपना पेसमेकर काम करना बंद कर देता है तब बाहर से पेसमेकर लगाने की ज़रूरत पड़ती है.
पेसमेकर को लेकर किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है?खुद को इन्फेक्शन से बचाना ज़रूरी है. पेसमेकर की बैटरी लाइफ का ध्यान रखना चाहिए. चेकअप करवाते रहना चाहिए. अगर आपको ऐसे लक्षण महसूस हो रहे हैं जैसे चक्कर आना, गिर जाना, होश खो बैठना और पैरों में सूजन तो, चेकअप करवाएं, ECG करवाएं. हो सकता है आपको पेसमेकर की ज़रूरत हो.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)