कुछ ऐसी सिचुएशंस होती हैं जिसमें आपको लगता है कि आपको खुद को प्रूव करना है.जबकि आपको इसकी कोई ज़रूरत नहीं होती. क्योंकि ये बेवकूफाना है. लकिन हम सब ऐसी सिचुएशंस में रह चुके हैं और मुझे लगता है कि यहां से ही घबराहट की शुरुआत होती है. आप सोचते हो कि ये व्यक्ति मुझसे ऐसे क्यों बात कर रहा है जैसे मैं बेवकूफ हूं. यहां पर मुझे लगता है कि अच्छा अब मुझे खुद को साबित करना पड़ेगा. मुझे शुरू में ही ये इमेज बनाने की ज़रूरत है कि सामने वाले को लगे कि मुझे पता है कि मैं किस बारे में बात कर रही हूं. और मुझे इस बात की बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है कि आप मुझे हर छोटी-छोटी चीज़ समझायें और मुझसे नीचा दिखाने वाले तरीके में बात करें.उन्होंने इसके लिए एक खास शब्द का इस्तेमाल किया है. मैनस्प्लेनिंग. ये दो शब्दों से मिलकर बना है. मैन और एक्स्प्लेनिंग. मैनस्प्लेनिंग है क्या बला? जब भी कोई पुरुष कोई चीज़ किसी महिला को समझाता है, उसे खुद से नीचा समझते हुए, ये मानकर कि सामने वाली महिला को इस बारे में कुछ पता नहीं होगा. या फिर महिला के बिना पूछे वो अपना ज्ञान बघारने लग जाता है, तो उसे मैनस्प्लेनिंग कहते हैं. भले ही वो महिला अपने फील्ड की जाबड़ जानकार ही क्यों न हो. मान लीजिए कोई नया इंटर्न आए और मुझसे पूछे, बहन बताओ ज़रा ये ऑनलाइन हिंदी में कैसे टाइप करते हैं. और मेरे पड़ोस में बैठे मिस्टर अग्रवाल कूदकर बताने लग जाएं. कि ये ऐसे होता है. वैसे होता है. भले उनकी तरफ किसी ने आंख उठाकर भी न देखा हो. लेकिन बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनने वालों को आजतक कौन रोक पाया है. न शादियों में जाने से, न मैनस्प्लेनिंग करने से.
हां, एक बात जरूर ध्यान रखने वाली है. किसी कोच,टीचर,या ट्रेनिंग देने वाले रोल में मौजूद व्यक्ति का कुछ सिखाना, सलाह देना या बताना मैनस्प्लेनिंग के दायरे में नहीं आएगा.हम आपको डिक्शनरी में दी हुई इस शब्द की परिभाषा बता सकते हैं. इसके पीछे के साइंस में जा सकते हैं. इस पर लिखे हुए कई रीसर्च पेपर्स का हवाला दे सकते हैं. लेकिन ये एक ऐसी चीज़ है जो हम रोजमर्रा की जिंदगी में अपने आस-पास देखते हैं. इसलिए हम ने ऐसे लोगों से बात की जो इसे झेल चुके हैं.

लोगों का क्या कहना है मेघा सिन्हा. स्पोर्ट्स प्रेजेंटर और प्रोड्यूसर हैं. पांच साल से इस फील्ड में काम कर रही हैं. मेघा बताती हैं कि स्पोर्ट्स एक ऐसा फील्ड है जहां पुरुषों का दखल ज्यादा है. उनके साथ भी ऐसा हुआ है जब वो लाइव सेशन में बातचीत कर रही थीं, तो किसी ने कमेन्ट सेक्शन में उनसे कहा,
"मैम को आता है क्या, ये खेली हैं क्या जो ये ऐसे बात कर रही हैं?"मेघा ने बताया कि इस बात पर उनके टीममेट ने उस व्यक्ति की क्लास ले ली.
मेरी एक दोस्त मीडिया में काम करती है. नाम बताने से मना किया उसने. कहती,
"कितनी बार ऐसा हुआ है कि मैं किसी कांसेप्ट पर बात करना शुरू करती हूं स्टोरी के लिए, उसमें कोई मेल कलीग बीच में ही टोक देता है. मुझे समझाने लगता है. मैं सुनती हूं, फिर उसको बताती हूं कि भाई इस चीज में डिग्री है मेरी. पांच साल लगाकर कमाई है. तुम एक आर्टिकल पढ़कर मुझे नहीं समझा पाओगे. बैठ जाओ. लेकिन चूंकि मैं टोकती- बोलती हूं तो लोगों के दिमाग में ये इमेज बन गई है कि मैं बहुत नकचढ़ी और घमंडी हूं. उनको चुप कराने के लिए अगर ये इमेज भी बनानी पड़े तो मुझे मंज़ूर है. बस कोई चुप कराए उन लोगों को."हमने बात की उपासना शशिधरन से. ये बायोलॉजी की स्कॉलर हैं. पीएचडी कर रही हैं. तीसरे साल में हैं. उन्होंने बताया,
"एक जूनियर आया, केमिस्ट्री से था. उसने मुझसे सवाल करने शुरू कर दिए. कि क्या मुझे हेला सेल लाइन के बारे में पता है? ये एक बायोलॉजी का टर्म है. वो केमिस्ट्री का स्टूडेंट था. मुझसे कहीं जूनियर. मैंने उससे पूछा कि उसे ऐसा क्यों लगता है कि बायोलॉजी के फील्ड में पीएचडी कर रही स्कॉलर को इस बेसिक चीज़ के बारे में पता नहीं होगा."ईशा यादव. अंबेडकर यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं. विमेन एंड जेंडर स्टडीज में. उन्होंने बताया कि वो फैट शेमिंग और बॉडी पॉजिटिविटी के बारे में बात करती हैं, तो उनके अपने कजिन कहते हैं कि वो मोटापे को बढ़ावा दे रही हैं. ईशा ने बताया,
‘मुझसे कहा जाता है कि मैं जो पढ़ा रही हूं वो खतरनाक है. क्योंकि मेरे अपने ओपिनियन बिना पढ़े-लिखे बनाए गए हैं.’महिलाओं और जेंडर की रीसर्च करने वाली स्कॉलर से ये बात कह दी जाती है कि उन्हें इनसे जुड़े मुद्दों की जानकारी नहीं है. साइंस और टेक्नॉलजी के फील्ड में काम करने वाली महिलाएं तो और ज्यादा झेलती हैं ये सब. क्योंकि एक पूर्वाग्रह है लोगों के बीच. लड़की है तो इसे टेक्नीकल नॉलेज न होगी. इसको क्या ही पता होगा ब्लैक होल के बारे में. चलो हम समझाते हैं.

आप को लग रहा है कि हम मजाक में ये बात कह रहे हैं. लेकिन ऐसा असल में होता है और इसका उदाहरण है ये ट्वीट.

इस ट्वीट में एक लड़की लिख रही है कि क्लाइमेट चेंज से उसे काफी डर लग रहा है और वो चिंतित है. इस पर एक रैंडम व्यक्ति लड़की से कहता है कि कुछ बोलने से पहले थोड़ा साइंस सीख लो. लड़की जवाब देती है, मैंने पहले ही एस्ट्रोफिजिक्स में पीएचडी की डिग्री ले ली है. और करूंगी तो ज्यादा हो जाएगा अब.

ये मीम भी आप अपने इस्तेमाल के लिए रख सकते हैं.
सैली क्रौचेक नाम की महिला हैं. सिटीबैंक और बड़े इन्वेस्टमेंट बैंक्स के साथ काम कर चुकी हैं, CEO के लेवल पर. उन्होंने नया इन्वेस्टमेंट वेंचर शुरू किया. जो लोग उसमें इंटरेस्ट दिखाने आए, उन्होंने सैली को फाइनेंशियल सलाह देने की कला पर लेक्चर देना शुरू कर दिया.
थोड़ा पर्सनल उदाहरण. पीरियड्स आए हुए थे. काफी दर्द हो रहा था. शक्ल पे बारह बजे हुए थे. दोस्त ने पूछा क्या हुआ. उसे बताया. कहता, पीरियड्स में इतना पेन तो नहीं होना चाहिए. तुम्हें पता है, वैसे भी पूरे पीरियड में इतने मिलीलीटर ही खून निकलता है. इतना दर्द होना ठीक नहीं.
इतनी बेवकूफाना बात सुनकर बस “दर्द में भी ये लब मुस्कुरा जाते हैं” वाली जबरिया हंसी मुंह पर चिपकानी पड़ी थी. जानकारी के लिए बता दूं कि वो लड़का न तो डॉक्टर था, और न ही उसकी कोई जानकारी थी इस मुद्दे पर. पर उसे लगा कि इंटरनेट पर कुछ-कुछ चीज़ें पढ़ लेगा तो मुझे ज्ञान दे लेगा.

सेक्शुअल हैरेसमेंट, भद्दे अश्लील कमेंट्स करना, यौन शोषण, महिलाओं के शरीर को ऑब्जेक्टिफाई करना, ये ऐसी चीज़ें हैं, जो इंटरनेट पर अक्सर देखने को मिल जाती हैं. बलात्कार और हत्या की धमकियों के बीच मैनस्प्लेनिंग जैसी चीज़ें बैकफुट पर आ जाती हैं. लेकिन ये भी उतनी ही खतरनाक हैं. जिनमें कुछ उदाहरण हैं. कुछ कहानियां हैं. इन सबके पीछे एक कॉमन चीज़. रोकी, टोकी जाती, ज्ञान का बेमतलब बघार झेलती औरतें. जिन्होंने कभी इसके लिए कोई इच्छा नहीं जताई.