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जब एक वकील को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने के लिए ऊपर से फ़ोन करवाना पड़ा

सारे दस्तावेज थे, फिर भी कोई न कोई दिक्कत बताकर टालने की कोशिश हो रही थी.

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सांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे/ स्पेशल मैरिज एक्ट फॉर्म
स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 - ऐसा कानून जिसके तहत दो अलग-अलग धर्मों वाले लोग भी बिना अपने धर्म को बदले रजिस्टर्ड शादी कर सकते हैं. इसके लिए एक फॉर्म भरना होता है, और मैरिज रजिस्ट्रार के पास जमा कराना होता है. फॉर्म आपको ऑनलाइन मिल जाएगा, या मैरिज ऑफिस से भी ले सकते हैं. इसमें पहले नोटिस देते हैं कि आप शादी करने वाले हैं. किसी को अगर कोई ऑब्जेक्शन हो तो वो जाकर रजिस्ट्रार के ऑफिस में इसे बता सकता है. उसके बाद आप शादी को रजिस्टर करने के लिए फॉर्म भरते हैं. कितनी बढ़िया प्रक्रिया लग रही है. एकदम स्पष्ट, सरल और सहज. लेकिन क्या वाकई में ऐसा है? जवाब है- नहीं. हाल ही में नीतिका विश्वनाथ नाम की एक वकील ने स्पेशल मैरिज एक्ट से जुड़े अपने अनुभव ट्विटर पर साझा किये. उन्होंने लिखा,
"मैंने और मेरे पार्टनर ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की. ब्यूरोक्रेसी ने हमसे उल्टे-सीधे सवाल किये और वो हर संभव प्रयास किया जिससे शादी करने को लेकर वो हमारा मन बदल दें."
नीतिका आगे लिखती हैं - जब हमने शादी के लिए नोटिस फाइल किया तो क्लर्क ने हमसे पूछा कि क्या हम दो राज्यों - उत्तर प्रदेश और कर्नाटक (मेरे पार्टनर बेंगलुरु के निवासी हैं) के पुलिस कमिश्नर के ऑफिस के साथ फॉलो अप के बारे में श्योर हैं. हमसे ये भी कहा गया कि बेहतर होगा कि हमलोग बेंगलुरु भेजने वाले नोटिस खुद ही पोस्ट कर दें - जिसके लिए हमसे अपेक्षित था कि हम उसे रिश्वत दें. लखनऊ के स्पेशल मैरिज ऑफिस को बैंगलोर के लिए अंग्रेजी में (न कि हिन्दी में) नोटिस भेजने के लिए राज़ी करने में हमें खूब मशक्कत करनी पड़ी (एकबार फिर से रिश्वत की दरकार थी). मेरे घर दो बार पुलिस आयी - पहली बार में एक लोकल पुलिस स्टेशन के कांस्टेबल और दूसरी बार लोकल इन्वेस्टीगेशन यूनिट (एलआईयू) के एक सब-इंस्पेक्टर. एलआईयू अफसर ने बड़े आराम से मेरे पिता से कहा कि अगर परिवारवाले इस शादी के लिए राज़ी हैं तो प्रक्रिया काफी सरल होगी. और अगर परिवारवाले राज़ी नहीं होते तो? उधर बेंगलुरु में पुलिस वालों ने दो बार मेरे पार्टनर के माता-पिता को लोकल पुलिस स्टेशन बुलाया. वहां के पुलिस कमिश्नर के ऑफिस ने पैनडेमिक में किसी भी तरह के फिजिकल नोटिस पर जवाब देने से इनकार कर दिया. मेरे पार्टनर को कहा गया कि वो सेवा-सिंधु की वेबसाइट से एक पुलिस वेरिफिकेशन सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई करें. हमें उस वेबसाइट पर एप्लीकेशन कैसे डालना है, ये समझने में तीन दिन लगे. ये वेबसाइट सिर्फ फ़ायरफ़ॉक्स ब्राउज़र पर खुलती थी (ये मत पूछिए कि ये हमें कहां से पता चला). इसकी फीस थी- 450 रुपये. एक बार जब सर्टिफिकेट डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध हो गया तो हमें इसे लखनऊ के स्पेशल मैरिज ऑफिस में जमा करना था. हालांकि ये सर्टिफिकेट बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर द्वारा डिजिटली साइन किया हुआ था और साथ ही इसमें एक क्यूआर कोड भी था जिसके द्वारा इसकी सत्यता जांची जा सकती थी, क्लर्क ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया. क्लर्क बेंगलुरु पुलिस कमिश्नर के ऑफिस से आधिकारिक जवाब के लिए अड़ा रहा, जबकि वहां के पदाधिकारियों ने ऐसा कुछ भी करने से इनकार कर दिया. ये जगजाहिर होने के बावजूद कि पुलिस वेरिफिकेशन सर्टिफिकेट सिर्फ़ अविवाहितों को जारी किये जाते हैं, क्लर्क अड़ा रहा कि इस सर्टिफिकेट में साफ़-साफ़ लिखा होना चाहिए की मेरे पार्टनर अविवाहित हैं.

जब सारे रास्ते बंद हो गए

"मुझे ये कहने में भी शर्म आ रही है कि आगे कोई रास्ता ना दिखाई देने पर मुझे ज्यूडिशरी में अपने एक सीनियर से स्पेशल मैरिज ऑफिस में फ़ोन करवाना पड़ा (एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को). और इसके बाद जादुई ढंग से सारी दिक्कतें गायब होने लगीं. सारे ज़रूरी कागज़ात होने के बावजूद हमें इतनी मशक्कत करनी पड़ी. सोचिये कि अंतरजातीय या दूसरे धर्म में शादी करने वाले जोड़ों को, जो अपने परिवार-समाज के खिलाफ जाकर शादी करना चाहते हैं, उन्हें किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता होगा."
ये पूरी प्रक्रिया हमारे लिए बहुत थका देने वाली थी लेकिन सोचिये दूसरी परिस्थितियों जैसे इंटरकास्ट/इंटेररिलीजस शादियों में आपको निजी स्वतंत्रता का या फिर घायल होने या फिर कहें तो मारे जाने का डर भी सताएगा." नीतिका ने इस कानून के तकनीकी पहलुओं पर भी सवाल उठाये. उन्होंने लिखा,
"इस कानून के तहत 30 दिन के नोटिस पीरियड की क्या आवश्यकता है, जब पर्सनल लॉ की शादियों में इसकी कोई ज़रूरत नहीं? हमारे घर पर नोटिस क्यों भेजा जाता है? क्या स्टेट सक्रिय रूप उस कानून को हतोत्साहित करना चाहता है जो दूसरे जाति-धर्म में शादी करने का एकमात्र रास्ता है? स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 का कार्यान्वयन वयस्कों की सेक्सुअल स्वायत्ता पर तोहमतें लगाने के लिए जातिवादी, कट्टर ताकतों और पितृसत्तात्मक परिवारों के आपसी सांठ-गांठ का एक क्लासिक उदाहरण है."
नीतिका की तरह ही ऐसे कई और वयस्क होंगे जो स्पेशल मैरिज एक्ट के भरोसे अपने प्यार को अंजाम देने की चाहत रखते होंगे मगर इस कानून का कार्यान्वयन न सिर्फ आधुनिकता के आड़े आता है बल्कि इस कानून के मूल उद्देश्य को भी धुंधला करता है.