बुकर प्राइज़. किताबों की दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार. सिनेमा के लिए ऑस्कर्स, म्यूज़िक के लिए ग्रैमी और फ़ैशन के लिए मेट गाला जितना बड़ा इवेंट. International Booker Prize में भारत ने इतिहास बना दिया. लंदन में 25 मई की शाम मूल रूप से हिंदी भाषा में लिखी गई एक किताब को बुकर मिला.
'मैं धूप, बारिश, बर्फ़ के लिए तैयार थी, बुकर के लिए नहीं', गीतांजलि ने ऐसा क्यों कहा?
गीतांजलि को जिस उपन्यास (रेत समाधि) के लिए पुरस्कार मिला वो हिंदी में 2018 में छपा था. इसके बाद डेज़ी रॉकवेल ने उपन्यास को ट्रांसलेट किया और 2021 में टिलटेड एक्सेस प्रेस ने इसे टूम ऑफ़ सैंड टाइटल के साथ छापा.
किताब का नाम है- टूम ऑफ सैंड, जो कि हिंदी भाषा में लिखे गए उपन्यास 'रेत समाधि' का अंग्रेज़ी तर्जुमा है. इसकी लेखिका हैं गीतांजलि श्री. अनुवादक हैं डेज़ी रॉकवेल. दोनों महिलाएं.
कौन हैं Geetanjali Shree?गीतांजलि का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ. पिता सिविल सर्वेंट थे, तो बचपन और जवानी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों में बीते. बाद के सालों में वो दिल्ली में रहने लगीं.
पहली कहानी छपी 1987 में. हंस पत्रिका में. 'बेल पत्र'. इसके बाद गीतांजलि ने कई किताबें लिखीं, जिसमें से 'तिरोहित', 'हमारा शहर उस बरस', 'ख़ाली जगह', 'अनूगंज' को उनके प्रसिद्ध कामों में गिना जाता है. 64 वर्षीय गीतांजलि के काम को अंग्रेज़ी, फ्रे़ंच, जर्मन, सर्बियाई और कोरियाई सहित कई भाषाओं में अनूदित किया गया है. 'टूम ऑफ़ सैंड' ब्रिटेन में प्रकाशित होने वाली उनकी पहली किताब है.
गीतांजलि की कहानियों पर कई नाटक भी बने. वो थिएटर ग्रुप 'विवादि' के साथ भी लंबे समय तक जुड़ी रहीं.
‘मैं सब चीज़ों के लिए तैयार थी, इसके लिए नहीं’बुकर मिलने के बाद से ही सोशल मीडिया पर भारतीय, ख़ास तौर से साहित्य प्रेमी ख़ूब ख़ुश हैं. हिंदी साहित्य में इस घटना को बस एक घटना नहीं, एक संदर्भ बिंदु की तरह देखा जा रहा है. कई भाषाविद हिंदी को मिले इस सम्मान की तुलना गेब्रिएल गार्सिया मार्केज़ के उपन्यास 'वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलिट्यूड' से कर रहे हैं, जिसने लैटिन अमेरिकी साहित्य को दुनिया भर के लिए खोल दिया था.
पुरस्कार स्वीकार करते हुए गीतांजलि ने कहा,
"मुझसे कहा गया था कि यह लंदन है. आप हर बात के लिए तैयार होकर आइएगा. यहां बारिश हो सकती है. बर्फ़ गिर सकती है. बादल छा सकते हैं. खिला सूरज हो सकता है. यहां बुकर भी मिल सकता है. इसलिए मैं तैयारी से आई थी, पर मुझे लगता है मैं अभी तैयार नहीं हूं. मैं अभिभूत हूं."
गीतांजलि को जिस उपन्यास (रेत समाधि) के लिए पुरस्कार मिला वो हिंदी में 2018 में छपा था. इसके बाद डेज़ी रॉकवेल ने उपन्यास को ट्रांसलेट किया और 2021 में टिलटेड एक्सेस प्रेस ने इसे टूम ऑफ़ सैंड टाइटल के साथ छापा.
क्या है रेत समाधि की कहानी?"शांति से ज़्यादा क्रांति मगन करती है. शील से ज़्यादा अश्लील, आराधना से ज्यादा दहाड़ना, बनाने से ज़्यादा बिगाड़ना, धीर से ज़्यादा अधीर, चुपचाप से ज़्यादा मारधाप."
ये पंक्ति रेत समाधि से है. उपन्यास की कहानी भी इसी पंक्ति की तासीर की है.
रेत समाधि' की नायिका एक 80 वर्षीय महिला है, जिसने पति की मृत्यु के बाद खाट पकड़ ली है. किसी के उठाए नहीं उठती. फिर एक दिन उठती है. नई बयार के साथ. महिला की एक बेटी भी है. बेटी का किरदार प्रोग्रेसिव है. अविवाहित औरक् इंडिपेंडेंट. बेटी मां को अपने घर ले जाती है. उसका ख़याल रखती है. इस प्रोसेस में बेटी थोड़ी-थोड़ी मां और मां थोड़ी-थोड़ी बेटी बनने लगती है. इसके बाद कहानी में अलग-अलग किरदार और घटनाएं आती हैं. अपने अलग-अलग रंगों के साथ. और, इन घटनाओं और किरदारों की आमद के साथ शुरू होता है टसल. नायिका के दिमाग़ का टसल, जहां वो अपने जिए हुए और भोगे हुए के बारे में सोचती है.
इस किताब को हिंदी की ट्रेडिशनल परिपाटी में नए बिंब गढ़ने के लिए ख़ूब सराहा गया. बुकर के नॉमिनेशन के ठीक बाद साहित्य वेबसाइट साहित्य तक पर किताब पर लंबी चर्चा हुई. हिंदी लेखिका डॉ अनामिका, राजकमल ग्रुप के प्रमुख अशोक महेश्वरी, अनुवादक मनीषा तनेजा और मेडेगास्कर के राजदूत अभय के ने किताब के हर पहलू पर बात की. कई बातें निकलीं, लेकिन एक बात जिसपर सभी पैनलिस्ट्स ने सहमति दिखाई, वो ये कि किताब में लेखिका का अक्स झलकता है.
श्री के उपन्यास को छह किताबों की फ़ाइनल शॉर्टलिस्ट में चुना गया था. कोरियाई लेखक बोरा चुंग की 'कर्स्ड बनी', नॉर्वेइयन लेखक जॉन फॉसे की 'ए न्यू नेम: सेप्टोलॉजी VI-VII', जापान के लेखक मीको कावाकामी की 'हेवेन', स्पैनिश लेखक क्लाउडिया पिनेरो की 'एलेना नोज़' और पोलिश मूल के लेखक ओल्गा टोकार्ज़ुक की 'द बुक्स ऑफ़ जेकब', इस नॉमिनेशन की बाक़ी किताबें थीं.
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