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दुनिया में फैल रही ये STSS बीमारी क्या है, 48 घंटों में ही मौत हो जाती है

जापान में एक नई जानलेवा बीमारी तेज़ी से फैल रही है. इसका नाम STSS है. ये बीमारी एक फ्लेश ईटिंग यानी मांस खाने वाला बैक्टीरिया की वजह से हो रही है.

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जापान में इस बीमारी के हज़ार से ज़्यादा केस सामने आ चुके हैं.

दुनिया धीरे-धीरे कोविड के दौर से उभर ही रही थी कि अब जापान में एक नई जानलेवा बीमारी ने दस्तक दे दी है. नाम है STSS. यानी Strepto-coccal toxic shock syndrome. कहा जा रहा है कि ये बीमारी एक फ्लेश ईटिंग यानी मांस खाने वाले बैक्टीरिया की वजह से हो रही है. हालांकि असलियत में बैक्टीरिया शरीर का मांस नहीं खाता. बल्कि शरीर के टिशूज़ को नष्ट करता है.

यह बीमारी खतरनाक इसलिए है क्योंकि इससे पीड़ित ज़्यादातर मरीज़ों की 48 घंटों में मौत हो जाती है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस साल अब तक जापान में इसके लगभग एक हज़ार केस सामने आ चुके हैं. ये संख्या अभी और बढ़ेगी. इस बीमारी की मृत्यु दर 30 प्रतिशत है. यह बीमारी Strepto-coccus Bacteria की वजह से होती है. इस बैक्टीरिया के दो वैरिएंट हैं. ग्रुप-ए Strepto-coccus और ग्रुप-बी Strepto-coccus. इसमें ग्रुप-ए Strepto-coccus ज़्यादा गंभीर है.

ब्लूमबर्ग से बातचीत में Tokyo Women's Medical University में infectious diseases की प्रोफेसर केन किकुची ने बताया कि इस बैक्टीरिया से संक्रमित होने पर पहले मरीज़ के शरीर, खासकर पैर में सूजन दिखती है. फिर कुछ घंटों में यह बीमारी पूरे शरीर में फैल जाती है. इसके बाद 48 घंटे के अंदर मरीज़ की मौत हो जाती है. जापान के अलावा यह बीमारी यूरोप के 5 देशों में भी फैल गई है. इनमें ब्रिटेन, फ्रांस, आयरलैंड, नीदरलैंड और स्वीडन शामिल हैं. ऐसे में आज हम डॉक्टर से जानेंगे कि टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम क्या है? यह क्यों होता है? इसके लक्षण क्या हैं? और, इससे बचाव और इलाज कैसे किया जाए? 

स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम क्या होता है?

ये हमें बताया डॉ. कपिल सिंघल ने.

डॉ. कपिल सिंघल, डायरेक्टर, एनेस्थीसिया एंड क्रिटिकल केयर, मेट्रो हॉस्पिटल, नोएडा

जब किसी बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से शरीर में टॉक्सिंस फैल जाते हैं, तब उससे पैदा लक्षणों को टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम कहा जाता है. ये एक जानलेवा बीमारी है. अगर समय पर इलाज न मिले तो मरीज़ की जान जा सकती है. टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम एक आपात स्थिति है.

टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम होने के पीछे क्या कारण हैं?

यह एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है जो आमतौर पर स्टेफिलोकोकस बैक्टीरिया की वजह से होता है. कई बार यह स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया के कारण भी होता है. ये बैक्टीरिया विभिन्न जगहों के साथ-साथ कई बार हमारी स्किन पर भी मौजूद होता है. हालांकि जब किसी की इम्यूनिटी कमज़ोर होती है या किसी को वायरस इंफेक्शन होता है. जिससे स्किन पर रैशेज़ पड़ गए हों जो खुले घाव बन जाएं. या किसी को चोट लग जाए जिसका घाव खुला छोड़ दिया जाए. या किसी की सर्जरी हुई हो. ऐसे लोगों में अगर बैक्टीरियल इंफेक्शन बढ़ जाए और उसका उपचार न किया जाए तो इससे टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम हो सकता है. अगर ये बैक्टीरिया स्ट्रेप्टोकोकस हो तो उसे STSS कहा जाता है. हाल ही में जापान में इसके मामले तेज़ी से बढ़े हैं. पिछले सालों के मुकाबले इस बार मामले लगभग दोगुने हो गए हैं.

टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम के क्या लक्षण हैं?

- सबसे आम लक्षण है बुखार आना.

- अगर शरीर के किसी हिस्से में चोट लगी है, कोई दाना फूट गया है, सर्जरी हुई है तो वहां बहुत ज़्यादा दर्द हो सकता है.

- ब्लड प्रेशर लो होने लगेगा.

- इससे मरीज़ में बेहोशी और सुस्ती छाने लगती है.

- जी मिचलाने लगेगा.

- उल्टी आ सकती है.

टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम के ज़्यादातर मामलों में मरीज़ की दो दिन में मौत हो जाती है

बचाव और इलाज

टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का समय पर इलाज न किया जाए तो ये जानलेवा हो सकता है. इसके इलाज के लिए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. इसके इलाज के दो हिस्से हैं. पहला, एंटीबायोटिक्स. किसी भी इंफेक्शन को ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक्स दी जाती है. दूसरा, टॉक्सिंस फैलने से शरीर में एक इंफ्लेमेटरी कास्केड तैयार होता है. इंफ्लेमेटरी कास्केड यानी बाहरी इंफेक्शन के ख़िलाफ़ शरीर की प्रतिक्रिया. इससे मरीज़ का बीपी कम हो जाता है. मल्टीऑर्गन फेलियर हो जाता है यानी कई अंग एक साथ काम करना बंद कर देते हैं. जिससे 48 घंटों में व्यक्ति की मौत होने की संभावना रहती है. 

इससे बचाव के लिए मरीज़ को आईवी फ्लूड दिए जाते हैं और बीपी सही रखने के लिए कई बार बीपी बढ़ाने की दवाई भी दी जाती है. इसी के साथ कई सारे टेस्ट भी किए जाते हैं. ऐसे मरीज़ों का इलाज आईसीयू में होता है. बचाव के लिए सबसे ज़रूरी है कि टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम के लक्षणों को अनदेखा न किया जाए. अगर शरीर में कोई कट है, घाव है, सर्जरी हुई है तो उसे इग्नोर न करें. उसकी देखभाल करें. अगर घाव छोटा है तो घर पर एंटीसेप्टिक दवा लें और उसकी ड्रेसिंग करें. घर पर ड्रेसिंग का सामान न हो तो मरीज़ को अस्पताल ले जाएं. अगर इस सिंड्रोम के लक्षण दिख रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं. आसपास के लोगों से दूरी बना लें. स्विमिंग पूल, झरने और नदी जैसी खुली जगहों पर न जाएं. इन जगहों पर इंफेक्शन एक से दूसरे इंसान में जल्दी फैल सकता है.

अभी भारत में इस सिंड्रोम के मामले नहीं फैले हैं. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं कि हम सतर्कता न बरतें. अगर आपका कोई घाव खुला हो. तो, उस पर तुरंत पट्टी करें. हाथ धोएं. वायरल इंफेक्शन हो तो मुंह ढक कर रहें. अगर घाव बढ़ रहा हो तो तुरंत डॉक्टर से मिलें.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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