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दुनिया की नंबर एक रेसलर ओलंपिक्स में हार गईं, लेकिन हमें अब भी उन पर नाज़ है

विनेश फोगाट ने बताया क्वार्टर फाइनल वाले दिन ऐसा क्या हुआ कि वो हार गईं.

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दुनिया की नंबर एक रेसलर जब हारती है, तो आलोचना नहीं बल्कि तह तक जाने की कोशिश ज़रूरी है.

आज सुबह अखबार के पन्ने पलटने हुए, हमारी नज़र 'इंडियन एक्सप्रेस' अखबार के आखिरी पन्ने पर ठहर गई. उस पन्ने पर स्टार रेसलर विनेश फोगाट ने अपना टोक्यो ओलंपिक्स वाला एक्सपीरियंस लिखा था. टोक्यो ओलंपिक्स शुरू होने से पहले से ही विनेश सुर्खियों में बनी हुई हैं. पहले इसलिए कि वो मेडल के लिए भारत की सबसे बड़ी उम्मीदों में से एक थीं. क्योंकि वो अपनी कैटेगरी में दुनिया की नंबर एक रेसलर हैं. पर टोक्यो में वो क्वार्टर फाइनल्स में हारकर बाहर हो गईं. उनके हार पर काफी बातें हुईं. उनके ताऊ और बचपन के कोच महावीर फोगाट ने भी कहा कि इससे घटिया फाइट उन्होंने नहीं देखी. विनेश भारत लौटीं और रेसलिंग फेडरेशन ने उन्हें अस्थाई रूप से सस्पेंड कर दिया. अनुशासनहीनता के आरोप में. इन सबके बाद अब विनेश का पक्ष भी सामने आया है. उन्होंने बताया है कि बाउट वाले दिन माने क्वार्टर फाइनल की फाइट वाले दिन वो अंदर से कैसा महसूस कर रही थीं. अपनी मेंटल हेल्थ को लेकर भी उन्होंने खुलकर बात की. हम बताएंगे कि टोक्यो जाने से पहले और वहां से आने के बाद विनेश को लेकर क्या-क्या कहा गया, उनके खिलाफ क्या एक्शन लिए गए. और किस तरह से उन्हें हार के बाद आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. हम विनेश की हार पर बात नहीं करेंगे, बल्कि ये जानने की कोशिश करेंगे कि वो क्यों हारी? क्योंकि एक एथलीट, एक खिलाड़ी जब मैदान पर, ट्रैक पर या रिंग में होता है, तो उसके ऊपर किस तरह का प्रेशर होता है, वो हम और आप नहीं जानते, हम कल्पना भी नहीं कर सकते.

कैसे शुरू हुई विनेश की कहानी?

साल 2016 में हुए थे रियो ओलंपिक्स. इसमें विनेश ने 48 किलोग्राम कैटेगरी में हिस्सा लिया था. लेकिन क्वॉर्टर-फाइनल में उनके घुटने में बेहद खतरनाक चोट लग गई. जिसके चलते वो करीब नौ महीनों तक मैट से दूर रहीं. वापसी की साल 2017 में एशियन चैंपियनशिप के सिल्वर मेडल के साथ. धमाकेदार वापसी थी ये. 'पुनर्जन्म’ जैसी. 2018 में वो एशियन गेम्स का गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला रेसलर भी बन गईं. 2019 तक आते-आते विनेश ने 53 किलोग्राम कैटेगरी में खेलना शुरू किया. इतने सारे मेडल जीतने और अपनी कैटेगरी में दुनिया की नंबर एक रेसलर बनने के बाद विनेश जब टोक्यो गईं, तो ज़ाहिर सी बात की उनसे बड़ी उम्मीद थी. लेकिन वो मेडल नहीं ला पाईं.

हमने देखा ही है, हमारे यहां जो जीतता है, उसे जनता एकदम से सिर पर बैठा लेती है, और जैसे ही जीतने वाला हार जाए, तो वही जनता उसे धड़ाम से नीचे भी गिरा देती है. विनेश के साथ भी यही हुआ. आपको दंगल फिल्म याद है? साल 2016 में आई थी, इसमें आमिर खान ने रेसलर महावीर फोगाट का रोल किया था. उन्हीं महावीर फोगाट के छोटे भाई की बेटी हैं विनेश. तो जब विनेश हारीं, तब महावीर फोगाट ने बड़े कड़े शब्दों में कहा-

"मैंने विनेश की आज तक इतनी खराब फाइट नहीं देखी. ऐसा लगा कि उसने ज्यादा कोशिश नहीं की. इससे घटिया फाइट नहीं देखी."


Aamri Khan And Mahavir Phogat
आमिर खान जिन्हें लड्डू खिला रहे हैं, वो ही महावीर फोगाट हैं.

फिर फेडरेशन ने लिया एक्शन

इसके बाद 10 अगस्त को रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी WFI ने विनेश फोगाट को अस्थायी रूप से सस्पेंड कर दिया. उन पर अनुशासनहीनता के आरोप लगे. कहा गया कि उन्होंने ओलंपिक्स विलेज में टीम इंडिया के बाकी पहलवानों के साथ ट्रेनिंग करने से मना कर दिया. उनके साथ एक फ्लोर पर रहने से मना कर दिया. अपने मुकाबलों में टीम की ऑफिशल किट नहीं पहनी. उन्हें नोटिस भी भेजा गया. कहा गया कि 16 अगस्त तक जवाब दिया जाए. इसी के साथ WFI के प्रेसिडेंट बृजभूषण शरण सिंह का भी बयान आया. उन्होंने विनेश को खोटा सिक्का तक कह दिया. कहा कि सरकार ने विनेश के ऊपर करोड़ों खर्च किए और वो कुछ नहीं कर पाईं. बृजभूषण ने विनेश के कोच वॉलर अकोस पर भी सवाल उठाए, जो हंगरी के रहने वाले हैं. कहा कि विनेश के कोच उसे हंगरी लेकर चले गए, जहां अपनी पत्नी के साथ ट्रेनिंग करवाई, बाकी रेसलर्स के साथ नहीं.

आगे बढ़ने से पहले ये भी जान लीजिए कि ओलंपिक्स के पहले विनेश ने इंडियन ओलंपिक्स असोसिएशन माने IOA से नाराज़गी जताई थी. कहा था कि वो चार महिला रेसलर्स के लिए एक भी फिजियोथेरेपिस्ट नहीं दे रहे. विनेश ने ट्वीट किया था कि कई गेम्स में एक खिलाड़ी को कई सपोर्ट स्टाफ मिलते हैं और यहां चार लोगों के लिए एक फिजियो नहीं दिया जा रहा.

तो ये तो था अब तक का मामला. आज जब हमारी नज़र विनेश के एक्सपीरियंस पर पड़ी. तो हमें लगा कि इस टॉपिक पर बात करना बेहद ज़रूरी है. हम आपको उनके एक्सपीरियंस के वो हिस्से बताएंगे, जो हमें सबसे अहम लगे. जिन्हें पढ़कर लगा कि इसे हर किसी को जानना चाहिए. जानना चाहिए कि एक एथलीट के ऊपर क्या कुछ गुज़रती है. सबसे पहले बताते हैं कि विनेश ने, बाकी रेसलर्स के साथ न रहने के आरोपों पर क्या कहा. वो कहती हैं-

"भारतीय खिलाड़ियों की लगातार टेस्टिंग हो रही थी और मेरी टेस्टिंग नहीं हुई थी. क्या होता अगर मैं फ्लाइट से इनफेक्ट होकर आ जाती और उन्हें भी संक्रमित कर देती. मैं केवल उन्हें सुरक्षित रखना चाहती थी. मैं बस दो-तीन दिन अलग रहना चाहती थी, ताकि कोई रिस्क न हो. ये कौन-सी बड़ी बात है. बाद में मैं उन्हें जॉइन करने ही वाली थी. बाद में मैंने सीमा के साथ ट्रेनिंग भी की, तो कैसे उन्होंने आरोप लगा दिया कि मैं टीम-प्लेयर नहीं हूं."


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विनेश फोगाट टोक्यो ओलंपिक्स के क्वार्टर फाइनल में हारकर बाहर हो गई थीं. (फोटो- PTI)

और क्या कहा विनेश ने?

अब बताते हैं कि गेम में अपनी परफॉर्मेंस को लेकर विनेश ने क्या कहा. वो कहती हैं-

"ओलंपिक्स में कोई भी एथलीट ऐसा नहीं होता, जिस पर प्रेशर न हो. लेकिन मैं जानती थी कि मुझे इसे कैसे हैंडल करना है. विनेश प्रेशर के चलते नहीं हारी. जजमेंट देने से पहले एथलीट से पूछिए कि क्या गलत हुआ. टोक्यो में मैं ठीक थी. मैं ह्यूमिडिटी के लिए तैयार थी. सॉल्ट कैप्सूल्स मेरे पास थे. मैंने इलेक्ट्रोलाइट्स पिए थे. साल 2017 में मैं कॉनकज़न ( concussion) का शिकार हुई थी. (कॉनकज़न माने एक तरह की ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी). तब से मुझे ये दिक्कत हो रही है. चीज़ें ब्लर हो जाती हैं. ये काफी कम हो गया है, लेकिन जब मेरा सिर किसी चीज़ से टकराता है, तो ये वापस आ जाता है. बाउट वाले दिन मुझे वो फील नहीं आ रहा था. वेट कट के बाद मैंने वॉर्म अप भी किया, तब भी फील नहीं आई. बाउट के एक दिन पहले मैंने कुछ नहीं खाया था. मैंने कुछ न्यूट्रिशन पिए थे, लेकिन मुझे बैचेनी महसूस हो रही थी. मैं जब सुबह उठी, तो वॉमिटिंग जैसा महसूस हुआ. मुझे दर्द हो रहा था. मेरे शरीर में कुछ नहीं था. आखिरकार मैंने वॉमिटिंग कर दी. स्टेडियम तक बस राइड के दौरान, मैंने अपनी फिज़ियो से पूछा कि मुझे क्या करना चाहिए. पहले बाउट के बाद मैंने सॉल्ट कैप्सूल ली. कुछ ठीक नहीं हुआ. फिर एक और ली. मैं कुछ खा भी नहीं सकती थी, क्योंकि वॉमिटिंग जैसा महसूस हो रहा था. मैंने ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ की, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा. मुझे ये फील नहीं रहो था कि मैं कंट्रोल में हूं. मैं कांप रही थी. दूसरे बाउट में, मैं जानती थी कि मैं हार रही हूं. मैं देख रही थी कि सबकुछ जा रहा है, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकती थी. मेरा दिमाग इस लेवल तक ब्लॉक हो गया था कि मैं ये नहीं जानती थी कि टेकडाउन को कैसे पूरा करूं. मुझे हैरानी है कि मैं ब्लैंक्ड आउट हो गई."

ये तो विनेश ने बताया कि बाउट वाले दिन, माने टोक्यो में क्वार्टर फाइनल्स वाले दिन वो शारीरिक तौर पर क्या महसूस कर रही थीं. इसके बाद उन्होंने मानसिक पहलुओं पर भी बात की. कहा-

"मैं एक भावुक व्यक्ति हूं. मैंने जब 2019 में वेट बदला था, तब मैं डिप्रेशन का शिकार हुई थी, तीन महीनों तक. मैं स्पेन में थी, मैं सो नहीं पाती थी. लखनऊ आई, तो ये और बुरा हो गया. अगर कोच थोड़ा सा भी हाई पिच में बोलते, तो मैं रोने लगती थी. एक एथलीट के तौर पर, हमारे ऊपर मेंटल प्रेशर इतना होता है कि हम हमेशा उस थिन लाइन पर होते हैं. और जब वो लाइन क्रॉस होती है- वी आर डन. उस वक्त मैं ट्रेनिंग कर रही थी और इससे सफर भी कर रही थी. एशियन चैम्पियनशिप में मैं चोटिल हो गई. तब मुझे लगा कि ये मुझे खत्म कर देगा. मैंने सायकोलॉजिस्ट से बात की. मुझे इमोशनल सपोर्ट चाहिए था, इसलिए मुझे बोलना ज़रूरी था. परिवार में हर किसी ने मेरी मदद की, लेकिन सब कुछ एक्सप्रेस नहीं कर सकती, जो मेरे अंदर चल रहा है. मैंने अपने सायकोलॉजिस्ट से कहा कि मैं बहुत इमोशनल हूं और वो थिन लाइन मैं क्रॉस कर सकती हूं. आपको लगता है कि मेडिटेशन करना और सायकॉलजिस्ट से बात करना काफी है? काफी नहीं है. केवल हम जानते हैं. अब, मुझे रोने में मुश्किल होती है. मेरे अंदर इस वक्त ज़रा भी मेंटल स्ट्रेंथ नहीं है. उन्होंने मुझे मेरी हार का पछतावा भी नहीं करने दिया. हर कोई अपने चाकुओं के साथ तैयार था. कम से कम मेरी हार की वजह से टीम के लोगों को तो अब्यूज़ मत करो. वो मेरे से ज्यादा दर्द महसूस कर सकते हैं, उन्होंने शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत मेहनत की."


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विनेश फोगाट से टोक्यो ओलंपिक्स में बहुत उम्मीद थी, लेकिन जब वो हार गईं, तो जनता ने उन्हीं के खिलाफ काफी कुछ लिखा था.

विनेश ने आगे कहा कि वो ये कभी एक्सेप्ट नहीं करेंगी कि वो प्रेशर में थीं या मेंटली डिस्टर्ब्ड थीं. और वो अपनी जर्नी की वजह से ही इमोशनल हुई हैं. वो आगे कहती हैं-

"मैंने बहुत मेहनत की थी. मैंने खुद को इनवेस्ट किया था. पैसे? मैं आपको पैसे देती हूं. जाओ जाकर रेसलिंग करो और नतीजा लाकर दिखाओ. मैं काफी कठोर व्यक्ति हूं और अगर मैं इस लेवल तक टूट सकती हूं, तो सोचिए उन एथलीट्स का क्या हो रहा होगा, जो खाली हाथ लौटे हैं. अगर उनमें से कोई मजबूत न हो, तो सोचिए. जब सिमोन बाइल्स ने ये कहकर परफ़ॉर्म नहीं किया कि वो मेंटली तैयार नहीं थीं, तब हमने सेलिब्रेट किया. भारत में आप ये कहकर तो देखो. रेसलिंग को भूल जाओ, बस कहकर देखो कि आप तैयार नहीं हो. जबसे मैं घर आई हूं मैं मेंटली रिकवर नहीं हो पाई हूं."

विनेश कहती हैं कि उन्हें अभी भी ऐसा लग रहा है कि जैसे वो कोई सपना देख रही हों, वो ब्लैंक सा महसूस कर रही हैं. उन्हें नहीं पता कि ज़िंदगी में क्या हो रहा है. वो कहती हैं कि उन्होंने रेसलिंग को सबकुछ दिया और अब छोड़ने का वक्त आ गया है. लेकिन दूसरी तरफ अगर वो ये छोड़ती हैं और फाइट नहीं करतीं, तो ये उनके लिए बड़ा नुकसान होगा. विनेश को नहीं पता कि अब वो कब मैट पर लौटेंगी. हो सकता है कि कभी न लौटें. उनका शरीर नहीं टूटा है, लेकिन वो अंदर से पूरी तरह टूट चुकी हैं.

आखिर में विनेश की वो बात भी उन्हीं के शब्दों में हम बताएंगे, जो हमें सबसे ज्यादा अहम लगी. वो कहती हैं-

"मैं इस वक्त अपने परिवार पर फोकस करना चाहती हूं. लेकिन बाहर हर कोई मेरे से इस तरह बर्ताव कर रहा है, जैसे मैं कोई मरी हुई चीज़ हूं. वो कुछ भी लिखते हैं... मैं जानती थी कि भारत में, आप उतनी ही तेज़ी से नीचे गिरते हो, जितनी तेज़ी से ऊपर उठे थे. एक मेडल चला गया और सबकुछ खत्म हो गया."

मेंटल हेल्थ पर बात क्यों ज़रूरी?

विनेश वो प्लेयर हैं, जो दो बार कोविड-19 का शिकार हुई थीं. ये बीमारी शरीर को अंदर तक तोड़ देती है. फिर भी विनेश ने हिम्मत दिखाई. तैयारी की और टोक्यो पहुंचीं. उन्होंने साफ तौर पर बताया कि बाउट वाले दिन वो ठीक महसूस नहीं कर रही थीं. हार गईं. लेकिन उसके बाद जो उनके साथ लोगों ने रवैया रखा, उसने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया. आप इसे विनेश का एक ओपन लेटर मान सकते हैं जो उन्होंने हम सबके लिए लिखा. इसी के साथ ही एक बार फिर मेंटल हेल्थ के मुद्दे पर हमें बात करने की ज़रूरत महसूस हुई. ये ज़रूरत तब भी महसूस हुई थी, जब एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत हो गई थी. वो डिप्रेशन का शिकार थे. उनके जाने के बाद हमने और आपने मेंटल हेल्थ पर बात की थी, लेकिन फिर हमारे ही बीच के लोगों ने रिया चक्रवर्ती की मेंटल हेल्थ की किस तरह से बैंड बजाई थी, वो भी हम देख चुके हैं. लेकिन ये मुद्दा ऐसा है, जिस पर हमें जब भी ज़रूरत लगे खुलकर बात करनी चाहिए.


Simone Biles
सिमोन बाइल्स यूएस की बड़ी जिमनास्ट हैं.

टोक्यो में ही यूएस की फेमस जिमनास्ट सिमोन बाइल्स ने टीम ईवेंट का फाइनल मेंटल हेल्थ के चलते ही छोड़ दिया था. हमने उनकी भी तारीफ की थी. क्योंकि उन्होंने मेंटल हेल्थ को तवज्जो दी थी. क्योंकि वो भी कहीं न कहीं अपने ऊपर बहुत ज्यादा प्रेशर फील कर रही थीं, ये बात खुद सिमोन ने अपने एक इंस्टाग्राम पोस्ट के ज़रिए कही थी. इसके पहले फेमस टेनिस प्लेयर नाओमी ओसाका ने भी फ्रेंच ओपन में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से मना कर दिया था. क्योंकि वो इस कॉन्फ्रेंस का अपने दिमाग पर गलत असर नहीं होने देना चाहती थीं. वो अलग बात है कि उनके ऊपर फाइन लगाया गया. लेकिन हमने नाओमी के फैसले की भी तारीफ की थी. इसके अलावा कुछ महीनों पहले विनेश फोगाट की भी एक कज़िन सिस्टर ने सुसाइड कर लिया था, इस सुसाइड के पहले खेला गया आखिरी मैच वो हार गई थीं, कहा जा रहा था कि इसी हार के बाद उन्होंने ये कदम उठाया था. हमने तब भी मेंटल हेल्थ पर बात की थी.

कैसे डील करें मेंटल प्रेशर से?

हर एथलीट, हर खिलाड़ी के ऊपर एक अलग तरह का परफॉर्मेंस प्रेशर होता है. अक्सर हमारे खिलाड़ियों के लिए कहा जाता है कि वो स्टेज पर बिखर जाते हैं. उसके मन में हमेशा ये चलता रहता है कि उसे अच्छा करना, पिछली हार या जीत से अच्छा. बेहतर, जितना ज्यादा हो सके. ऐसे में एक पॉइंट पर वो टूटता हुआ भी दिखता है. और जब वो हार जाता है, तो उसके ऊपर और भी प्रेशर बढ़ जाता है. जैसे इस वक्त विनेश के साथ हो रहा है. वो खुद कह रही हैं कि वो टूटा हुआ महसूस कर रही हैं. इसलिए इस मुद्दे को और गहराई से जानने के लिए हमने बात की कुछ सायकोलॉजिस्ट, एक्ट्रेस और स्टैंडअप कॉमेडियन से.

मेंटल प्रेशर से कैसे डील किया जाए. इसका जवाब हमें दिया स्पोर्ट्स सायकोलॉजिस्ट अबीर लवासा ने, जिनसे हमारे साथी नीरज ने बात की. उन्होंने कहा-

"स्पोर्ट्स में अगर हमें हाई लेवल पर परफॉर्म करना है तो हमें सिंगल माइंडेड गोल पर ध्यान देना होता है. इसके लिए बहुत कोशिश करनी पड़ती है. ये एक फिज़िकल फिटनेस, स्पोर्ट्स स्किल्स, टेक्टिकल होना बहुत ज़रूरी है. अगर आपमें पहली तीन चीज़ें नहीं है, और आप मेंटली बहुत टफ हो, तो वो परफॉर्मेंस नहीं आएगी. ये तीन चीज़ तैयार होंगी तभी आपका मेंटल लेवल आपको गेम में परफॉर्म करने में मदद करेगा. सायकोलॉजी में दो पहलू है, एक नॉर्मल लाइफ की, एक स्पोर्ट्स की, जिसे हम परफॉर्मेंस सायकोलॉजी कहते हैं. इसमें बहुत से पहलू हैं. हमें पता होना चाहिए कि हमारा गोल क्या है. फिर इससे हमारे में मोटिवेशन आता है. मोटिवेशन इंटर्नल हो सकता है या एक्टर्नल. क्या पता आप बाहर के लोगों को देखकर प्रभावित होते हों. गोल सेटिंग, कॉन्फिडेंस, परफॉर्मेंस, प्रैक्टिस, ये बहुत सारे पहूल हैं. लेकिन सबसे ज़रूरी बात ये है कि हमें ग्रास रूट लेवल पर कैसे स्ट्रॉन्ग होना है."


Abir Lavasa
अबीर लवासा, स्पोर्ट्स सायकोलॉजिस्ट

बॉलीवुड के कई एक्टर-एक्ट्रेस भी मेंटल हेल्थ के मुद्दे पर लगातार बोलते आए हैं. दीपिका पादुकोण ने तो खुद बताया है कि वो डिप्रेशन का शिकार हुई थीं. आलिया भट्ट ने भी करीब दो साल पहले बताया था कि उन्हें एंग्ज़ायटी होती है और वो बिना वजह रोती हैं. ये जानने के लिए कि जो लोग पब्लिक के बीच रहते हैं, माने सेलिब्रिटी या कोई नामी व्यक्ति, उनके ऊपर किस तरह का प्रेशर होता है. उन्हें किस तरह के मेंटल प्रेशर का सामना करना पड़ता है और इससे वो कैसे डील करते हैं. हमारे साथी नीरज ने बात की एक्ट्रेस कुब्रा सैत ने. उन्होंने कहा-

"पहले मैं एंकर थी. फिर एक्टिंग में आई. लोग कहते थे अरे आप तो एंकर हो, आप एक्टिंग नहीं कर पाओगे. तो मैं वहां चुप हो जाती थी. फिर मैं अपने आप में सवाल के जवाब ढूंढने की कोशिश करती थी. अपना खुद का रास्ता बनाने की कोशिश करती थी. मैंने अपनी लाइफ में इतनी मशक्कत कर ली है कि आजकल मैं इन चीज़ों का प्रेशल लेती नहीं हूं. क्योंकि अगर किसी का चेहरा ही नहीं है, केवल शब्द हैं, तो शब्द की तो कमी है ही नहीं. अगर किसी में ज़िम्मेदारी नहीं है उन शब्दों का इस्तेमाल करने की. तो मैं अपने ऊपर ये प्रेशर नहीं ले सकती की दुनिया क्यों खराब है. दूसरी चीज़ मैंने ये रियलाइज़ की है कि मैं खुद हर हफ्ते अपने काउंसलर से बात करती हूं. इसलिए नहीं कि मुझे लाइफ में कोई बड़ी प्रॉब्लम है. वो इसलिए क्योंकि आप जहां भी देखो, आजकल इतना हाई परफॉर्मेंस प्रेशर है किसी भी चीज़ के लिए. जिस दिन आप अपने प्रेशर को दूसरों के विचारों पर पुश करने लगोगे, तो मुझे लगता है कि ये आपके लिए या मेरे लिए लॉन्ग रन में नहीं चल सकता. उतना ज्यादा चांस है कि हम टूट जाएंगे. हम रुक ही नहीं पाएंगे. मैं ऐसी सिचुएशन में हूं आज मुझे ये प्रेशर लेना ही नहीं है."


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कुब्रा सैत, एक्ट्रेस

लड़कियों की बात करें, तो उनके ऊपर प्रेशर थोड़ा ज्यादा ही होता है. क्योंकि वैसे भी उन्हें पुरुषों के मुकाबले आगे बढ़ने और अपने मन का कुछ करने का मौका कम ही मिलता है. ऐसे में अगर वो हार जाएं, तो उनके जेंडर को लेकर टारगेट किया जाता है. ऐसे में मेंटल हेल्थ पर भी असर पड़ता है. लेकिन फिर भी ये ज़रूरी है कि हम इससे लड़ते हुए आगे बढ़ें. स्पोर्ट्स हो या कॉर्पोरेट लाइफ. लड़कियों के लिए चैलेंज अलग होते हैं. कॉर्पोरेट लाइफ के चैलेंज जानने के लिए आपको शेरिल सैंडबर्ग की कीताब 'लीन इन' ज़रूर पढ़ना चाहिए. ये किताब वर्कप्लेस में होने वाले लैंगिक भेदभाव पर बात करती है. साथ ही ये भी बताती है कि इस चैलेंज से कैसे डील किया जाए.

इसके अलावा हमने इस मुद्दे पर फेमस स्टैंड-अप कॉमेडियन नीति पलटा से भी बात की. उनसे पूछा कि चूंकि वो एक पब्लिक फिगर हैं, वो जो करती हैं वो जनता के सामने आता ही है, ऐसे में उनके ऊपर क्या प्रेशर होता है और वो कैसे डील करती हैं. उन्होंने कहा-

"बचपन में घर पर लड़का-लड़की वाला फर्क नहीं हुआ. लेकिन जब मैं कॉमेडी में आई, तो लोगों ने कहा कि लड़कियां को फनी होती ही नहीं हैं. मैंने कहा पहले बोलना था, मैं तो अब हो गई फनी. क्योंकि ये एक बड़ी ही अजीब बात लगती है. हम जब स्टेज पर होते हैं तो हम सिर्फ लोगों को हंसाना चाहते हैं. लेकिन लोगों के दिमाग में चल रहा होता है कि लड़का है तो फनी है, लड़की है तो फनी नहीं है. ऐसा प्रेशर होता है. हमारे कुछ दिन अच्छे होते हैं, कुछ दिन बुरे. हर फील्ड में होता है. लेकिन अगर हमारा कोई एक शो अच्छा नहीं हुआ, तो लड़कियों के लिए सीधे ये कह देते हैं कि सारी लड़कियां ही फनी नहीं हैं. कॉमेडी करते हुए, पब्लिक लाइफ में आते हुए, चमड़ी कहीं न कहीं मोटी हो ही गई है. या करनी ज़रूरी हो जाती है. मैं सिर्फ ये कहूंगी कि खुद पर विश्वास रखो, बाकी अपने आप सब हो जाता है."


Niti Palta
नीति पाल्टा, स्टैंडअप कॉमेडियन

नीति ने लड़कियों के लिए एक खास सलाह भी दी. बताया कि मेंटल हेल्थ का ख्याल रखते हुए कैसे आगे बढ़ा जाए. वो कहती हैं-

"बचपन में लड़कियों की कंडिशनिंग ही ऐसी होती है कि बड़े होने पर खुद से ही उनका विश्वास कम हो जाता है. तो सबसे पहले चीज़ है खुद में विश्वास बढ़ाओ. ऐसी चीज़ें करो, जिसमें आप अच्छे हों. खुद को निगेटिविटी से दूर रखें. आपको समझना होगा कि जो क्रिटिसिज़म आपको मिल रहा है वो आपकी बेहतरी के लिए है या फिर नीचा दिखाने के लिए."

अगर हमें कोई शारीरिक चोट लगती है, तो हम तुरंत डॉक्टर के पास जाते हैं. लेकिन जब मेंटल हेल्थ की बात आती है, तो हम टालते हैं. इसकी तरफ कम ही ध्यान दिया जाता है. ऐसा क्यों? और मेंटल हेल्थ को लेकर भी कैसी अर्जेंसी होने की आज हमें ज़रूरत है, इसका जवाब हमें दिया मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट डॉक्टर अखिल अग्रवाल ने-

"हम एक विकसित भारत की बात करते हैं, लेकिन फिर भी हमारे देश में मेंटल हेल्थ को लेकर बहुत टैबू है. हम डरते हैं कि कहीं लोग हमें पागल न कह दें. कहीं लोग हमें पागलों के डॉक्टर के पास जाने वाला न बोल दें. जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. मेंटल हेल्थ आपके फिज़िकल हेल्थ से ज्यादा ज़रूरी है. क्योंकि अगर मन खुश रहेगा, संतुलित रहेगा, तभी आप शारीरिक काम अच्छे से कर पाएंगे. लेकिन हम इसे छिपाते हैं. ये जानना कि कब आपको मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट से कंसल्ट करना है, उसके लिए फाइनल लाइन ये है कि अगर आपकी लाइफ में कुछ ठीक नहीं चल रहा है, तो कंसल्ट करिए. यानी हम चीज़ों को खराब होने पर ही क्यों जाएं. कभी भी लगे कि मन में खुशी नहीं है, घबराहट, बैचेनी, चिंता है, या आप अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे, कहीं कोई डर बना हुआ है, तो कंसल्ट करिए."


Sexual Harassment In Covid Time (3)
डॉ. अखिल अग्रवाल, मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट

हम चाहते हैं कि हर कोई मेंटल हेल्थ और मेंटल प्रेशर को लेकर सेंसिटिव हो. हर कोई ये समझे कि एख खिलाड़ी भी इंसान है.