गुड न्यूज फिल्म का ट्रेलर भले ही हल्का फुल्का लग रहा हो, IVF अपने आप में एक बेहद संवेदनशील और ज़रूरी विषय है. न जाने कितने ही लोगों के लिए इस ट्रीटमेंट ने एक उपाय बनकर उनकी ज़िन्दगी सुधारी है. समय के साथ इससे जुड़ा हुआ टैबू भी कम हुआ है. इसका सुबूत आस-पास खुल रहे फर्टिलिटी क्लिनिक्स हैं. (तस्वीर: बायीं तरफ Good Newwz फिल्म का पोस्टर/ बीच में फर्टिलाइजेशन की सांकेतिक तस्वीर/दायीं तरफ विकी डोनर फिल्म का पोस्टर)
करीना कपूर, कियारा आडवाणी, अक्षय कुमार, और दिलजीत दोसांझ की नई फिल्म आ रही है. नाम है गुड न्यूज. ट्रेलर रिलीज हो चुका है. लब्बोलुआब ये है फिल्म का कि इसमें दो कपल IVF के लिए जाते हैं. लेकिन जिस हॉस्पिटल में जाते हैं वहां पर मिक्स एंड मैच की वजह से गड़बड़ हो जाती है. ट्रेलर देख लीजिए, आप समझ जाएंगे हम किस बारे में बात कर रहे हैं.
ठीक. अब इसमें IVF की बात हुई. आपने भी होर्डिंग वगैरह देखे होंगे सड़कों के किनारे. निःसंतान दम्पतियों के लिए. इनमें दावा किया जाता है कि IVF के ज़रिए बच्चा पैदा करवाया जाएगा. लेकिन ये IVF होता क्या है? कोई जादू की छड़ी है? जिससे बच्चे पैदा हो जाते हैं?
आइये तफ़सील में समझते हैं.सबसे पहले तो मतलब इसका. IVF का फुलफॉर्म है- In Vitro Fertilization. यानी कृत्रिम गर्भाधान. अब आप कहेंगे ये 'इन विट्रो' क्या बला है. मतलब क्या है इसका. तो हम कहेंगे कि आगे पढ़िए.
इस तस्वीर में देख सकते हैं कि किस तरह एक सीरिंज के ज़रिए स्पर्म भेजकर महिला के अंडाणु को फर्टिलाइज किया जा रहा है. (सान्केइत्क तस्वीर: Firstcry)फर्टिलाइजेशन समझ लीजिए पहलेस्कूल में ये वाला चैप्टर टीचर ने छोड़ दिया होगा. मगर आपने खुद पढ़ डाला होगा. टीचर के पढ़ाने के पहले ही. तो ये तो आपको पता ही होगा कि बेबी बनता कैसे है.
दिल्लगी ने दी हवा
थोड़ा सा धुआं उठा
और आग जल गई
तेरी मेरी दोस्ती
प्यार में बदल गई
प्यार परवान चढ़ते ही हीरो, हिरोइन से मिलने निकलता है. माने स्पर्म. औरत के अंदर अगर उसकी मुलाक़ात अंडे से हो गई तो बनता है जायगोट. जो बड़ा होकर बनता है भ्रूण. और बड़ा होकर बनता है बेबी. ये तो हुआ फर्टिलाइजेशन. मगर कौन सा फर्टिलाइजेशन?
किसी भी जीव के अंदर प्राकृतिक रूप से होने वाले फर्टिलाइजेशन को
इन-वीवो फर्टिलाइजेशन कहते हैं. अरे वीवो के फोन आते हैं न. सेल्फी खींचने वाले. उच्चारण वही है.
अब बात इन-विट्रो कीये शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है. लैटिन में 'विट्रो' का मतलब होता है ग्लास. कांच. इन विट्रो यानी ग्लास के भीतर होने वाला. फर्टिलाइजेशन का मतलब तो पता ही चल गया है.
अब कई बार क्या होता है कि दिल्लगी हवा देती है. धुआं भी उठता है. आग भी जलती है. दोस्ती प्यार में भी बदलती है. मगर 'कुचीकू' बेबी में नहीं बदलता. वजह कुछ भी हो सकती है. जिसके लिए पूरी दुनिया आपको बुरा महसूस करवाने पर तुल जाती है. जबकि ऐसा होना एकदम प्राकृतिक है.
खैर, दुनिया की बात और कभी. कंसीव न कर पाने की हालत में या अपनी ज़रूरत के हिसाब महिला IVF के लिए जा सकती है. अब काम आता है 'विट्रो' यानी कांच की ट्यूब. पुरुष के स्पर्म और महिला का एग लेकर सही तापमान पर उनका मिलन कांच की ट्यूब या तश्तरी में करवाया जाता है. मिलन पर भ्रूण बनने लगता है. फिर इस भ्रूण को महिला के यूट्रस में रख दिया जाता है. जिससे वो आने वाले समय में प्राकृतिक तरीके से बढ़ सके.
इस तस्वीर में हाथ में पकड़ी हुई जो प्लेट जैसी चीज है, उसे पेट्री डिश कहते हैं. साइंस के प्रयोगों में काम आती है. (सांकेतिक तस्वीर: IVI UK)अब कुछ जायज़ सवाल जो आपके दिमाग में आ रहे होंगेपहला सवाल. इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन की जरूरत किसे पड़ती है?जवाब. आम तौर पर वो कपल जो साधारण तरीके से बच्चे पैदा ना कर पा रहे हों. कंसीव ना कर पाने की कई वजहें होती हैं.
जैसे: महिला के यूट्रस में कोई दिक्कत, पुरुष का स्पर्म काउंट कम होना या महिला के अंडाणु यानी एग्स का न होना. या कमज़ोर होना. भाई हॉर्मोन किसी के सगे नहीं होते. धोखा दे जाएं तो?
दूसरा सवाल. यूट्रस कमज़ोर हो तो वो इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन करवाकर भी बेबी कैसे पाल पाएगी?जवाब. अगर महिला के यूट्रस में ऐसी दिक्कत है कि वो बच्चा कैरी नहीं कर सकती, तो फिर सरोगेट की मदद ली जाती है. सरोगेट वो महिला होती है जो किसी और कपल के स्पर्म और एग से बने भ्रूण को अपने यूट्रस में बड़ा करती है, जन्म देती है. ये महिला कौन हो सकती है, इसपर संसद में भारी डिस्कशन भी हुआ है. जिसके बारे में आप विस्तार से
यहां पढ़ सकते हैं
.तीसरा सवाल. अगर पापा का स्पर्म मम्मा का एग ही कमज़ोर है, तो कैसे होगा बेबी?अगर पुरुष के स्पर्म कमज़ोर हों, या फिर उसे कोई ऐसी जेनेटिक बीमारी हो जो आगे चलकर बच्चे को होने की आशंका हो तो किसी और के स्पर्म लिए जाते हैं ('विकी डोनर' देखी है न?). फिर फर्टिलाइजेशन करवाके भ्रूण बनाया जाता है. इसी तरह औरत का एग कमज़ोर हो तो किसी और महिला का एग लिया जा सकता है.
जो लोग काफी कोशिश करने के बाद भी कंसीव नहीं कर पाते, उनकी मदद के लिए IVF कई ऑप्शन उपलब्ध कराता है. (सांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे)चौथा सवाल. सबकुछ हेल्दी हो, मगर रास्ते में जाम लगा हो तो?ये मुमकिन है कि महिला की फैलोपियन ट्यूब्स में कोई ब्लॉकेज हो. यानी वो नली जिसमें फर्टिलाइजेशन होता है. इस वजह से एग्स और स्पर्म का मिलन न हो पा रहा हो. तो IVF से सीधे यूट्रस में बेबी रख दिया जाता है.
फीमेल रीप्रोडक्टिव अंग. (तस्वीर साभार: Nemours)पांचवा सवाल. कोई उम्र भी होती क्या IVF से बेबी करने की?अंडे तो एक उम्र के बाद कमज़ोर पड़ने लगते हैं. मगर कई महिलाएं जो बाद में बच्चा पैदा करने का ऑप्शन खुला रखना चाहती हैं, वो अपने एग्स फ्रीज करवा देती हैं. यानी शरीर से एग निकलवा कर उसे स्टोर करवा लेती हैं. फ्रीज करवाने से उनके एग्स ज्यादा लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं, और बाद में वो उनका इस्तेमाल तब कर सकती हैं जब उन्हें ज़रूरत हो. डॉक्टरों का मानना है कि 35 की उम्र तक हेल्दी प्रेग्नेंसी के चांस ज्यादा रहते हैं.
छठा और आखिरी सवाल. सक्सेस रेट क्या है?-अभी तक पूरी दुनिया में 80 लाख से भी ज्यादा बच्चे IVF के ज़रिए पैदा किए जा चुके हैं.
- पेन मेडिसिन की रिपोर्ट कके अनुसार 35 साल से कम उम्र की महिलाओं में IVF और इसकी साथ इस्तेमाल किए जाने वाले दूसरे प्रोसीजर्स की सफलता का रेट 21.3 फीसद है. ये उन मामलों के नम्बर हैं जिनमें महिलाओं के अपने एग्स इस्तेमाल किए गए.
- 2015 में भारत का IVF मार्केट लगभग 43 बिलियन डॉलर यानी 30 ख़रब रुपयों से भी ज्यादा है.
फन फैक्ट लूईस (बायीं ओर) और नैटली (दायीं ओर) अपने अपने बच्चों के साथ. (तस्वीर: डेलीमेल)IVF के ज़रिए पैदा हुई दुनिया की पहली बच्ची 1978 में जन्मी थी. अमेरिका में. नाम था
लुईस ब्राउन. वो आज भी जीवित हैं. चार साल बाद उनकी छोटी बहन नैटली भी IVF के ज़रिए ही पैदा हुईं. कमाल की बात ये है कि 1999 में अपने खुद के बच्चे को जन्म देने वाली पहली IVF बेबी नैटली ही थीं.
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