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दूसरी औरतों से पत्नी की तुलना करना मानसिक क्रूरता है: केरल हाई कोर्ट

पत्नी का आरोप- पति बदसूरत कहकर भाई की पत्नी से तुलना करता था.

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दूसरी औरतों से पत्नी की तुलना करना मानसिक क्रूरता (सांकेतिक फोटो)

पति का पत्नी को बार बार ताने देना, दूसरी महिलाओं से तुलना करना और ये कहना कि वो उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है. इस आधार पर तलाक हो सकता है. ये बात केरल हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस सीएस सुधा की डिविज़न बेंच ने तलाक के मामले पर फैसला देते हुए कही. फैसला 4 अगस्त को सुनाया गया गया था. कोर्ट ने 13 साल पहले अलग हो चुके एक कपल को तलाक की अनुमति दी.

इस मामले में पत्नी का आरोप था कि पति उसे लगातार ताने मारता है. कहता है कि वो बाकी लड़कियों जैसी खूबसूरत और क्यूट नहीं है, बकियों की तुलना में कमतर है. वो बार बार अपने भाई की पत्नी से भी तुलना करता था. दोनों की शादी जनवरी, 2009 में हुई थी. पति के तानों से परेशान होकर शादी के 10 महीने बाद ही पत्नी ने कोट्टायम के फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्ज़ी दी थी. फैमिली कोर्ट ने तलाक की अनुमति दे दी थी.

सांकेतिक तस्वीर 

फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पति ने केरल हाईकोर्ट में याचिका डाली. कहा कि शादी को दस महीने ही हुए थे और पत्नी ने जल्दबाजी में अलग होने का फैसला किया है. पति-पत्नी के अलग होने के 13 साल बाद केरल हाईकोर्ट पति की याचिका खारिज कर दी. कहा,

" लगातार पत्नी को ताने देना और दूसरी महिलाओं से उसकी तुलना करना मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है. पत्नी को ऐसी स्थिति में रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता"

पति का ताने कसना क्रूरता कैसे?

कोर्ट ने क्रूरता को परिभाषित करते हुए कहा कि 'मानसिक क्रूरता' की एक परिभाषा देना मुश्किल है. कोर्ट ने कहा कि क्रूरता के लिए ये ज़रूरी नहीं है कि शारीरिक हिंसा हुई हो. अगर पति के व्यवहार से मानसिक पीड़ा हुई है तो वो भी क्रूरता के दायरे में आएगा. ये समय और समाज की अवधारणा के हिसाब से बदलता रहता है.कोर्ट ने कहा,

“बुरा व्यवहार करना, उपेक्षा करना, वैवाहिक संबंध खत्म होना और कहना की पत्नी निर्गुण है मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है. भद्दी बातें, अपमानजनक बातें और गाली देना जिससे सामने वाले की मानिसक शांति भंग हो मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है. ऐसे में याचिकाकर्ता (यहां पत्नी) से अपमानजनक व्यवहार सहने की अपेक्षा नहीं की जा सकती.”

कोर्ट ने ये भी कहा कि शिकायत में कही गई बात 'गंभीर और वजनदार' होनी चाहिए ताकि इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके कि याचिकाकर्ता के अपने पार्टनर के साथ रह पाने की उम्मीद नहीं है. ये छोटी-मोटी लड़ाई का मसला नहीं होना चाहिए. इसके लिए बैकग्राउन्ड और परिरस्थिति को ध्यान में रखकर जांच होनी चाहिए तब ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है.

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