आप अपने लैपटॉप पर पांच-छह घंटों से लगातार काम कर रहे हैं. या कोई सीरीज़ निपटा रहे हैं. मूवीज़ पे मूवीज़ देखे जा रहे हैं. स्क्रीन पर आंखें जमी हुई हैं. नॉनस्टॉप. फिर कुछ घंटों बाद क्या होता है? आपकी आंखों में दर्द शुरू हो जाता है. उनसे पानी निकलने लगता है. हल्का धुंधला दिखाई पड़ने लगता है. सिरदर्द होने लगता है.
ब्लू लाइट से बचने के लिए चश्मा पहनना समझदारी या नादानी? ये सच हैरान कर देगा
अगर आप पढ़ाई कर रहे हैं तो Blue Light फायदा देगी. ये फोकस बढ़ाने में मदद करती है. जिससे पढ़ी हुई चीज़ लंबे वक्त तक याद रहती है. ऐसा डॉक्टर का कहना है.
अब इन सारी दिक्कतों के लिए आप ज़िम्मेदार ठहराते हैं ब्लू लाइट को. वही ब्लू लाइट, जो लैपटॉप-फोन से निकलकर हमारी आंखों में जाती है. जिससे बचने के लिए हम ब्लू कट चश्मे पहनते हैं. ताकि हमारी आंखें सेफ रहें. लेकिन, क्या वाकई ब्लू लाइट हमारे शरीर, हमारी आंखों के लिए ‘विलेन’ है? या फिर उसका कैरेक्टर ‘ग्रे’ है? माने थोड़ा अच्छा-थोड़ा बुरा.
आज डॉक्टर से यही जानेंगे. समझेंगे कि ब्लू लाइट क्या होती है? क्या इससे शरीर को कोई नुकसान है? क्या ये हमारी आंखों पर असर डालती है? और, ब्लू लाइट से बचने के लिए क्या करें?
ब्लू लाइट क्या होती है?
ये हमें बताया डॉ. प्रशांत चौधरी ने.
अगर सफेद लाइट को अलग-अलग हिस्सों में बांटा जाए तो लाल से लेकर नीली और बैंगनी लाइट तक पूरा स्पेक्ट्रम बन जाता है. बिल्कुल वैसा ही, जैसा रेनबो होता है. इस स्पेक्ट्रम में नीली और बैंगनी लाइट ‘हाई एनर्जी विज़िबल लाइट्स’ होती हैं. यानी किसी चीज़ पर पड़ने से इनकी एनर्जी सबसे ज़्यादा दूर तक जाती है. जब ये लाइट्स हमारी आंखों पर पड़ती है तो इनका प्रभाव सबसे ज़्यादा होता है.
क्या ब्लू लाइट से शरीर को कोई नुकसान होता है?
अगर आप ऐसे कमरे में हैं जहां वाइट लाइट से ब्लू लाइट हटा दी गई है तो आपका फोकस कम होगा. वहीं अगर किसी दूसरे कमरे में अच्छी ब्लू लाइट के साथ वाइट लाइट है तो ब्लू लाइट आपका ध्यान बढ़ाएगी. आप अपने काम को ज़्यादा देर तक एकाग्रता से कर पाएंगे. अच्छे से चीज़ें याद रख पाएंगे. यानी ब्लू लाइट हानिकारक नहीं है बल्कि पढ़ाई करने के लिहाज़ से बेहतर है. इसलिए जब भी आप पढ़ाई कर रहे हों, आपकी लाइटिंग में ब्लू लाइट होनी चाहिए.
कई बार कुछ बच्चों के चश्मे का नंबर बढ़ता जाता है. ऐसा उनके आईबॉल की लंबाई बढ़ने की वजह से होता है. जैसे-जैसे लंबाई बढ़ती है, वैसे-वैसे चश्मे का नंबर बढ़ता है. लेकिन ब्लू लाइट से आईबॉल की लेंथ स्थिर होती है. इसीलिए, बच्चों को दो घंटे घर से बाहर रहने के लिए कहा जाता है क्योंकि बाहर सूरज की रोशनी में ब्लू लाइट होती है. वास्तव में ब्लू लाइट तो चश्मे का नंबर बढ़ने से रोकती है. यानी अगर आप अपने बच्चे को ब्लू लाइट प्रोटेक्शन वाला चश्मा पहना रहे हैं तो उसके चश्मे का नंबर बढ़ रहा है, वो कम नहीं हो रहा.
क्या ब्लू लाइट से आंखों को कोई नुकसान होता है?
ब्लू लाइट पूरी आंख पर असर करती है. सबसे पहले वो आंख की ऊपरी सतह कॉर्निया पर पड़ती है. फिर कंजक्टिवा यानी आंख का जो सफेद हिस्सा है, उस पर पड़ती है. इससे आंखों में जलन और चुभन हो सकती है. अगर किसी को पहले से आंखों में ड्राईनेस की शिकायत है तो उनको दिक्कत हो सकती है. बुज़ुर्गों और कॉन्टैक्ट लेंस पहनने वालों को ब्लू लाइट से आंखों में जलन हो सकती है. आंखों में ड्राईनेस भी बढ़ सकती है.
इसके बाद नंबर आता है आंखों के लेंस का. अगर इंसान सालों तक ब्लू लाइट का इस्तेमाल करता रहे तो मोतियाबिंद हो सकता है. हालांकि ये किसी रिसर्च में साबित नहीं हुआ है, सिर्फ एक संभावना है.
अक्सर लोग कहते हैं कि अगर ब्लू लाइट रेटिना यानी आंखों के पर्दे पर पड़े तो उसको नुकसान पहुंचता है. हालांकि इसका भी कोई सबूत नहीं है. अगर हम अपने फ़ोन की ब्राइटनेस बढ़ा भी लें तो भी ब्लू लाइट की तय लिमिट के 0.38 परसेंट तक ही लाइट पहुंचती है. वहीं नीले आसमान को देखने पर आंखों में 10 परसेंट तक ब्लू लाइट पहुंच जाती है. यानी ऐसा कोई प्रूफ नहीं है कि ब्लू लाइट से आंखों के पर्दों पर बुरा असर पड़ता है.
वहीं, ब्लू लाइट से आंखों का प्रेशर नॉर्मल रहता है. मगर ब्लू लाइट ब्लॉक करने से आंखों का प्रेशर बढ़ सकता है. यानी ब्लू लाइट आंखों को थोड़ा नुकसान भी पहुंचाती है और फायदा भी करती है. हां, अगर आपकी आंखों में ड्राईनेस है. आप कंप्यूटर बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं तो अपने आपको ब्लू लाइट से बचाकर रखें. हालांकि बच्चों को ब्लू लाइट प्रोटेक्शन देने की ज़रूरत नहीं है. इससे उनकी सजगता कम होगी और उनके चश्मे का नंबर बढ़ने का चांस ज़्यादा होगा.
ब्लू लाइट से बचने के लिए क्या करें?
जो लोग कंप्यूटर पर बहुत ज़्यादा काम करते हैं या जिन्हें आंखों में ड्राईनेस है, वो ब्लू लाइट प्रोटेक्शन लें. ऐसे लोगों को ब्लू कट ग्लासेज़ का इस्तेमाल करना चाहिए.
वैसे तो ब्लू लाइट के अपने फ़ायदे और नुकसान हैं. लेकिन, इसके ज़्यादा इस्तेमाल से आंखों को नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में जो लोग कंप्यूटर, मोबाइल का ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं, वो 20-20-20 रूल फॉलो करें. यानी हर 20 मिनट बाद किसी 20 फीट दूर रखी चीज़ को 20 सेकेंड के लिए देखें. इससे आंखों को रिलैक्स होने का समय मिल जाता है. वो सेफ रहती हैं.
एक बात और. जैसा डॉक्टर साहब ने बताया, ब्लू लाइट से फोकस बढ़ता है. इसलिए एक्सपर्ट्स सोने से पहले कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करने से रोकते हैं. क्योंकि नींद से ठीक पहले ज़रूरी है आपके दिमाग का रिलैक्स होना ताकि नींद आ सके. ब्लू लाइट में वो पॉसिबल नहीं है. इसलिए सोने से पहले, ब्लू लाइट से दूरी बना लें.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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