8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस था. दिनभर इसके सेलिब्रेशन से जुड़ी खबरें आती रहीं. कहीं पर किसी बड़े नेता या अधिकारी ने औरतों को सम्मानित किया, कई ऑनलाइन और ऑफलाइन स्टोर्स ने औरतों को स्पेशल ऑफर्स दिए. इसी दिन देश का एक इलाका ऐसा भी था, जहां विमन्स डे के सेलिब्रेशन के दौरान एक आदिवासी महिला को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. पुलिस का कहना है कि महिला पहले कुछ नक्सली हमलों में शामिल रह चुकी है. वहीं कुछ सोशल एक्टिविस्ट्स महिला की गिरफ्तारी को गलत बता रहे हैं और पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ आवाज़ भी उठा रहे हैं. इन सामाजिक कार्यकर्ताओं में सोनी सोरी का नाम भी शामिल है. घटना छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा ज़िले की है. गिरफ्तार हुई महिला का नाम है हिड़मे मरकाम. इस गिरफ्तारी को लेकर पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं. क्या है पूरा मामला? हिड़मे पर क्या गंभीर आरोप लगे हैं? और दंतेवाड़ा पुलिस ने ऐसी क्या सफाई दी है, जो लोगों को हजम नहीं हो रही? सारे सवालों के जवाब जानेंगे एक-एक करके.
दंतेवाड़ा की इस औरत ने ऐसा क्या किया था कि उसे 300 लोगों के बीच से घसीटकर ले गई पुलिस?
पुलिस का दावा- नक्सली गतिविधियों में शामिल थी हिड़मे मरकाम

Hidme Markam की गिरफ्तारी क्यों हुई?
'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, दंतेवाड़ा के समेली इलाके में आस-पास के गांव की औरतें 8 मार्च के दिन इकट्ठा हुईं. एक इवेंट में शामिल होने के लिए. इस इवेंट में जेल बंदी रिहाई कमिटी और छत्तीसगढ़ महिला अधिकार मंच के लोग भी शामिल थे. तभी पुलिस वहां पहुंची और 30 बरस की हिड़मे को गिरफ्तार करके ले गई. उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें 19 मार्च तक के लिए जुडिशियल रिमांड में भेज दिया गया. दंतेवाड़ा पुलिस कह रही है कि हिड़मे के खिलाफ नक्सल एक्टिविटी से जुड़े पांच अपराध दर्ज हैं, जिनका स्टेटस अभी पेंडिंग है. ये मामले साल 2016 की शुरुआत से दर्ज हुए. वहीं एक्टिविस्ट्स इन सारी बातों को खारिज कर रहे हैं और हिड़मे को एक सामाजिक कार्यकर्ता कह रहे हैं. यानी इस केस में दो पक्ष सामने आ रहे हैं. हम एक-एक करके दोनों पक्षों के बारे में आपको बताते हैं. पहले बात पुलिस की.
दंतेवाड़ा पुलिस क्या कहती है?
दंतेवाड़ा के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (SP) हैं अभिषेक पल्लव. उनका कहना है-
"उसके यानी हिड़मे के खिलाफ IPC, आर्म्स एक्ट, एक्सप्लोसिव एक्ट और UAPA की कुछ धाराओं के तहत पांच नक्सली अपराध पेंडिंग हैं. उसके ऊपर 1 लाख 10 हज़ार का इनाम भी घोषित था. पुलिस मुखबिर होने के शक में तीन गांववालों की हत्या हुई थी, इस हत्या में हिड़मे का भी हाथ था. दंतेवाड़ा के अरनपुर पुलिस के तहत आने वाले इलाके में हिड़मे के नाम के कई बैनर और पोस्टर्स भी लगाए गए थे. उसका आत्मसमपर्ण करवाने के लिए गांव के सरपंच की भी सलाह ली गई थी. स्पॉट करने वालों ने जब हिड़मे की पहचान की, तब उसके खिलाफ ज़रूरी कानूनी कार्रवाई की गई. साल 2016 की शुरुआत से उसके खिलाफ मामले दर्ज थे, यानी वो कम से कम छह सालों से एक्टिव थी."
'ऑडनारी' को SP ने बताया कि अरनपुर थाने में हिड़मे मरकाम के खिलाफ 2016 से लेकर 2020 तक पांच बार केस दर्ज हुए थे. जिन सेक्शन्स के तहत केस हो रखे हैं, उनमें मुख्य तौर पर IPC की धारा 147 यानी उपद्रव, सेक्शन 302 यानी हत्या, सेक्शन 364 यानी हत्या के मकसद से किसी का अपहरण करना, सेक्शन 307 यानी कुछ ऐसा काम करना, जिससे किसी व्यक्ति की हत्या हो जाए, सेक्शन 506 यानी धमकी, 366 यानी किसी महिला की ज़बरन शादी करवाने के लिए उसका अपहरण, शामिल हैं. इसके अलावा हिड़मे पर पुलिस को जान से मारने के लिए फायरिंग और विस्फोट करने की घटना में शामिल होने के भी आरोप हैं. 'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, बस्तर डिविज़न के IG पी सुंदरराज का कहना है कि हिड़मे को गिरफ्तार करने के लिए पहले भी कोशिशें हो चुकी थीं, लेकिन वो फरार चल रही थीं.

दंतेवाड़ा SP अभिषेक पल्लव.
दूसरा पक्ष क्या कहता है?
पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़, (PUCL) छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ महिला अधिकार मंच और सोनी सोरी ने मिलकर एक जॉइंट स्टेटमेंट निकाला. जिसमें ये दावा किया गया कि हिड़मे मरकाम नक्सली नहीं, बल्कि एक्टिविस्ट हैं. प्रेस नोट में कहा गया,
"हिड़मे एंटी-माइनिंग और ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट हैं. महिला दिवस के प्रोग्राम के दौरान उनका अपहरण कर लिया गया. ये प्रोग्राम, कवासी पांडे और कवासी नंदे नाम की दो औरतों की याद में किया गया था. जो छत्तीसगढ़ पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स के द्वारा कस्टडी के दौरान यौन हिंसा और शारीरिक हिंसा का शिकार हुई थीं, जिसके चलते उन्हें मजबूरी में अपनी जान लेनी पड़ी. हिड़मे को करीब 300 गांववालों और कार्यकर्ताओं के सामने घसीटकर ले जाया गया. इस गिरफ्तारी का विरोध भी कार्यकर्ताओं ने किया, सोनी सोरी ने भी किया, लेकिन उन्हें धक्का देकर अलग कर दिया गया. ये नोट करना ज़रूरी है कि हिड़मे अपने इलाके में पैरामिलिट्री कैम्प्स बनाने का विरोध कर रही थीं और जेल बंदी रिहाई कमिटी की संयोजक के तौर पर उन्होंने गवर्नर, मुख्यमंत्री, SP, कलेक्टर और कई बड़े अधिकारियों से मुलाकात की थी. इन सबके सामने उन्होंने गलत आरोपों के तहत, और नक्सली बताकर जेल में बंद किए गए आदिवासियों की रिहाई का मुद्दा उठाया था. इससे पुलिस से सामने ये सवाल उठता है कि अब क्यों उन्हें गिरफ्तार किया गया?"
आगे इस जॉइंट स्टेटमेंट में ये कहा गया कि हिड़मे नंदराज पहाड़ को बचाने वाले मूवमेंट का भी हिस्सा थीं. ये मूवमेंट अडानी प्राइवेट लिमिटेड जैसे कॉर्पोरेशन्स से पवित्र आदिवासी पहाड़ को बचाने के लिए शुरू किया गया था. साथ ही ये भी कहा गया कि हिड़मे मरकाम ऐसे कई सारे प्रोजेक्ट्स के खिलाफ आवाज़ उठा रही थीं, जिनसे ज़मीन, वाटर बॉडीज़ और कई सारे पेड़ नष्ट हो सकते थे. इसके बाद कहा गया-
"हिड़मे जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, वो पुलिस के हैरेसमेंट का शिकार हुईं. आज हिड़मे की रिहाई की जो मांग हो रही है, वो केवल पुलिस की ज्यादतियों का विरोध या हैरेसमेंट का विरोध नहीं है, बल्कि ये वो मामला है जो इस बात पर ज़ोर देने की बात करता है कि छत्तीसगढ़ के लोगों की बातों को सुना जाए. हम चाहते हैं कि हिड़मे मरकाम को तुरंत रिहा किया जाए. 'लोन वर्राटू' स्कीम को खत्म किया जाए, जिसके तहत लोगों को गलत तरीके से ज़बरन 'सरेंडर' करवाया जा रहा है. असंवैधानिक डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड्स फोर्स (DRGF) को खत्म कर दिया जाए."
महिला अधिकार मंच और PUCL के जॉइंट स्टेटमेंट में लोन वर्राटू स्कीम का ज़िक्र किया गया था, ये सरकार का वो प्रोग्राम है जिसके तहत नक्सलियों को सरेंडर करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. हमने एक जगह पर कवासी पांडे नाम की महिला का ज़िक्र किया था. कवासी पांडे दंतेवाड़ा के एक गांव में रहती थीं, 20 बरस की थीं. फरवरी के आखिरी हफ्ते में ये खबर आई थी कि एक कथित नक्सली ने खुद को पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है, ये कवासी पांडे ही थीं. लेकिन सरेंडर के चार दिन बाद ही उन्होंने दंतेवाड़ा पुलिस लाइन में कथित तौर पर सुसाइड कर लिया था. 'द क्विंट' की रिपोर्ट के मुताबिक, कवासी की मां ने तब कहा था कि उनकी बेटी माओवादी नहीं थी, उसने कोई सरेंडर भी नहीं किया था, उसे पुलिस ने ज़बरन हिरासत में ले लिया था और सरेंडर के लिए टॉर्चर किया था. पुलिस पर कवासी का उत्पीड़न करने के आरोप भी लगे थे, इन आरोपों को SP ने गलत बताया है. कवासी नंदे नाम की महिला वाला केस 2018 में आया था, ये भी एक महिला की मौत से जुड़ा हुआ मामला ही था.
अब दोबारा आते हैं हिड़मे की गिरफ्तारी वाले मुद्दे पर. हमने इसे थोड़ा और ठीक से समझने के लिए एक वरिष्ठ पत्रकार से बात की, जिनकी छत्तीसगढ़ से जुड़े मामलों में खासी पकड़ है. उन्होंने बताया कि पिछले चार-पांच साल में हिड़मे ने मुख्यमंत्री से, राज्यपाल से, आईजी से, पुलिस अधीक्षक से लगातार मुलाकात की थी. ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर 2016 से उनके खिलाफ केस दर्ज था, तो पुलिस ने इन मुलाकातों के दौरान उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया? पत्रकार ने आगे बताया कि इतने बरसों में हिड़मे के खिलाफ न तो कोई वारंट जारी किया था, न ही पुलिस उनके घर गई थी. पत्रकार ने पुलिस के दावे पर सवाल करते हुए कहा-
"दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा इन तमाम इलाकों में पुलिस बार-बार क्लेम कर रही है कि माओवादियों की घटना कम हो गई. कम हुई है क्योंकि फोर्स कम से कम इलाकों में जा रही है. फोर्स अगर ऑपरेशन चलाएगी तो एनकाउंटर होगा, और तब कैज़ुअलिटी की बात होगी. घटनाएं होंगी. आप नहीं निकलेंगे तो आंकड़े भी कम ही आएंगे."
हमने भी SP अभिषेक पल्लव से ये सवाल किया था कि 2016 से केस दर्ज था तो अब तक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? इस पर हमें कोई जवाब नहीं मिला. हम भी पुलिस से ये सवाल करते हैं कि अगर इतने संगीन आरोप थे, और अगर ये दावे सच हैं कि हिड़मे मरकाम ने सीएम, राज्यपाल सबसे मुलाकात की थी, तो तब गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई, अब गिरफ्तार करने का क्या मकसद है?