प्रिंस मानवेंद्र सिंह गोहिल. गुजरात के गोहिल राजपूत वंश के सदस्य. गोहिल का एक परिचय और है. राजकुमार मानवेंद्र सिंह गोहिल ओपेनली गे हैं. 12 की उम्र में ही उन्हें ये पता था कि वे समलैंगिक हैं, लेकिन घर के माहौल, परिवार की शान-ओ-शौक़त की वजह से करीब 30 साल तक उन्हें एक झूठी ज़िंदगी जीनी पड़ी. क्लीशे लाइन है. लेकिन अगर इंसान की असली पहचान को एक बीमारी समझा जाए, और उसे एक झूठी पहचान ओढ़ कर जीना पड़े, तो उसे और क्या कहेंगे?
GAY राजकुमार ने रॉयल परिवार के ऐसे राज़ खोले कि आप चौंक जाएंगे
प्रिंस मानवेंद्र सिंह को 12 साल की उम्र में चला था कि वो समलैंगिक हैं, लेकिन दुनिया और कानून के डर से उन्होंने इसका खुलासा 41 साल की उम्र में किया, 2018 तक भारत में समलैंगिकता अवैध थी.
और, शान-ओ-शौक़त का लोड इतना कि उन्हें इलेक्ट्रिक शॉक दिए गए. परिवार ने उनसे रिश्ते तोड़ लिए. आज मानवेंद्र LGBTQIA समुदाय के अधिकारों के लिए काम करते हैं.
कौन हैं भारत के इकलौते ओपेनली गे प्रिंस मानवेंद्र गोहिल?
प्रिंस, राजकुमार, युवराज. ये शब्द कहीं-देख सुन लें, तो दिमाग़ में क्या आता है? फौलादी पुरुष टाइप कुछ. एकदम माचो. और, अगर कोई कह दे कि राजकुमार ‘गे’ हैं, तो? हमारे प्री-कंडीशन्ड दिमाग़ में आएगा कि अरे यार, ये कैसा राजकुमार! शास्त्रों में इसे ही होमोफोबिया कहा गया है. इसी होमोफोबिया के शिकार हुए प्रिंस मानवेंद्र सिंह गोहिल. ओपनली गे प्रिंस. ओपनली गे मतलब वो शख्स जिसने अपनी सेक्शुअलिटी को खुले तौर पर ज़ाहिर किया हो.
मानवेंद्र ने हाल ही में इनसाइडर को एक इंटरव्यू दिया. इस इंटरव्यू में मानवेंद्र ने बताया कि उन्हें अपनी पहचान के लिए क्या-क्या फेस करना पड़ा. कन्वर्ज़न थैरेपी, इलेक्ट्रिक शॉक, सामाजिक और पारिवारिक बहिष्कार.
गोहिल राजपूत वंश की साख 650 साल पुरानी है. 13वीं शताब्दी से ही सौराष्ट्र का गोहिल वंश या गुहिलों ने गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र के कई हिस्सों में एकछत्र राज किया है. TEDx के एक सेशन के दौरान मानवेंद्र ने बताया,
“मैं लिटरली चांदी की चम्मच के साथ पैदा हुआ था. मुझे बस ताली बजानी होती थी. जो चाहिए, सामने आ जाता था. 16 साल की उम्र तक मैंने महल से बाहर क़दम नहीं रखा था. परिवार का माहौल बहुत टाइट था. हम बहुत फ़ॉर्मली बात करते थे. मां-पिताजी के साथ कोई बहुत प्यार या गर्मजोशी का रिश्ता नहीं था. कभी-कभी तो हम एक-दूसरे का नाम भी नहीं लेते थे, केवल टाइटल से बुलाते थे.
मुझे एक नैनी ने बड़ा किया, जिन्हें मैं अपनी मां समझता था. बहुत समय तक मुझे ऐसा ही लगता था. जब मुझे फाइनली ये पता चला कि महल में जो बहुत सुंदर सी महिला हैं, जो जूलरी पहनती हैं और मेक-अप करती हैं, वो मेरी मां हैं और ये नैनी नहीं, तो मुझे सच में झटका लगा था.”
इसी कम्यूनिकेशन गैप का हवाला देते हुए मानवेंद्र ने बताया कि जब उन्हें ये समझ आने लगा कि वो पुरुषों प्रति आकर्षित हैं, तो उनके पास बात करने के लिए कोई नहीं था. वो परेशान थे कि उनसे साथ ये क्या और क्यों हो रहा है? बात न कर पाने की वजह से उन्होंने ख़ुद को आइसोलेट कर लिया और एक झूठी पहचान के साथ जीवन जीने लगे. यहां तक कि 1991 में उन्होंने एक महिला से शादी भी की, जो तीन साल में ही टूट गई.
तलाक़ के बाद उन्होंने अपनी सेक्शुअलिटी को एक्सप्लोर करना शुरू किया. वो सवाल जो किसी से पूछ नहीं पाए थे, उनके जवाब ढूंढने लगे. इसी सिलसिले में उनकी मुलाक़ात हुई अशोक रो कवि से. अशोक एक पत्रकार हैं, जिन्हें देश का पहला गे-राइट्स ऐक्टिविस्ट भी कहा जाता है. अशोक रो कवि से मुलाक़ात को मानवेंद्र अपने जीवन का टर्निंग पॉइंट बताते हैं. अशोक की काउंसलिंग के दौरान मानवेंद्र को समझ आया कि गे होना किसी तरह के गिल्ट की बात नहीं है. एक सच्चाई है. आम सच्चाई. और, बकौल मानवेंद्र सिंह गोहिल,
‘जैसे आप ‘स्ट्रेट’ पैदा होते हैं, वैसे ही आप गे पैदा होते हैं.’
हालांकि, इस कथन तक पहुंचने और इसके साथ अपने आपको सहज करने में मानवेंद्र को बहुत संघर्ष करना पड़ा.
2006 में मानवेंद्र ने एक लोकल अखबार को इंटरव्यू दिया. इस इंटरव्यू में बताया कि वो समलैंगिक हैं. वो भारत के किसी भी रॉयल फैमिली की पहले सदस्य हैं जिन्होंने अपने समलैंगिक होने की बात सार्वजनिक तौर पर कही. सुनने में हिस्टॉरिक लग रहा है, लेकिन उस समय बहुत बवाल हुआ. 2018 तक भारत में समलैंगिक रिश्तों को अपराध माना जाता था. ऐसे में गोहिल के खुल कर सामने आने को एक बड़े स्कैंडल के तौर पर देखा गया.
गोहिल ने इनसाइडर को बताया,
“जिस दिन मैंने अपनी पहचान ज़ाहिर की, मेरे पुतले जलाए गए. बहुत विरोध प्रदर्शन हुए. लोग सड़कों पर उतर आए और नारे लगाने लगे कि मैं शाही परिवार और भारत की संस्कृति के नाम पर कलंक हूं. मौत की धमकियां दीं और मांग की कि मुझसे मेरा खिताब छीन लिया जाए.”
समाज और लोग एक तरफ. पर मानवेंद्र को अपने परिवार से भी सपोर्ट नहीं मिला. इंटरव्यू के पब्लिश होने के बाद उनके पिता रघुबीर सिंहजी राजेंद्र सिंहजी साहिब ने उनसे रिश्ते तोड़ लिए. इसके लिए इश्तेहार निकाला. इश्तेहार में कहा गया कि मानवेंद्र समाज के लिए अनुपयुक्त गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं, इस वजह से उन्हें राजवंश का वारिस नहीं माना जाएगा.
मानवेंद्र कहते हैं कि उन्हें इस तरह के रिएक्शन की आशंका पहले से थी. उन्होंने कहा,
“मैं जिस समाज में पला-बढ़ा था, वह रूढ़िवादी था. जिस देश में पला-बढ़ा, वह समलैंगिक अधिकारों को कानूनी रूप से मान्यता नहीं देता था. आसपास के कई लोगों का मानना था कि समलैंगिकता एक मानसिक बीमारी है. लेकिन मैं उन लोगों को दोष नहीं देता, जो मेरे खिलाफ थे. मैं इस विषय पर उनकी अज्ञानता को दोष देता हूं.”
कई सालों तक चली कन्वर्ज़न थैरेपी
पर परिवार की प्रताड़ना चार साल पहले ही शुरू हो चुकी थी. 2002 में मानवेंद्र ने अपने परिवार को अपनी सेक्शुअल आइडेंटिटी के बारे में बता दिया था. उनके परिवार ने उनकी कन्वर्ज़न थैरेपी की प्रताड़ना दी. इस बारे में मानवेंद्र कहते हैं,
“उनके लिए ये सोचना भी नामुमकिन था कि मैं समलैंगिक हो सकता हूं, क्योंकि मेरी परवरिश इतनी समृद्ध रही है. उन्हें इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि किसी की सेक्शुअलिटी और उसकी परवरिश के बीच कोई संबंध नहीं है.”
मानवेंद्र के परिवार को लगता था कि वो बीमार हैं और उन्होंने उनकी ‘बीमारी’ का ‘इलाज’ खोजना शुरू किया. अगले चार साल तक उनके परिवार ने उन्हें स्पिरिचुअल गुरु से लेकर डॉक्टर तक सबके चक्कर लगवाए. वो कहते हैं,
“मुझे स्ट्रेट करने के लिए उन्होंने मेरे दिमाग का ऑपरेशन करवाने की कोशिश की. डॉक्टर्स से संपर्क किया और मुझे इलेक्ट्रोशॉक दिए. जब वो काम नहीं आया तो मुझे धार्मिक नेताओं के पास भेज दिया गया, जिन्होंने मुझे ‘नॉर्मल ऐक्ट करने’ का आदेश दिया. ये भी काम नहीं आया.”
लेकिन जब तक उनके माता-पिता ने गिव-अप किया, तब तक गोहिल ट्रॉमा में चले गए. सुसाइडल थॉट्स आने लगे. फिर हुआ वो इंटरव्यू जिसके बाद उन्हें राजघराने से बेदख़ल कर दिया गया.
आज 55 साल के गोहिल LGBTQIA+ समुदाय की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं. समलैंगिकता को लेकर लोगों के मन में बसे स्टिग्मा को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं. साल 2013 में मानवेंद्र ने डिआंड्रे रिचर्डसन से शादी की. वो LGBTQIA+ समुदाय के लिए लक्ष्य ट्रस्ट चलाते हैं. 2018 में जब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 हटाकर समलैंगिक रिश्तों को अपराध के दायरे से बाहर किया तब गोहिल ने अपना महल कम्युनिटी के कमज़ोर मेम्बर्स के लिए खोल दिया. ये वही महल था, जहां से सालों पहले उन्हें बाहर निकाल दिया गया था.
कन्वर्जन थैरेपी क्या है?
कन्वर्जन थैरेपी करने वाले दावा करते हैं कि समलैंगिकता या ट्रांस होना एक बीमारी है. वो दवाओं, इलेक्ट्रिक शॉक और स्पिरिचुअल थैरेपी से समलैंगिकों को ठीक करने का दावा करते हैं. जबकि समलैंगिक होना उतना ही नैचुरल है जितना किसी का स्ट्रेट होना. और उसे किसी भी तरीके से ‘ठीक’ नहीं किया जा सकता है. मानवेंद्र गोहिल का मकसद भारत में कन्वर्जन थैरेपी को बैन करवाना है. तमिलनाडु भारत में इकलौता राज्य है जिसने साल 2021 में कन्वर्ज़न थैरेपी पर बैन लगाया है. आखिर में मानवेंद्र की कही लाइन के साथ ही आपको छोड़कर जा रहे हैं.
“सच कड़वा होता है. बहुत सारे लोगों को ये सच पचेगा नहीं, लेकिन मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. मैं ख़ुद से ईमानदार रहना चाहता हूं. यही मेरी कहानी है. ख़ुद से ईमानदारी. क्योंकि आख़िर में हिपॉक्रिसी हारेगी.”
गे आर्मी ऑफिसर पर बन रही फ़िल्म की स्क्रिप्ट रिजेक्ट करते हुए रक्षा मंत्रालय ने क्या कहा?