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पीरियड आने के बाद मुसलमान लड़की अपनी मर्ज़ी से शादी कर सकती है, POCSO नहीं लगेगाः दिल्ली HC

कोर्ट ने कहा- शादी के लिए मुस्लिम लड़की को 18 साल की होना ज़रूरी नहीं.

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सांकेतिक फोटो (PTI)

दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने एक मामले में अपने ही एक महीने पुराने फैसले से उलट फैसला सुनाया है. मामला एक नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी से जुड़ा है. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि शरिया कानून के तहत पीरियड की उम्र होने के बाद एक मुस्लिम लड़की अपनी पसंद के लड़के से शादी कर सकती है. इस शादी के लिए उसे अपने माता-पिता की सहमति की ज़रूरत नहीं है. न ही उसका 18 साल का होना ज़रूरी है. जबकि इस साल जुलाई में एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने ही कहा था कि पीरियड आने पर एक लड़की शरिया में वयस्क हो सकती है, लेकिन POCSO कानून के तहत नहीं. 

क्या है Muslim Minor लड़की शादी का मामला?

इस साल 11 मार्च को एक मुस्लिम जोड़े ने लड़की के माता-पिता की मर्ज़ी के बिना शादी की. लड़के की उम्र 25 साल है, वहीं परिवार का दावा है कि लड़की 15 साल की है. हालांकि, आधार कार्ड के मुताबिक, लड़की की उम्र 19 साल है. लड़की के घरवालों ने द्वारका के एक पुलिस स्टेशन में लड़की के अपहरण का केस दर्ज करवाया. बाद में इस मामले में IPC की धारा 376 यानी रेप और POCSO एक्ट की धाराएं जोड़ी गईं. 

इस केस के खिलाफ लड़का-लड़की ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई. मामले की सुनवाई जस्टिस जसमीत सिंह की सिंगल बेंच ने की. जस्टिस सिंह ने POCSO की सभी धाराओं को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा,

“यह स्पष्ट है कि मुस्लिम कानून के अनुसार, जो लड़की प्यूबर्टी की उम्र पर आ चुकी है, माने जिसके पीरियड्स शुरू हो चुके हैं वो अपने माता-पिता की सहमति के बिना शादी कर सकती है. और उसे अपने पति के साथ रहने का अधिकार है. भले ही वह 18 वर्ष से कम उम्र की हो.”

जस्टिस जसमीत सिंह ने फैसले में कहा कि इस मामले के तथ्य पहले के एक फैसले से अलग हैं जिसमें यह माना गया था कि POCSO 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए एक कानून है और वो किसी भी पर्सनल लॉ से ऊपर है. कोर्ट न कहा, 

"पीड़िता और आरोपी के बीच कोई शादी नहीं हुई थी, और शादी से पहले यौन संबंध बनाए गए थे. उस मामले में शारीरिक संबंध बनाने के बाद आरोपी ने लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया था. लेकिन अभी का मामला यौन शोषण का मामला नहीं है, बल्कि एक ऐसा मामला है जहां याचिकाकर्ता प्यार में हैं, मुस्लिम कानूनों के अनुसार शादी कर ली और उसके बाद शारीरिक संबंध बनाए गए हैं."

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि स्टेटस रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट है कि शादी से पहले पति-पत्नी अपने-अपने घर में रहते थे. इसलिए इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि उन्होंने शादी से पहले यौन संबंध बनाए थे. इसलिए स्टेटस रिपोर्ट का सुझाव है कि उनकी शादी 11 मार्च, 2022 मार्च को हुई थी और उसके बाद उन्होंने यौन संबंध बनाए. कोर्ट ने कहा,

 "याचिकाकर्ता एक-दूसरे से कानूनी रूप से विवाहित हैं. और इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि उन्होंने अपनी मर्जी से शादी की है. अगर अब हम याचिकाकर्ता को अलग करते हैं, तो यह लड़की और उसके अजन्मे बच्चे के लिए ठीक नहीं होगा. राज्य का उद्देश्य यहां याचिकाकर्ता की रक्षा करना है."

इसके बाद कोर्ट ने पुलिस को याचिकाकर्ताओं की व्यक्तिगत सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश देते हुए कहा,

"अगर याचिकाकर्ता ने शादी के लिए सहमति दी है और वो खुश हैं, तो राज्य कोई नहीं है उनके बीच में आने वाला."

कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की प्राइवेट लाइफ में घुसना और जोड़े को अलग करना राज्य द्वारा व्यक्तिगत स्थान का अतिक्रमण करने के समान होगा.  ऐसा कहते हुए जस्टिस सिंह ने लड़की को अपने पति के साथ रहने की  स्वतंत्रता दी. 

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