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डार्लिंग्स पर बहस में कुछ मर्द बोले- 'हमारी वजह से औरतों की नौकरी चल रही'

भूसे के ढेर को चिंगारी लगाने की देर है. चिंगारी लगते ही आग फैल जाती है. यहां कुछ लोग वही भूसा दिमाग में भरकर आते हैं.

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महिलाएं बस कठपुतली हैं जो पुरुषों के आदेशों पर जी हुज़ूरी करने के लिए बनी हैं.

डार्लिंग्स (Darlings). Netflix पर हाल ही में रिलीज़ हुई है. देखने वाले कह रहे हैं आलिया भट्ट (Alia Bhatt), शेफाली शाह (Shefali Shah) और विजय वर्मा (Vijay Verma) ने कमाल की ऐक्टिंग की है लेकिन मेरा मानना है कि ऐक्टिंग से ज़्यादा ज़रूरी विषय है. ये फिल्म घरेलू हिंसा (Domestic Violence) पर बात करती है. अच्छी बात ये है कि फिल्म कहीं भी हिंसा को ना जायज़ ठहराती है और ना ही किसी भी प्रकार की हिंसा का प्रचार करती है. फिल्म का ट्रेलर देखकर कुछ लोगों ने रिलीज़ से पहले #BoycottAliaBhaat ट्वीट करना शुरू कर दिया था. उनका आरोप था कि फिल्म पुरुषों के प्रति हिंसा को बढ़ावा देती है. ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है जब लोगों ने बिना फिल्म देखे #Boycott ट्रेंड कराना शुरू कर दिया. वो लोग अंतर्यामी किस्म से होते हैं. लेकिन आज बात उनकी नहीं हो रही है.

ट्रेलर देखकर फिल्म की पूरी कहानी के बारे में कुछ भी दावा करना सही नहीं है. फुरसत निकालकर लोगों की तरह मैंने भी फिल्म देख डाली. उसका जो भी हासिल था वो ऊपर लिख दिया गया. लेकिन जनता ने याद दिलाया, सब एक से नहीं होते लक्ष्मण.

तुलसीदास भी कह गए,
"तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग"

एक भाईसाहब ने ट्विटर पर फिल्म का एक सीन काटकर चिपकाया और लिखा,

"#BoycottAliaBhatt क्यूंकी ये पुरुषों के प्रति हिंसा को बढ़ावा दे रही है. सोचिए, अगर यही काम महिलाओं के साथ होता तो.."

इसके जवाब में सौम्या गुप्ता ने लिखा,

"ये फिल्म पत्नियों को पीटने वालों को उजागर करने का ज़रिया है. सिर्फ पत्नी को पीटने वालों को ही इस फिल्म की कहानी से आपत्ति हो सकती है. #ViolenceAgainstWomen"

इस बात के जवाब में एक भाई ने कहा,

"शुक्र है कि तुम सिर्फ एक गायनेकोलॉजिस्ट हो."

सौम्या पेशे से गायनेकोलॉजिस्ट हैं और लगातार महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर मुखर होकर बोलती-लिखती हैं. इस बात का भी जवाब सौम्या ने अपने अंदाज में दिया और कहा,

"सिर्फ एक गायनेकोलॉजिस्ट! सिर्फ मत कहो. ये प्रोसेस बहुत लंबा था."

लेकिन सोशल मीडिया तो है खुला मंच. भूसे के ढेर को चिंगारी लगाने की देर है. चिंगारी लगते ही आग फैल जाती है. यहां कुछ लोग वही भूसा दिमाग में भरकर आते हैं. इसी बात का प्रदर्शन करते हुए एक व्यक्ति ने कहा,

"डॉक्टर के तौर पर आपकी जो रोजमर्रा की नौकरी चल रही है उसके लिए पुरुष ज़िम्मेदार हैं. थोड़ी सी कृत्यज्ञता दिखाने में कुछ नहीं जाता."

सौम्या ने जवाब में कहा,

"कुछ पुरुषों में हीरो बनने का कीड़ा होता है. औरतों के पास अपना शरीर और ज़िंदगी भी है जिसका पुरुषों से कोई लेना देना नहीं है ये बात कुछ लोगों के लिए समझ पाना बड़ा मुश्किल  है. मैं समझ सकती हूं. "  

आगे सौम्या ने लिखा ,

" ये कमेंट पढ़कर मुझे बार बार गुस्सा आ रहा है. भारतीय पुरुष ऐसा सोचते हैं कि एक महिला को प्रेग्नेंट करना, स्पर्म बनाना कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है? ये सबसे आसान काम है. असली हीरो तो महिलाएं हैं."

"सोचिए आप महिलाओं की स्वास्थ्य विशेषज्ञ को ये कह रहे हैं कि तुम्हारा काम पुरुषों की वजह से चल रहा है. उस पुरुषसत्ता की कल्पना कीजिए जिसने उसके दिमाग में ऐसे विचार को तैयार किया. इस वजह से कुछ मर्दों को लगता है कि पुरुषों से रिश्ते के बाहर महिलाओं का कोई जीवन ही नहीं है."

सौम्या ने जिस बात की ओर इशारा किया वो दरअसल वही भावना है जो पुरुषसत्ता से निकलकर आती है. जो मानती है कि एक महिला की इज़्ज़त, मान- मर्यादा, नौकरी सब कुछ पुरुषों की वजह से है.

वो अगर घर से निकल प रही है तो इसलिए कि एक पुरुष ने उसे अधिकार दिया है.

वो अगर नौकरी कर पा रही है तो इसलिए कि किसी पुरुष ने उसे नौकरी करने की आज़ादी दी है.

वो अपने जीवन में जो कुछ भी कर पा रही है वो इसलिए कि एक पुरुष ने उसे मौके दिए हैं.

मूलतः वो इस दुनिया में जी रही है क्यूंकि एक पुरुष ने उसे जीने का अधिकार दिया है. क्यूंकि भ्रूण से लेकर शरीर तक हर जगह पुरुषों का ही तो अधिकार है. महिलाएं तो बस ज़रिया और कठपुतली हैं जो पुरुषों के आदेशों पर जी हुज़ूरी करने के लिए बनी हैं.

विडियो: Darlings को अच्छी या बुरी कहना बेईमानी क्यों?

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