सोशल मीडिया की वायरल दुनिया में आपका स्वागत है. अगर आपने हाल ही में इस दुनिया की सैर की होगी, तो एक नाम ज़रूर आपकी नज़रों में आया होगा. वो नाम है- सुचेता दलाल. बहुत नामी पत्रकार हैं. अभी भी याद नहीं आईं, तो स्कैम 1992 सीरीज़ को याद कीजिए. उसमें श्रेया धनवंतरी ने इन्हीं का तो रोल निभाया था. अब हाल ही में सुचेता ने एक ट्वीट किया, जिसके बाद अडानी ग्रुप के शेयर्स धड़ाम हो गए. सुचेता ने अपने ट्वीट में किसी ग्रुप का नाम नहीं लिया था, लेकिन फिर भी लोगों ने ऐसा अंदाज़ा लगाया कि वो अडानी ग्रुप के बारे में ही बात कर रही थीं. खैर, अडानी ग्रुप के ये शेयर्स क्या वाकई सुचेता के ट्वीट की वजह से गिरे या कोई और कारण भी है? और कौन हैं सुचेता दलाल, जिनके एक ट्वीट पर पूरी मीम फैटर्निटी भयंकर एक्टिव हो गई. सब बताएंगे एक-एक करके.
हर्षद मेहता का भंडाफोड़ करने वाली सुचेता दलाल की कहानी, जिनसे अब भी ये अजीब सवाल पूछते हैं लोग
धमकियां मिली, मानहानि का केस हुआ, करियर पर बन आई, फिर भी फर्ज़ से न हिलने वाली पत्रकार से मिलिए.
क्या है मामला?
पिछले साल जब कोरोना ने भारत में पैर पसारने शुरू किए थे, तब शेयर मार्केट नीचे गिरने लगा था. लेकिन कुछ ही दिन बाद मार्केट ने स्पीड पकड़ी और उसका ग्राफ लगातार ऊपर बढ़ता गया. अडानी ग्रुप के शेयर्स के साथ भी यही हुआ. लगातार ये ऊपर उठते गए. इतना कि अडानी को भारत का दूसरा और एशिया का पंद्रहवां सबसे अमीर आदमी बना डाला. इन सबके बीच 12 जून, 2021 को सुचेता दलाल ने एक ट्वीट किया. बहुत ही अजीब सा ट्वीट था. जिसका हिंदी मतलब कुछ ऐसा था-
एक बड़े ग्रुप के शेयर्स को आसमान तक पहुंचाने में किसी ऑपरेटर का हाथ है. और ये ऑपरेटर कोई नया नहीं, जाना पहचाना है. जिसकी शेयर मार्केट में दोबारा एंट्री हुई है. साथ ही ये ऑपरेटर अबकी विदेश से ऑपरेट कर रहा है. और ये खेल इतने ऊंचे लेवल का है कि सेबी (यानी शेयर मार्केट की मॉनिटर) का ट्रैकिंग सिस्टम भी शायद ही इसे पकड़ पाए. कुछ नहीं बदला है.
इस सबके बाद इस मंडे यानी 14 जून को जब मार्केट खुला तो अडानी ग्रुप के शेयर्स शुरुआती मिनटों में ही नीचे आ गए थे. ट्विटर पर दनादन मीम्स बनने शुरू हो गए.
क्या वाकई सुचेता ने अडानी ग्रुप की तरफ इशारा किया था?
जवाब है अडानी नहीं तो कौन? क्योंकि जिस तेज़ी से अडानी ग्रुप के शेयर्स बढ़े, पहली नज़र में यही लग रहा है कि सुचेता उन्हीं के बारे में कह रही हैं. और उंगली सीधे अडानी ग्रुप की तरफ न उठकर किसी 'विदेशी ऑपरेटर' की तरफ उठी है. सुचेता के ट्वीट के बाद ये रिपोर्ट भी सामने आई कि नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) ने अडानी ग्रुप की तीन इंवेस्टर्स के खातों को फ्रीज कर दिया है. ये तीन इंवेस्टर्स विदेशी संस्थान थे. तब तो और क्लीयर हो गया कि सुचेता अडानी ग्रुप की तरफ ही इशारा कर रही थीं. हालांकि अभी ये साफ नहीं है कि अडानी के शेयर्स सुचेता के ट्वीट के चलते गिरे या NSDL की कारवाई के चलते. लेकिन सच ये है कि शेयर्स गिरे थे.
हालांकि अडानी ग्रुप ने NSDL के खाते सील करने वाली बात पर 14 जून की शाम सफाई दे दी थी. कहा था,
“खाते फ्रीज़ करने वाली बात स्पष्ट रूप से गलत है और निवेशक समुदाय को गुमराह करने के लिए जानबूझकर फैलाई गई है.”
खैर, इस मुद्दे पर आगे क्या-क्या हुआ ये जानने के लिए आप 'द लल्लनटॉप' पर आने वाला शो खर्चा-पानी ज़रूर देखें. उसका वीडियो हमने इस खबर में सबसे नीचे चस्पा किया है. फिलहाल हमारा फोकस है सुचेता दलाल पर. क्योंकि ट्विटर पर इस वक्त उनका नाम बहुत चल रहा है.
इससे पहले कब खबरों में आई थीं Sucheta Dalal?
पिछले साल 'स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी' नाम की वेब सीरीज़ रिलीज़ हुई थी. तब सुचेता दलाल खबरों में आई थीं. सुचेता दलाल ही वो पत्रकार थीं, जिन्होंने स्टॉक मार्केट के बड़े नामी ब्रोकर हर्षद मेहता का भंडाफोड़ किया था. बाद में उन्होंने देबाशीष बासु के साथ मिलकर इस पूरे प्रकरण पर 'द स्कैम' नाम की किताब भी लिखी थी. और इसी किताब पर बनी थी ये सीरीज़. सुचेता बहुत वक्त से इस स्टोरी के तारों को खंगाल रही थीं, लेकिन उनको कामयाबी मिली 1992 में. हर्षद मेहता के बारे में सुचेता ने एक इंटरव्यू में कहा था-
"हर्षद मेहता ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से 500 करोड़ रुपए लिए थे और वो उन्हें लौटाने की पोज़िशन में नहीं था. स्टेट बैंक की बुक्स में था कि गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़ में कुछ ट्रांजेक्शन्स को लेकर रसीदें थीं, जबकी असल में कोई ट्रांजेक्शन नहीं हुआ था. और वो पैसे गए थे हर्षद मेहता के पास. RBI ने जब इस मामले की जांच की, तो पता चला कि कोई एक बैंक नहीं, बल्कि कई सारे बैंक्स इसमें शामिल थे. आंध्रा बैंक, कैनरा बैंक, हॉन्गकॉन्ग बैंक, सब शामिल थे. हर्षद मेहता की रियल इनकम और स्टॉक्स में लगाने के लिए जो पैसा उनके पास था, वो आ रहा था गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़ मार्केट और बैंक से. तो ये जो घोटाला था वो असल में स्टॉक मार्केट स्कैम नहीं था बल्कि बैंक और गवर्नमेंट सिक्योरिटी स्कैम था."
हर्षद मेहता कांड के बाद ही सेबी का गठन हुआ था (फोटो क्रेडिट- AAJ Tak)
माने हर्षद मेहता ने बैंक्स से पैसे लेकर मार्केट में लगाए थे. उन्होंने गवर्नमेंट सिक्योरिटी बॉन्ड को लेकर हेरा-फेरी की थी. यहां तक कि बॉन्ड की नकली रसीद बनाकर भी बैंकों से पैसे लिए थे. और इसी का भांडा फोड़ा था सुचेता दलाल ने. उस वक्त वो टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार थीं. 1992 में उन्हें पता चला था कि मेहता बैंक से 15 दिनों के लिए लोन लेता है और अगले 15 दिन में इस पैसे को वापस कर देता है. मजेदार बात ये है कि कोई बैंक 15 दिन के लिए लोन नहीं देता. जब सुचेता ने इस मामले में रिपोर्टिंग की तब हर जगह इसकी चर्चा होने लगी. जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाई गई. सीबीआई ने हर्षद के साथ उसके दोनों भाइयों अश्विन और सुधीर को भी गिरफ्तार कर लिया. 72 आपराधिक मामले और 600 से ज्यादा दीवानी मामले हर्षद के खिलाफ दर्ज हो चुके थे. RBI की जानकिरामन समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1992 का ये घोटाला 4025 करोड़ का था. इसमें सबसे बड़ा मामला एसबीआई के साथ किए गए 600 करोड़ के फ्रॉड का था.
कौन हैं सुचेता दलाल?
देश की बेहतरीन बिज़नेस, फाइनेंशियल और इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स में से एक हैं. फिलहाल 'मनीलाइफ इंडिया' की मैनेजिंग एडिटर हैं. दस साल से यहीं काम कर रही हैं. यूट्यूब पर मनीलाइफ चैनल के ज़रिए आर्थिक मामलों में लगातार अपनी रिपोर्ट पेश करती हैं. फाइनेंशियल जर्नलिज़्म की फील्ड में सुचेता को 35 साल से भी ज्यादा समय हो चुका है. सुचेता के पैरेंट्स डॉक्टर्स थे, लेकिन उन्होंने इस फील्ड को नहीं चुना. कर्नाटक यूनिवर्सिटी में स्टैटेस्टिक्स में Bsc करने के बाद उन्होंने मुंबई से लॉ की डिग्री हासिल की और साल 1984 में मारी खबरों की दुनिया में एंट्री. सबसे पहले मुंबई बेस्ड 'फॉर्च्यून इंडिया' फाइनेंशियल मीडिया कंपनी में काम किया. इसके बाद बिज़नेस स्टैंडर्ड में काम किया. फिर टाइम्स ऑफ इंडिया को जॉइन किया, जहां वो फाइनेंशियल एडिटर थीं. इसके बाद 1998 में इंडियन एक्सप्रेस को जॉइन किया. सुचेता ने बिज़नेस जर्नलिज़्म की दुनिया में उस वक्त एंट्री ली थी, जब इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी. अपने करियर के शुरुआती दिनों के बारे में सुचेता ने 'इंडिया पॉडकास्ट' को कुछ महीनों पहले एक इंटरव्यू दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था-
"मैंने अपनी मर्ज़ी से बिज़नेस जर्नलिज़्म को चुना था. मेरे पास और भी ऑप्शन्स थे. जब मैंने बिज़नेस जर्नलिज़्म को चुना, उस वक्त ये फैशनेबल नहीं था (माने चलन में नहीं था), जब मैं बिज़नेस स्टैंडर्ड में गई, तब वहां हर कोई मेरे से काफी सीनियर था. मुझे याद है कि मैं अपनी एक कलीग के साथ ट्रैवल कर रही थी, उसने मुझसे पूछा कि अभी तुम कहां काम कर रही हो? मैंने उसे बताया. उसने मुझे लंबा-चौड़ा गाइडेंस दिया, अच्छे इरादे के साथ ये बताने की कोशिश की कि मुझे जर्नलिज़्म की किसी और फील्ड में अप्लाई करना चाहिए. उस लड़की के मुताबिक, बिज़नेस जर्नलिस्ट से नीचे कुछ नहीं होता."
इसके अलावा सुचेता ने एक और वाकया भी शेयर किया था. एक बार उनके जान-पहचान की एक लड़की ने उनसे पूछा था- 'बिज़नेस जर्नलिस्ट होने में आपको शर्मिंदगी महसूस नहीं होती?'. सुचेता बताती हैं कि चूंकि उनके परिवार में कभी भी कोई बिज़नेस की फील्ड में नहीं था, इसलिए उन्हें पहले से इस फील्ड के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. जब उन्होंने काम शुरू किया, तो दिक्कत भी आई. कई बार ये ख्याल भी आता था कि वो कर पाएंगी या नहीं. लेकिन शुरुआती स्ट्रिक्ट ट्रेनिंग को आज वो थैंक्यू कहती हैं.
1984 में जर्नलिज़्म की दुनिया में सुचेता ने एंट्री ली थी. (फोटो- यूट्यूब वीडियो स्क्रीनशॉट)
जब कठिन दिनों का सामना करना पड़ा
सुचेता दलाल ने न केवल हर्षद मेहता स्कैम का खुलासा किया था, बल्कि केतन पारेख स्कैम को भी सामने लाने में उनका बड़ा हाथ था. इस स्कैम का भंडा फोड़ साल 2001 के आस-पास हुआ था. खुलासा ये हुआ था कि केतन ने कंपनियों को और शेयर खरीदने वालों को गलत जानकारी देकर मेनिपुलेट किया था, और शेयर्स के दाम बढ़ाए थे. दाम बढ़ने के बाद शेयर्स बेचकर बड़ा प्रॉफिट कमाया था. कुछ बैंक्स से भी हेरा-फेरी के ज़रिए करोड़ों रुपयों का लोन लिया था, जिन्हें शेयर मार्केट में इन्वेस्ट किया था. अब ऐसा नहीं है कि सुचेता बड़ी आसानी से, बिना किसी दबाव के खुलासे पर खुलासा कर रही थीं. उनके ऊपर भी प्रेशर था. और इसके चलते उन्हें बिना नौकरी के भी रहना पड़ा था.
एक इंटरव्यू में खुद सुचेता ने बताया था कि जब वो पॉज़िटिव स्टोरी करती थीं, तब PR वाले उनके साथ बड़ा अच्छा बर्ताव करते थे. लेकिन जब वो कोई निगेटिव स्टोरी करती थीं, तब यही लोग उन्हें लेकर अनाप-शनाप बातें बनाने लगते थे. सुचेता कहती हैं-
"लाइफ आसान नहीं है. आपको इन सबसे डील करना पड़ता है. मेरी लड़ाई भी बहुत होती थी. ज़ाहिर है, क्योंकि हम सब इंसान है. हम ऐसी खराब बातों को कब तक सुनेंगे? लेकिन आपको इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है. तो ये खेल और मज़ा नहीं है. मतलब टाइम्स ऑफ इंडिया में मैं रातों-रात अपनी नौकरी से बाहर हो गई थी. और ऐसी कंडिशन में जब आपके पास नौकरी नहीं है और आपको EMI भरनी है, तो सोचिए. जर्नलिज़्म में कोई जॉब सिक्योरिटी नहीं है, हम सब कॉन्ट्रैक्ट पर ही हैं. इसलिए ये मुश्किल है. इसी तरह के प्रेशर की वजह से मैंने रातों-रात इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखना बंद कर दिया था. मुझे याद है कि मैं बैठकर रो रही थी, क्योंकि बहुत पैसा जा चुका था. और आपको ये सोचना पड़ रहा था कि आगे क्या होगा. अभी मैं मनीलाइफ में हूं, इसे देबाशीष ने शुरू किया था, ऐसा नहीं है कि यहां से कोई बाहर निकाल देगा. लेकिन फिर भी प्रेशर है. लोग मानहानि का केस करने की धमकी देते हैं, बुरी बातें कहते हैं."
जब केतन पारेख मामले में मिली थीं धमकियां
साल 2006 में सुचेता को पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. इस दौरान वो इंडियन एक्सप्रेस में काम कर रही थीं. जब उन्हें अवॉर्ड के लिए चुना गया, तब एक्सप्रेस में एक आर्टिकल छपा था. जिसमें सुचेता ने बताया था कि केतन पारेख स्कैम, हर्षद मेहता स्कैम से भी ज्यादा बुरा था, इसे कवर करते वक्त उन्हें धमकी भरे कॉल्स और मेल्स मिल रहे थे, उनसे कहा जा रहा था कि वो इस केस पर काम करना बंद कर दें. खैर, इन धमकियों का सुचेता पर कोई असर नहीं पड़ा, और उन्होंने अपना काम जारी रखा. हमने पद्मश्री अवॉर्ड का ज़िक्र किया है तो ये भी जान लीजिए कि सुचेता को चमेली देवी अवॉर्ड और फेमिना वुमन ऑफ सबस्टेंस अवॉर्ड भी मिल चुका है.
मानहानि केस का सामना भी करना पड़ा
धमकियां मिलनी तो आम बात थी सुचेता के लिए, लेकिन हद तो तब हो गई जब NSE यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने उनके ऊपर मानहानि का केस कर दिया. देखिए, स्टॉक एक्सचेंज एक तरह का मार्केट होता है, जहां पर शेयर खरीदने और बेचने वालों के बीच डील होती है. हमारे यहां BSE यानी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और NSE दो मुख्य स्टॉक एक्सचेंजेस हैं. माने यहां शेयर्स खरीदने बेचने का काम होता है. तो साल 2015 में NSE को लेकर एक घटना हुई. जिसे कोलो (Colo) स्कैम या एल्गो (Algo) स्कैम के नाम से जाना जाता है. अल्गो का मतलब अल्गोरिदम से जुड़ा है और कोलो का मतलब कोलोकेशन से. जो बड़े ब्रोकर्स होते हैं, उनके पास लिखित अल्गोरिदम होता है, जिसकी मदद से वो जल्दी-जल्दी शेयर्स की ट्रेडिंग करते हैं और ट्रेडिंग का पैटर्न भी तैयार करते हैं. मशीन बेस्ड ऑपरेशन के ज़रिए ये काम होता है. और ये ऑपरेशन एक अल्गोरिदम पर निर्भर होता है. इसे अल्गो ट्रेडिंग कहते हैं.
ये अल्गोरिदम उस वक्त बहुत अच्छे से काम करते हैं, जब एक्सचेंज के मेन सर्वर के बहुत करीब ये मौजूद रहें. तो दुनिया भर के स्टॉक एक्सचेंज इन बड़े ट्रेडर्स को ये परमिशन देते हैं कि एक्सचेंज के कैंपस के ही अंदर ही वो एक्सचेंज के सर्वर्स को देख सकते हैं. इसे कहते हैं कोलोकेशन. 2015 में एक व्यक्ति ने SEBI माने Securities and Exchange Board of India, जिसका काम स्टॉक मार्केट पर नज़र रखना है, उसे एक लेटर लिखा. और यही लेटर सुचेता दलाल को भी लिखा. बताया कि कुछ ब्रोकर्स, बाकी ब्रोकर्स से पहले ही NSE के सर्वर में लॉगइन कर रहे हैं, माने ज्यादा फायदा उठा रहे हैं. अब इसी बात पर सुचेता ने रिपोर्ट लिखी और मनीलाइफ में इसे पब्लिश किया. लेकिन इसके पहले उन्होंने NSE को कई बार कॉन्टैक्ट किया, इस पर उनका कमेंट जानने की कोशिश भी की. लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. इसलिए फिर सुचेता ने इसे पब्लिश कर दिया.
इस पर NSE ने सुचेता, देबाशीष और मनीलाइफ के ऊपर 100 करोड़ का मानहानि का केस कर दिया. बॉम्बे हाई कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई. जहां कोर्ट ने NSE से कहा कि वो पैसे वसूलने के बजाए डेढ़-डेढ़ लाख रुपए सुचेता और देबाशीष को दे. कोर्ट ने कहा कि जब सुचेता दलाल ने आर्टिकल पब्लिश करने के पहले आपको सवाल भेजे थे, और आपने खुद जवाब नहीं दिए, तो ये मानहानि का केस कैसे हो सकता है. NSE इस केस को आगे ले जाता, लेकिन SEBI की जांच शुरू हो गई थी. इसके बाद NSE ने मानहानि का केस वापस ले लिया.
हर्षद मेहता से मुलाकात पर सवाल
वैसे तो सुचेता ने कई सारे फाइनेंशियल मुद्दों पर बेबाक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग की है, लेकिन उन्हें शुरुआती पहचान हर्षद मेहता स्कैम से मिली थी. अपने एक इंटरव्यू में वो बताती हैं कि आज भी लोगों को इस बात पर यकीन ही नहीं होता है कि वो पर्सनली हर्षद मेहता से मिल चुकी थीं. एक घटना का ज़िक्र करते हुए सुचेता ने कहा था-
"एक लिटरेचर फेस्ट में एक बच्चा मेरे पास आया. पूछा- क्या आप हर्षद मेहता से मिली थीं? मैंने कहा कि हां मिली थी. उसने जवाब दिया कि मुझे विश्वास नहीं है."