आपका वज़न आपकी हाइट के मुताबिक सही है या नहीं, इसे नापने का पैमाना क्या है? अभी तक एक्सपर्ट्स BMI यानी बॉडी मास इंडेक्स की मदद से इसे नापते थे. यही नाप तय करती थी कि आपका वज़न सही है या नहीं. आप हेल्दी हैं या नहीं. जो भी लोग जिम जाना शुरू करते हैं, सबसे पहले जिम ट्रेनर उनका BMI ही पता करते हैं. उसके हिसाब से तय होता है कि आपको कितना वज़न घटाने की ज़रुरत है. लेकिन असल में सच कुछ और ही है. न ही वज़न नापने का ये तरीका सही है न ही इससे पता चल सकता है कि आप हेल्दी या नहीं या आपको वज़न घटाने की ज़रुरत है. खेल कुछ और है.
अभी तक गलत तरीके से नाप रहे थे वजन, बदला नहीं तो बीमार होना पक्का!
डायबिटीज और ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
कनफ्यूज मत होइए. सब बताते हैं. सबसे पहले ये जान लीजिए BMI होता क्या है.
BMI क्या होता है?ये हमें बताया डॉक्टर सुखविंदर सिंह सग्गू ने.
BMI वज़न या मोटापे को नापने का पैमाना है. BMI हाइट और वज़न का एक इंडेक्स होता है. इसको कैलकुलेट करने के लिए वज़न(किलोग्राम)/हाइट(मीटर स्क्वायर) किया जाता है. इसका यूनिट होता है किलोग्राम/मीटर स्क्वायर.
अभी तक BMI कैसे नापा जा रहा था?जब से BMI फ़ॉर्मूला बना है तब से मोटापा इसी के हिसाब से नापा जाता है. BMI अगर 18.5 से कम है तो उसको अंडरवेट कहते हैं. BMI 18.5-24.9 है तो उसे नॉर्मल वेट कहते हैं. BMI 25-29.9 है तो उसको ओवरवेट कहते हैं. अगर BMI 30 से ज़्यादा है तो उसको ओबीसिटी कहते हैं. BMI 30-35 तक ग्रेड-1 को ओबीसिटी कहा जाता है. 35-40 तक को ग्रेड-2 ओबीसिटी कहा जाता है. 35 से ज़्यादा ग्रेड-3 ओबीसिटी कहा जाता है.
ये तरीका गलत क्यों था?ये देखा गया कि दो लोगों का वज़न एक है और BMI भी एक है, लेकिन फिर भी उनकी सेहत में फ़र्क होता है. यानी BMI इंसान की हेल्थ के बारे में सटीक जानकारी नहीं देता. मसलन, किसी के शरीर में मसल ज़्यादा है और फैट कम है. वहीं किसी के शरीर में फैट ज़्यादा है और मसल कम है. इन दोनों लोगों का वज़न अगर सेम है, तो BMI भी सेम होगा. लेकिन जिन लोगों में मसल ज़्यादा है तो उनकी सेहत अच्छी होगी. उनको और दिक्कतें होने का चांस कम होता है. जिन लोगों में फैट ज़्यादा है उनको डायबिटीज और ब्लड प्रेशर होने का चांस ज़्यादा होता है. BMI से परे कुछ चीज़ें हैं, जिनसे सेहत का पता चलता है. BMI से सेहत का पता नहीं चलता. शरीर में लीन बॉडी मास होता है. फैट परसेंटेज अलग होता है. बोन मास अलग होता है. BMI ये नहीं बता पाता है कि इंसान में फैट ज़्यादा है, मसल ज़्यादा है या बोन ज़्यादा है.
हेल्दी बॉडी वेट को केवल बॉडी मास एनालिसिस के द्वारा नाप सकते हैं. बॉडी मास एनालिसिस की मशीन आती है. इसमें अलग से फैट का पता कर सकते हैं. मसल्स देख सकते हैं. शरीर में पानी की मात्रा देख सकते हैं. हड्डियों का भार देख सकते हैं. बॉडी मास एनालिसिस से पता चलता है कि असल में वज़न कितना होना चाहिए. अगर कार्डियो मेटाबोलिक रिस्क देखना है, तो वेस्ट टू हाइट रेशियो लेना चाहिए यानी कमर की गोलाई हाइट की 50 फीसदी होनी चाहिए या वेस्ट टू हिप रेशियो लेना चाहिए.
पुरुषों में वेस्ट टू हिप रेशियो एक से कम होना चाहिए. महिलाओं में 0.9 से कम होना चाहिए. BMI से फ़र्क नहीं पड़ता. ज़रूरी है ये देखना कि फैट शरीर में कहां जमा है. अगर पेट के आसपास फैट है तो वो डेंजरस होता है. क्योंकि इस फैट से डायबिटीज और ब्लड प्रेशर का रिस्क बढ़ता है.
अब समझे BMI से आपकी सेहत का कोई लेना देना नहीं है. इसलिए इसकी मदद से अपना वज़न जांचना बंद कर दें. जो टिप्स डॉक्टर साहब ने दी हैं, उन्हें फॉलो करें.
(यहां बताई गईं बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
वीडियो: सेहत: गंजेपन को ठीक करने वाले हेयर ट्रांसप्लांट के बाद बाल कभी नहीं गिरते?