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कौन हैं भवानी देवी, जिन्होंने बदल दिया ओलंपिक में भारत का इतिहास

कुछ इस तरह 'मुक्त हुईं' भवानी.

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Bhavani Devi बन गई हैं Olympic तक पहुंचने वाली First Indian Fencer (ट्विटर/भवानी देवी से साभार)
ओलंपिक खेल. दुनिया भर के एथलीट्स का ड्रीम. इस धरती का सबसे बड़ा खेल आयोजन जहां हर एथलीट खेलना चाहता है. लेकिन चाहने से कहां ही सबकुछ होता है. चाहत पूरी करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है. खासतौर से जब आपकी चाहत इतनी पॉपुलर हो कि पूरी दुनिया उसके पीछे पड़ी हो. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इंसान पूरे दिल से कुछ करना चाहे और कामयाबी न मिले. इतिहास में कई दफा हमने देखा है कि इंसान ने अपनी मेहनत से ऐसे-ऐसे कारनामे कर डाले जो असंभव से लगते हैं. और इन्हीं की कहानियां इतिहास के पन्नों पर दर्ज होती हैं. ऐसी एक नई कहानी जुड़ी है सीए भवानी देवी की. अरे नहीं ये चार्टर्ट अकाउंटेंट नहीं हैं, ये तलवारबाज हैं. और इनका पूरा नाम चदलवदा अनंधा सुंदररमन भवानी देवी है. # Bhavani Devi to Tokyo भवानी ने बीती रात ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई किया. उनसे पहले कोई भी भारतीय तलवारबाज़ ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई नहीं कर पाया था. न महिला और न ही पुरुष. इस क्वॉलिफिकेशन के बाद उन्होंने ESPN से बात करते हुए कहा,
'अंततः अब मैं मुक्त महसूस कर रही हूं.'
भवानी देवी तलवारबाजी की सेबा  (Sabre) विधा में खेलती हैं. भवानी देवी को ओलंपिक क्वॉलिफिकेशन हासिल करने के लिए बुडापेस्ट में चल रहे वर्ल्ड कप के टीम इवेंट के रिजल्ट्स का इंतजार करना था. टोक्यो ओलिंपिक में 34 इंडिविजुअल्स को एंट्री मिलती है. इनमें से 24 को सेबा टीम ईवेंट में क्वालिफाई करने वाली टीम्स के मेंबर्स के एंट्री मिलती है. वर्ल्ड रैंकिंग के हिसाब से एशिया और ओशेनिया के लिए दो जगहें खाली होती हैं. बूडापेस्ट में साउथ कोरिया की टीम हंगरी के क्वॉर्टरफाइनल खेल रही थी. साउथ कोरिया की टीम की जीत के साथ टीम रैंकिंग के हिसाब से उसके खिलाड़ियों को ओलिंपिक में जगह मिल गई. और एशिया के लिए रिज़र्व्ड सीट पर भवानी को जगह मिल गई. एडजस्टेड ऑफिशल रैंकिंग (AOR) के तहत. संडे को साउथ कोरिया-हंगरी के बीच हुए क्वॉर्टरफाइनल के दौरान भवानी देवी और उनके इटैलियन कोच निकोला ज़नोत्ती की सांसें अटकी हुई थीं. इस बारे में भवानी ने ESPN से कहा,
'हम प्लेइंग हॉल में थे. मैं खुद से कह रही थी कि अगर यह मौका हाथ से फिसला तो भी कोई बात नहीं, मेरे पास इसके बाद भी एक क्वॉलिफिकेशन इवेंट (सिओल में होने वाले कॉन्टिनेंटल क्वॉलिफायर्स) बचा है. इस मैच की अगली बात जो मुझे याद है, मैं रो रही ती और मेरे कोच ने मुझे जोर से गले से लगा लिया. साउथ कोरिया जीत गई. मैं अपनी पूरी जिंदगी इस पल का इंतजार कर रही थी. पिछला पूरा साल, खासतौर से लॉकडाउन के वक्त मैंने इसे अपने क़रीब रखा. उम्मीद बाकी रखी और अंततः मैं मुक्त महसूस कर रही हूं.'
सेबा वर्ल्ड कप कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद हुआ पहला बड़ा इवेंट था. पूरी तरह से बंद दरवाजों के पीछे हुए इस इवेंट के लिए भवानी और ज़नोत्ती इटली के लिवोर्नो स्थित अपने ट्रेनिंग बेस से 10 घंटे की सड़क यात्रा करके बुडापेस्ट पहुंचे थे. ये पहली बार नहीं था जब भवानी ने अपने सपने के लिए इतनी मेहनत की हो. भवानी और उनके परिवार ने यहां तक आने के लिए तमाम क़ुर्बानियां दी हैं. शुरुआत में भवानी के तलवारबाजी करियर को चलाए रखने के लिए उनकी मां ने अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे. भवानी के इंटरनेशनल करियर की शुरुआत भी बेहद खराब हुई थी. वह अपने पहले ही इंटरनेशन कंपटिशन में ब्लैक कार्ड पा चुकी थीं. अपनी बाउट के लिए तीन मिनट की देरी से पहुंचने के लिए भवानी को यह सजा मिली. तलवारबाजी में ब्लैक कार्ड सबसे बड़ी पेनल्टी होती है. ये दिखाए जाने का मतलब है कि आपको टूर्नामेंट से बाहर कर दिया गया. लेकिन इसके बाद भी वह नहीं रुकीं. लगातार चलती रहीं. 2016 के रियो ओलंपिक में खेलने से चूकने वाली 27 साल की भवानी ने अपने ओलंपिक खेलने के सपने को पूरा करने के लिए लगभग पांच साल तक, चेन्नई में रहने वाली अपनी फैमिली से हजारों किलोमीटर दूर यूरोप में ट्रेनिंग की है. ट्रेनिंग के साथ इवेंट्स में भी भवानी अक्सर अकेली भारतीय ही रहती हैं. इस बारे में उन्होंने ESPN से कहा,
'एक भारतीय तलवारबाज के रूप में आपको हर चीज में दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है. यह हमारे देश में पॉपुलर खेल नहीं है. मैं अपने ज्यादातर करियर के दौरान बड़े इवेंट्स में अकेली भारतीय होने की आदी हो चुकी हूं. जब मैं बुडापेस्ट पहुंची तो मेरे दिमाग में एक चीज साफ थी- टोक्यो के लिए क्वॉलिफाई कर पाऊं या नहीं, मुझे कोई अफसोस नहीं होना चाहिए. मुझे पता है कि मैंने पिछले पांच सालों में कितनी ट्रेनिंग की है. मैंने कितनी मेहनत की है और इस दौरान अपने परिवार से दूर रहना, हर त्यौहार मिस करना, कितना मुश्किल रहा है. मुझे सिर्फ एक बाद का अफसोस है कि मेरे पिताजी इस पल में हमारे साथ नहीं हैं.'
साल 2019 में अपने पिता को खोने वाली भवानी अब टोक्यो में अपनी सबसे बड़ी चुनौती का सामना करेंगी. आठ बार की नेशनल चैंपियन भवानी देवी कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप टीम इवेंट्स में एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज़ मेडल जीत चुकी हैं. जबकि इसी चैंपियनशिप के इंडिविजुअल इवेंट में उनके नाम एक ब्रॉन्ज़ मेडल है. साल 2010 की एशियन तलवारबाजी चैंपियनशिप में भी उन्होंने ब्रॉन्ज़ मेडल जीता था. साल 2014 की एशियन चैंपियनशिप में भवानी ने इंडिविजुअल इवेंट का सिल्वर मेडल जीता था जबकि अगले साल इसी चैंपियनशिप के इसी इवेंट में उन्होंने ब्रॉन्ज़ मेडल अपने नाम किया था. कॉमनवेल्थ तलवारबाजी चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय भवानी देवी अब ओलंपिक में कमाल करने के लिए तैयार हैं. दी लल्लनटॉप की ओर से उन्हें बहुत शुभकामनाएं. अब जाते-जाते आपको थोड़ा सेबा के बारे में भी बता दें. शॉर्ट में समझें तो सेबा में तलवारबाज एक-दूसरे के शरीर पर वार करके पॉइंट्स कमाते हैं. इसमें कमर से ऊपर, कलाइयों के अलावा कहीं भी तलवार टच कराकर पॉइंट बनाया जा सकता है.