दस बरस में वो ज़ख़्म शायद भर चुका हो लेकिन उसका गहरा निशान तो अब भी बाक़ी होगा ही. मैं उस भरे हुए ज़ख़्म को फिर से कुरेदने जा रही थी. ऐसा नहीं है कि आशा देवी को दस साल पहले भयंकर क्रूरता से कत्ल कर दी गई अपनी बेटी की याद मेरे फ़ोन से ही आती. लेकिन उन्हें फ़ोन करते वक़्त मैं झिझकी थी: क्या पूछूंगी उस मां से जिसकी बेटी के साथ दिल्ली की सड़कों पर बेमक़सद चक्कर काट रही एक बस के भीतर छह लोगों ने बारी बारी से बलात्कार किया. इससे भी उनके सिर से खून नहीं उतरा तो लोहे की रॉड से 23 साल की उस बेबस लड़की की आंते बाहर निकाल दीं. उसे एक सुनसान सड़क पर मरता हुआ छोड़कर रेप करने वाले बस ड्राइवर और उसके साथी फ़रार हो गए.