इन तीनों नेताओं पर सितम्बर 2013 के दौरान मुज़फ़्फ़रनगर के नगला मंडोर गांव में आयोजित महापंचायत में भड़काऊ भाषण देने का आरोप है. आरोप है कि इसी भाषण के बाद मुज़फ़्फ़रनगर में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच हिंसा भड़की थी.

वर्तमान में संगीत सोम मेरठ की सरधना विधानसभा से विधायक हैं, सुरेश राणा शामली के थाना भवन से और कपिल देव मुज़फ़्फ़रनगर सदर की सीट से विधायक हैं. इन तीनों के अलावा साध्वी प्राची का भी नाम इस लिस्ट में हैं.
आरोप ये भी है कि इन तीनों नेताओं ने सरकार के आदेशों का उल्लंघन किया, सरकारी तंत्र के साथ बहस में उतर आए और आगजनी में शामिल थे. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में सरकारी वक़ील राजीव शर्मा ने बताया है कि केस वापिस लेने की याचिका कोर्ट में लगा दी गयी है, और अभी मामला लम्बित है.

भाजपा विधायकों और पूर्व सांसद हरेंद्र सिंह मलिक के खिलाफ़ शिखेड़ा पुलिस थाने में केस दर्ज किया गया था. आरोप लगा कि उन्होंने महापंचायत में एक ख़ास समुदाय के खिलाफ़ भाषण दिया. निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया और बिना किसी अनुमति के महापंचायत का आयोजन किया. इन पर IPC की धारा 188, 353, 153A, 341 और 435 के तहत मुक़दमे दर्ज किए गए. राज्य सरकार द्वारा गठित SIT ने संगीत सोम, सुरेश राणा, कपिल देव, साध्वी प्राची और हरेंद्र मालिक के खिलाफ़ चार्जशीट भी दायर कर दी थी.

इसके बाद साल 2017 में प्रदेश की सत्ता बदली. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. फ़रवरी 2018 में भाजपा सांसद संजीव बालियान की अध्यक्षता में खाप चौधरियों का एक दल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिला. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर की मानें तो इस दल ने आदित्यनाथ से मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में हिंदुओं के खिलाफ़ दर्ज मुक़दमों को वापिस लेने की सिफ़ारिश की. इसके बाद राज्य सरकार ने तमाम पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से राय मांगी, ताकि मुक़दमा वापसी की प्रक्रिया शुरू की जा सके.
हुआ क्या था?
27 अगस्त 2013. जाट समुदाय के दो युवकों सचिन और गौरव की कवाल गांव में हत्या हो गयी थी. कैसे? ख़बरें बताती हैं कि सचिन और गौरव ने एक मुस्लिम युवक शाहनवाज़ क़ुरैशी की हत्या कर दी थी, जिसके बाद मुस्लिम समुदाय की भीड़ ने सचिन और गौरव की पीट-पीटकर हत्या कर दी.
7 सितंबर 2013. नगला मंडोर गांव के एक इंटर कॉलेज में जाट समुदाय ने इसी विषय पर महापंचायत का आयोजन किया. ख़बरें बताती हैं कि महापंचायत से लौट रहे लोगों पर हमला हुआ, जिसके बाद मुज़फ़्फ़रनगर में दंगा भड़क गया. आसपास के कुछ जिलों तक दंगों की आंच पहुंची. कुल 65 लोग मारे गए थे, जबकि 40 हज़ार से ज़्यादा लोग विस्थापित हुए थे. कुल 510 केस दर्ज किए गए, जिसमें से 175 केसों में पुलिस ने चार्जशीट दायर की. कहा जाता है कि बाक़ी बचे मुक़दमों में पुलिस ने या तो क्लोज़र रिपोर्ट लगा दी या तो केस ही बंद कर दिया.