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पुलिस क्राइम सीन को रीक्रिएट क्यों करती है? स्वाति मालीवाल केस में इससे क्या पता लगेगा?

Delhi पुलिस Bibhav Kumar को CM Arvind Kejriwal के घर लेकर गई. क्राइम सीन को रीक्रीएट किया गया. स्वाति मालीवाल को ले जाकर भी क्राइम सीन रीक्रीएट किया गया था. ऐसे में सवाल ये कि क्राइम सीन रीक्रिएट क्यों किया जाता है? क्या ये सिर्फ कानूनी खानापूर्ति होती है? फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स और वकीलों का इसपर क्या कहना है?

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कई बार तो डॉक्टर और फॉरेंसिक एक्सपर्ट तक को इससे नई जानकारी मिलती है | फोटो: इंडिया टुडे

AAP की राज्य सभा सांसद स्वाति मालीवाल के केस की जांच स्पेशल जांच टीम (SIT) कर रही है. सोमवार, 20 मई को SIT दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पूर्व-निजी सचिव बिभव कुमार (Bibhav Kumar) को लेकर पहले CM आवास पहुंची,‌ फिर बिभव के घर. स्वाति (Swati Maliwal) ने आरोप लगाए थे कि CM आवास के ड्रॉइंग रूम में बिभव कुमार ने उनके साथ मारपीट की थी. टीम ने पूरी घटना को री-क्रिएट किया.

दरअसल, टीम पता लगाना चाह रही है कि घटना वाले दिन (13 मई की सुबह) असल में हुआ क्या था. आरोपी और पीड़ित, दोनों को ही क्राइम सीन पर ले जाकर क्राइम सीन रीक्रीएट कराया जा चुका है. बाक़ायदा सीक्वेंस से उसकी मैपिंग की गई, उसकी फ़ोटोग्राफी भी की. अब दोनों के बयान लिए जा रहे हैं और वो जो घटनाक्रम बता रहे हैं, उसकी समीक्षा की जा रही है. इससे पहले दिल्ली पुलिस स्वाति मालीवाल को लेकर भी CM हाउस पहुंची थी, और क्राइम सीन रीक्रीएट किया था.

यहां पर एक सवाल ये उठता है कि क्राइम सीन रीक्रिएट क्यों किया जाता है? क्या ये सिर्फ कानूनी खानापूर्ति होती है? इन सवालों के जवाब खोजने के लिए दी लल्लनटॉप ने फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स और वकीलों से बातचीत की.

कैमरा झूठ तो नहीं बोलता, लेकिन…

फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर तीरथ दास डोगरा 1971 से फॉरेंसिक्स में काम कर रहे हैं और कई हाई प्रोफाइल मामलों की जांच के बाद अपनी राय रख चुके हैं, मसलन 2002 गुजरात दंगे, आरुषि हत्याकांड आदि. उन्होंने क्राइम सीन रीक्रिएशन पर कहा -

'रीक्रिएशन के कई उद्देशय होते हैं, जो केस के हिसाब से तय होते हैं. इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर के दिमाग में खुद कई सवाल आते हैं, जिनके जवाबों की तलाश में ये किया जाता है. ये पता होना जरूरी है कि हम रीक्रिएशन से ढूंढ क्या रहे हैं? क्या समस्याएं आ रही हैं? ये रीक्रिएशन कैसे इस केस की कार्रवाई में मददगार साबित होगा? रीक्रिएशन करने का सबसे बेसिक पर्पज़ यही होता है.

कई बार इन्वेस्टिगेशन अटक जाती है, और रीक्रिएशन से इसमें नई चीज़ें उजागर हो जाती हैं. मैंने ऐसे कई मामलों पर काम किया है जिसमें लोगों ने कहा था कि ये लगभग नामुमकिन है, पर रीक्रिएट कर साबित किया गया कि ऐसा होना मुमकिन है. दूसरी बात, आपको जो बातें या घटनाक्रम पता है, उसे कोरेबोरेट (सत्यापित) करने के लिए भी कई बार सीन रीक्रिएशन जरूरी है.'

हमने डॉ. डोगरा से आगे पूछा कि कुछ मामलों में घटना कैमरे या कैमरों पर साफ तरीके से कैद हो जाती है, जैसे अतीक अहमद की हत्या को कैमरे पर सबने देखा. तो फिर ऐसे मामलों में सीन रीक्रिएट करने की क्या जरूरत है? इसपर डॉ. डोगरा ने कहा कि कई बार कैमरे भी धोखा दे सकते हैं. कैसे, उन्होंने बताया,

‘मैंने कई ऐसे केसों पर काम किया है जिसमें कैमरे के फुटेज से बड़े-बड़े अफसर गुमराह हो गए थे. अगर वो फोटो है, तो वो मिसलीडिंग हो सकती है. वीडियो भी बिना एडिट किया ही होना चाहिए.

सीन रीक्रिएट कर अधिकारी इस बात की भी पुष्टि कर लेते हैं कि कहीं कोई चीज़ मिसकैलकुलेट तो नहीं हो रही. (मिसाल के तौर पर) कई बार कैमरे के एंगल की वजह से रोड पर पड़ी कोई चीज़ मिस हो जाती है, वो सीन रीक्रिएट कर समझ आती है. हालांकि, सीन रीक्रिएशन में उन्हीं चीज़ों को दोहराया जाता है, जो कैमरे में नज़र आई हो. ऐसा भी होता है कि एक ही केस में हमें चार-पांच बार सीन रीक्रिएट करना पड़े.'  

डॉ. डोगरा ने आगे ये भी बताया कि कई बार तो डॉक्टर और फॉरेंसिक एक्सपर्ट तक को क्राइम सीन रीक्रिएशन से नई जानकारी मिलती है.

वो कहते हैं,

'सबसे पहले तो इससे वारदात को कन्फर्म किया जाता है. हां, ये (घटना) मुमकिन है, इस तरह से हो सकती है. कैमरे में कई बार चीजें क्लीयर नहीं होतीं. कैमरे में इवेंट पूरी तरह से नज़र नहीं आता है. कोर्ट में साबित करना होता है, कि इसी हथियार का इस्तेमाल किया गया था. डॉक्टर्स को अपनी राय देनी पड़ती है, कि यही वेपन है, जिससे हमला किया गया. ऐसे में सीन रीक्रिएशन से डॉक्टर्स को मदद मिलती है, कि ऐसी सिचुएशन थी. तब जाकर डॉक्टर बता पता है, कि जो शारीरिक आघात हुए हैं, वो ऐसे हुए हैं. आपको कोर्ट में सारी चीज़ें साबित करने के लिए ऐसा करना पड़ता है. हालांकि, किस तरह का केस है ये बात इस पर भी निर्भर करती है. कई केसों में मुझे रीक्रिएशन करने के बाद नई जानकारी मिली है. वो भी वीडियो रिकॉर्डिंग मिलने के बावजूद.'

वकीलों ने क्या कहा?

डॉक्टर डोगरा के बाद हमने वकीलों से बातचीत कर ऐसे मामलों में लीगल पेचीदगियों को समझने की कोशिश की. इंडिया टुडे के लिए लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट कवर कर रहे संजय शर्मा ने कुछ समय पहले आपराधिक मुकदमों के विशेषज्ञ वकील सुशील टेकरीवाल से बात की. सुशील ने बताया कि सीसीटीवी फुटेज मान्य सबूत नहीं है. वारदात से जुड़े जैविक यानी बायोलॉजिकल, फॉरेंसिक, साइंटिफिक और फिजिकल सबूत किसी भी घटना के प्राथमिक सबूत माने जाते हैं. सीन रीक्रिएशन से कई चीज़ें मिल सकती हैं. खून के निशान, हथियार, संयोग से रह गए उंगली के निशान, और कुछ दूसरे फॉरेंसिक और जैविक सबूत भी सीन रीक्रिएशन से मिल सकते हैं.

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टेकरीवाल के मुताबिक सीसीटीवी फुटेज की अहमियत कोरेबोरेटिव एविडेंस या पुष्टिकारक साक्ष्य के तौर पर ही होती है. यानी सीसीटीवी फुटेज अपराध की कड़ियां जोड़ने में मददगार बन सकता है, लेकिन मुख्य कड़ी नहीं हो सकता. अपराध साबित करने का मुख्य ज़रिया मौलिक और वैज्ञानिक सबूत ही होते हैं. माने महज़ सीसीटीवी फुटेज देखकर अदालत फैसला नहीं सुनाती.

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