The Lallantop

तारों, बैरिकेड्स, आंसू गैस से रास्ता रोक रही है, MSP का रास्ता साफ़ क्यों नहीं कर रही है मोदी सरकार?

आंकड़े बताते हैं कि बीते 10 सालों में कई फसलों पर दी जाने वाली MSP दोगुनी ही हो चुकी है. फिर मोदी सरकार को क़ानून बनाकर गारंटी देने में दिक़्क़त क्या है?

post-main-image
किसानों का विरोध प्रदर्शन दिल्ली की सींमा में घुस नहीं पाया है. (फ़ोटो - PTI)

संयुक्त किसान मोर्चा (ग़ैर-राजनीतिक) और किसान-मज़दूर मोर्चे के नेतृत्व में सैकड़ों किसान दिल्ली की ओर अग्रसर हैं. हालांकि, किसानों का ये जत्था दिल्ली की सीमा में घुस नहीं पाया है. पुलिस प्रशासन ने कीलों, तारों, बैरिकेड्स और आंसू गैस से उनका रास्ता रोक रखा है. किसान मोर्चे की मुख्य मांग ये है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी दे. क़ानून बनाए. स्वामीनाथन कमिशन की रिपोर्ट के हिसाब से क़ीमत तय हो. आंकड़े देखे जाएं, तो बीते दस सालों में फसलों पर मिलने वाली MSP दोगुनी हो गई है. बावजूद इसके नरेंद्र मोदी सरकार MSP पर क़ानून बनाने के लिए मान क्यों नहीं रही है?

MSP है, तो किसान क्यों चाहते हैं गारंटी?

अगर बाज़ार में अमुक फसल का दाम गिर भी जाए, तो किसान आश्वस्त रहता है कि कम से कम सरकार तो उसकी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर ख़रीद ही लेगी. ये किसानों के हित के लिए बनाई गई एक व्यवस्था है. MSP तय करती है कृषि मंत्रालय के तहत आने वाली संस्था, कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP).

अभी सरकार कुल 23 फसलों पर MSP देती है -

  • 7 तरह के अनाज: धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ.
  • 5 तरह की दालें: चना, अरहर, उड़द, मूंग और मसूर.
  • 7 तिलहन: रेपसीड-सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, निगरसीड.
  • 4 व्यावसायिक फसलें: कपास, गन्ना, खोपरा, कच्चा जूट.

हालांकि, इसमें पेच ये है कि MSP सरकार की नीति है. कोई क़ानून नहीं. सरकार MSP घटा-बढ़ा सकती है, बंद भी कर सकती है. किसानों को इसी बात की आशंका रहती है. इसीलिए वो चाहते हैं कि सरकार MSP गारंटी क़ानून बनाए.

दोगुनी हुई MSP, तो किसानों को क्या दिक़्क़त?

बीते 10 सालों में सरकार ने फसलों पर MSP बढ़ाई है. कुछ-कुछ फसलों की MSP दोगुनी हो गई है.

2014-15 में चावल पर MSP था, 1345 रुपये प्रति क्विंटल. 2023-24 में ये बढ़कर 2203 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. बीते दस सालों में ज्वार हाइब्रिड पर मिलने वाली MSP 1500 रुपये सें बढ़कर 3180 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है. बाजरा 1250 रुपये से 2500 रुपये प्रति क्विंटल और रागी 1500 रुपये से बढ़कर 3846 रुपये प्रति क्विंटल हो गया.

ये भी पढ़ें - कैसे निकाली जाती है MSP?

बावजूद इसके किसानों की दूसरी प्रमुख मांग ये है कि MSP तय करने के लिए स्वामीनाथन रिपोर्ट का आसरा लिया जाए. उसमें सुझाए फ़ॉर्मूले से MSP निकाला जाए. दैनिक भास्कर ने इस मौज़ू पर एक विस्तृत रिपोर्ट की है. रिपोर्ट के मुताबिक़, किसानों को वो नहीं दिया जा रहा है, जो स्वामीनाथन कमेटी ने सिफ़ारिश की थी.

- मिसाल के लिए: गेहूं की लागत 1,652 रुपये प्रति क्विंटल है. सरकार ने गेहूं के लिए 2,275 रुपये MSP तय कर रखी है, मगर स्वामीनाथन रिपोर्ट के फ़ॉर्मूले के हिसाब से 2,478 रुपये प्रति क्विंटल मिलनी चाहिए.

- ऐसे ही सूरजमुखी को ले लीजिए. लागत - 5,414 रुपये प्रति क्विंटल, सरकार देती है 5,800 रुपये और स्वामीनाथन फ़ॉर्मूले 8,121 रुपये प्रति क्विंटल.

सरकार क्यों नहीं मान रही स्वामीनाथन फ़ॉर्मूला?

इसका सीधा जवाब तो ये है कि अगर सरकार किसानों की मांगें मान लेती है, तो उन पर ज़बरदस्त वित्तीय भार आ जाएगा.

दैनिक भास्कर ने विषय विशेषज्ञों के हवाले से छापा है कि अगर सरकार MSP वाली सभी 23 फसलों का पूरा उत्पादन ख़रीद ले, तो सरकारी खज़ाने का बोझ बहुत बढ़ जाएगा. अगर सरकार केवल मंडियों से वही फसलें ख़रीदे, जिनका बाज़ार भाव MSP से कम है, तो भी सरकार को वित्तीय वर्ष 2023 के लिए लगभग 6 लाख करोड़ रुपये चाहिए होंगे.

फिर इन्फ़्रास्ट्रक्चर पर जो ख़र्च आएगा, वो अलग से. 2016 से 2023 तक नरेंद्र मोदी सरकार ने कृषि इन्फ़्रास्ट्रक्चर पर 67 लाख करोड़ रुपए ख़र्चे हैं. 

माने अगर MSP गारंटी को लागू कर दिया जाता है, तो सरकार पर बोझ बढ़ेगा. इसीलिए सरकार इससे बच रही है.

या वजह कुछ और?

खेती-किसानी से जो निकलता है, वो फ़ैक्ट्रियों के लिए रॉ मटेरियल है. कच्चा माल. अगर रॉ मटेरियल के दाम बढ़ जाएं, तो लाज़मी है कि इंडस्ट्री का प्रॉफ़िट कम हो जाएगा. इसलिए सरकार पर ये भी आरोप लग रहे हैं कि सरकार कुछ कॉर्पोरेट प्लेयर्स को नफ़ा पहुंचाना चाहती है. इसीलिए किसानों के पक्ष में निर्णय नहीं ले रही.

अगर सरकार MSP का क़ानून बना दे, तो केवल मुनाफ़े के लिए काम करने वाली कंपनियों के लिए मुश्किल बढ़ जाएंगी. कहां वो दाम तय करतीं, जितने पर चाहे फसल ख़रीदतीं. क़ानून बन जाएगा, तो बेस प्राइस सेट हो जाएगा. किसान उनको घाटे पर फसल बेचेगा ही नहीं.

साथ ही कृषि अर्थशास्त्री देंवेंद्र शर्मा का कहना है कि अगर MSP पर क़ानून बन जाए, तो देश की GDP डबल डिजिट में दौड़ेगी. जब देश की 50% आबादी (किसानों) के पास पैसा आएगा, तो ख़र्च भी होगा. पैसे का फ़्लो मार्केट में सरकेगा, तो अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर ही होगी.

ये भी पढ़ें - पिछली बार से कितना अलग है किसान आंदोलन-2.0?

सरकार के लिए एक चुनौती और है. जिन फसलों पर MSP तय की गई है, उन्हें औसत से बेहतर गुणवत्ता (Fair Average Quality) पर ही तय किया गया है. फिर इस केस में जिन फसलों की गुणवत्ता ठीक नहीं है, औसत से कमतर हैं, उनका क्या होगा? उनके लिए MSP तय कैसे होगी?

ख़ुद को किसानों की हितैषी बताने वाली सरकार के सामने अभी कई मुद्दे हैं, जिन पर विचार-विमर्श होना चाहिए. सारे स्टेक-होल्डर्स से बात कर के एक निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए. किसानों और सरकारी खज़ाने को बराबर तवज्जो दी जानी चाहिए. देश के लिए खेत भी उतने ही ज़रूरी हैं, जितनी फ़ैक्ट्रियां. दोनों अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए साथ में काम कैसे कर सकती हैं, सरकार को इस पर सोचना चाहिए.