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ओडिशा के CM बनने जा रहे मोहन माझी ने विधानसभा में दाल क्यों फेंकी थी?

ओडिशा में करीब 23 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. जानकार बताते हैं कि मोहन माझी को सीएम बना कर बीजेपी राज्य की एक बड़ी आबादी को अपने पक्ष में करना चाहती है.

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11 जून को मोहन माझी को विधायक दल का नेता चुना गया. (फोटो- PTI)

28 सितंबर 2023. ओडिशा विधानसभा में बीजेपी के विधायक हंगामा कर रहे थे. ये हंगामा BJD विधायक अरुण कुमार साहू के एक बयान पर हुआ था. उन्होंने कह दिया था कि विपक्ष के विधायकों को 'मानसिक स्वास्थ्य' ठीक कर सदन में आना चाहिए. इसी बयान पर बीजेपी विधायक विरोध कर रहे थे. विरोध करते-करते दो विधायकों ने तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रमिला मलिक के पोडियम की तरफ दाल फेंक दी. इसके बाद दोनों को पूरे सत्र के लिए विधानसभा से निलंबित कर दिया गया. इनमें से एक विधायक तब विधानसभा में बीजेपी के चीफ व्हिप थे. मोहन चरण माझी, जो अब राज्य के नए मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं.

मुख्यमंत्री मोहन माझी

बीजेपी ने एक बार फिर मुख्यमंत्री की घोषणा करते हुए सबको चौंकाया है. 6 महीने पहले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी यही हुआ. जब पत्रकारों से लेकर राजनेता तक सीएम पद के दावेदारों की चर्चा कर रहे थे, तब अचानक से बीजेपी की पर्ची से नए नाम खुलते थे. 11 जून को ओडिशा में भी यही हुआ. सब ओडिशा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल, विधायक सुरेश पुजारी, CAG गिरीश मुर्मु के नामों की चर्चा कर रहे थे. लेकिन अचानक मोहन माझी के नाम से सब इतने अचंभित हुए कि उनके नाम को गूगलियाने लगे.

विधायक दल की बैठक के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था. 11 जून को दोनों केंद्रीय मंत्रियों की मौजूदगी में ये बैठक हुई और माझी के नाम पर सहमति बनी. इसके अलावा, राज्य की नई सरकार में दो डिप्टी सीएम बनाने का फैसला लिया गया है. कनक वर्धन सिंहदेव और प्रभाती परिड़ा राज्य के उपमुख्यमंत्री होंगे.

विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद माझी ने ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास के सामने सरकार बनाने का दावा पेश किया. राज्यपाल को 81 विधायकों के समर्थन का एक पत्र सौंपा गया है. इनमें 78 बीजेपी और तीन निर्दलीय विधायक शामिल हैं. 

मोहन माझी राज्य के तीसरे आदिवासी मुख्यमंत्री होंगे. इससे पहले कांग्रेस के हेमानंद बिस्वाल और गिरिधर गमांग आदिवासी सीएम रह चुके हैं. ओडिशा की राजनीति में मोहन माझी भले ज्यादा चर्चित नहीं हों, लेकिन पिछले साल 28 सितंबर की घटना ने उनकी तरफ सबका ध्यान खींचा था.

विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद मोहन माझी (फोटो- पीटीआई)

मोहन माझी ने तब विधानसभा अध्यक्ष की तरफ दाल फेंकने के आरोपों को खारिज कर दिया था. मीडिया से कहा था कि बीजेपी विधायक विधानसभा अध्यक्ष प्रमिला मलिक को गिफ्ट देने के लिए दाल सदन में लेकर आए थे. उन्होंने अपने निलंबन को राजनीति से प्रेरित बताते हुए दावा किया था कि विधानसभा अध्यक्ष ने CCTV फुटेज की जांच किए बिना ही उन्हें निलंबित कर दिया. माझी ने विधानसभा अध्यक्ष और बीजेडी सरकार को अपने खिलाफ लगे आरोप को साबित करने की चुनौती दी थी.

मोहन माझी को क्यों चुना गया?

ओडिशा विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद बीजेपी पहली बार राज्य में सरकार बनाने जा रही है. 2009 तक बीजू जनता दल के साथ गठबंधन में सरकार का हिस्सा रही. लेकिन अब अपने दम पर सरकार में आ रही है. मोहन माझी के रूप में पार्टी ने आदिवासी चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया है. वे संथाल समुदाय से आते हैं. संथाल भारत के सबसे पुराने और सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है.

ओडिशा में करीब 23 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. जानकार बता रहे हैं कि माझी को सीएम बना कर बीजेपी राज्य की एक बड़ी आबादी को अपने पक्ष में करना चाहती है. इसके अलावा इस साल झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है.

इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को आदिवासी समुदाय का भरपूर समर्थन मिला है. जिस क्योंझर जिले से मोहन माझी आते हैं, वहां की सभी तीन आदिवासी आरक्षित विधानसभा सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी. इसके बगल के मयूरभंज जिले की सभी सीटों से भी बीजेपी के विधायक चुनकर आए हैं.

राज्य के सीनियर पत्रकार संदीप मिश्रा कहते हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में मोहन माझी का नाम भी चर्चा में था. उन्होंने बताया,

"माझी यहां बीजेपी का एक प्रमुख आदिवासी चेहरा हैं. भाजपा नैरेटिव सेट करना चाहती है कि वो एक आम कार्यकर्ता को भी सीएम पद तक पहुंचा सकती है. नवीन पटनायक के रूप में यहां वन मैन पॉलिटिक्स थी. इसके काउंटर में बीजेपी ये टीम वर्क वाला नैरेटिव चलाना चाहती है."

ओडिशा में पिछले कई सालों से धर्मेंद्र प्रधान पार्टी का चेहरा बने थे. केंद्रीय मंत्री के तौर पर शपथ लेने तक उन्हीं के नाम की चर्चा थी. लेकिन उनके शिक्षा मंत्री बनते ही चर्चाओं पर विराम लग गया. एक और वरिष्ठ पत्रकार संदीप साहू इसके पीछे की वजहों को समझाते हैं. वो कहते हैं, 

"पार्टी सूत्रों का कहना है कि चूंकि यहां पहली बार बीजेपी की सरकार बन रही है इसलिए पार्टी नेतृत्व गलत मैसेज नहीं देना चाहता था. पार्टी उन्हीं 78 विधायकों में से किसी नेता को चुनना चाह रही थी. अगर भाजपा इससे अलग करती तो लोगों के समर्थन का अपमान भी होता."

मोहन माझी की कहानी

52 साल के माझी खनिज संपन्न जिले क्योंझर से आते हैं. क्योंझर से ही वे विधायक भी बनते रहे हैं. चार बार विधायक बन चुके हैं. क्योंझर के बगल वाले जिले मयूरभंज से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु आती हैं. माझी का बैकग्राउंड एक बहुत ही साधारण परिवार का है. 1987 में उन्होंने झुमपुरा से हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी. इसके बाद 1990 में आनंदपुर कॉलेज से 12वीं किया. 1993 में क्योंझर के चंद्रशेखर कॉलेज से ग्रैजुएशन की डिग्री ली.

माझी को उनके संगठन के कार्यों के लिए जाना जाता है. सक्रिय राजनीति में आने से पहले वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए थे. झुमपुरा में आरएसएस के सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में टीचर के रूप में अपना करियर शुरू किया था. वहां वे 'गुरुजी' के नाम से जाने जाते थे. 1997 में वे गांव के सरपंच बने थे और यहीं से उनका राजनीतिक करियर शुरू हो गया. विधायक चुने जाने से पहले वे कुछ समय तक बीजेपी आदिवासी मोर्चा के सचिव भी रहे.

राज्यपाल रघुवर दास के साथ मोहन माझी (फोटो- PTI)

तीन साल बाद विधानसभा के चुनाव हुए. 2000 में जब नवीन पटनायक पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने, उसी साल क्योंझर से पहली बार मोहन माझी विधानसभा में चुनकर पहुंचे थे. फिर 2004 चुनाव में भी वे दोबारा चुने गए. फिर 2019 में माझी यहां से विधायक बने. उसी साल बीजेपी ने उन्हें विधानसभा में पार्टी का चीफ व्हिप नियुक्त किया था. 2005 से 2009 के बीच बीजेडी और बीजेपी गठबंधन सरकार के दौरान माझी को डिप्टी चीफ व्हिप भी बनाया गया था. सक्रिय राजनीति में रहते हुए उन्होंने 2011 में ढेनकनाल लॉ कॉलेज से एलएलबी किया था.

जब माझी की कार पर फेंका गया बम

तीन साल पहले भी मोहन माझी चर्चा में आए थे, जब उनकी कार पर बम फेंका गया था. 10 अक्टूबर 2021 को क्योंझर जिले में ही मोटर साइकिल पर सवार बदमाशों ने उनकी कार पर देसी बम फेंक दिया था. माझी ने हमलावरों का पीछा भी किया था लेकिन वे भाग गए थे. तब माझी ने आरोप लगाया था कि सत्ताधारी बीजेडी के स्थानीय नेताओं ने हमले की योजना बनाई थी.

संदीप मिश्रा बताते हैं कि राज्य में माइनिंग घोटाला हो, कुपोषण का मुद्दा हो या दूसरे जो भी मुद्दे हों, मोहन माझी ने इन सबके खिलाफ हमेशा मुखर रहेे. विधानसभा में भी वे चीफ व्हिप के रूप में काफी एक्टिव रहे. यानी वो पहले से एक चर्चित नाम तो थे.

राज्य को 24 साल बाद एक नया मुख्यमंत्री मिलने जा रहा है. इसलिए पत्रकार संदीप साहू एक अलग नैरेटिव को समझाते हैं. उनके मुताबिक, 

"पश्चिमी ओडिशा बीजेपी का गढ़ रहा है. इस बार उसी इलाके से कम से कम तीन प्रमुख नेता मुख्यमंत्री के दावेदार थे. पहला जयनारायण मिश्रा जो संबलपुर से विधायक हैं, पिछले विधानसभा में वे विपक्ष के नेता थे. दूसरे सुरेश पुजारी, जो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे चुके हैं. और तीसरे, केवी सिंह, जिन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया है. अगर इन तीनों में किसी एक को मुख्यमंत्री बनाया जाता तो बाकी दावेदारों के समर्थक नाराज हो सकते थे, और इस कारण पार्टी में खलबली मच सकती थी. इसलिए एक ऐसे व्यक्ति को चुना गया जो उत्तरी ओडिशा से है और साफ-सुथरी छवि है."

संदीप के मुताबिक, इसको बैलेंस करने के लिए बीजेपी ने पश्चिमी ओडिशा से कनक वर्धन सिंहदेव को और तटीय ओडिशा से प्रभाती परिड़ा को डिप्टी सीएम बनाया है. प्रभाती ओबीसी समुदाय से आती हैं और महिला हैं. संदीप बताते हैं कि चाहे वो जाति का आधार हो या लिंग का, बीजेपी ने हर तरीके से बैलेंस बैठाने की कोशिश की है.

राज्य में धीरे-धीरे बीजेपी ने पकड़ बनाई

लंबे समय से ओडिशा में बीजेपी का संगठन मजबूत नहीं था और ना ही पार्टी के पास कोई मजबूत चेहरा था. क्योंकि लंबे समय तक वो बीजेडी के साथ गठबंधन में यहां सरकार में बनी रही. इसका अंदाजा बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में हुआ. मोदी लहर के बावजूद बीजेपी को ओडिशा में 21 लोकसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट मिली. इसके बाद पार्टी ने जमीन पर मेहनत करनी शुरू की. इस मेहनत का नतीजा नजर भी आया.

राज्यपाल रघुवर दास के साथ मोहन माझी और बीजेपी के दूसरे नेता (फोटो- पीटीआई)

2012 के पंचायत चुनाव में बीजेपी के खाते में 854 में से सिर्फ 36 सीट आई थीं. लेकिन यह आंकड़ा 2017 में बढ़कर 299 पर पहुंच गया. पार्टी को 33 फीसदी वोट मिला जो कि बीजेडी के मुकाबले 8 फीसदी कम था. जानकारों ने लिखा कि बीजेपी ने इस चुनाव में बीजेडी के वोट बैंक में सेंध लगा दी है. इसके बाद लगातार राज्य में बीजेपी की स्थिति मजबूत होती चली गई.

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2019 के चुनावों में भी बीजेपी को फायदा मिलता दिखा. लोकसभा में सीटों की संख्या एक से बढ़कर आठ हो गई. विधानसभा में 10 से बढ़कर 23. वोट पर्सेंटेज भी 18 से बढ़कर 32.49 फीसदी पर पहुंच गया. लोकसभा में जो आठ सीटें आईं, उनमें से पांच पश्चिमी ओडिशा के इलाके की थी.

और अब 2024 में जब भाजपा अकेले राज्य में सरकार बनाने जा रही है तो विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट पर्सेंट भी बढ़कर 40 फीसदी हो गया. वहीं लोकसभा में पार्टी ने 21 में 20 सीटें अपने नाम कर लीं. लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट पर्सेंट 45.34 फीसदी रहा है.

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