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जब मुलायम सिंह अड़ गए, इंडिया को 'भारत' करने का प्रस्ताव तक पारित करवा दिया!

मुलायम सिंह लाए भारत का प्रस्ताव तो बीजेपी वाले वॉकआउट कर गए?

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो- पीटीआई)

G20 समिट के दौरान डिनर के लिए भेजे गए निमंत्रण में 'इंडिया' की जगह 'भारत' लिखने का विवाद थमता नहीं दिख रहा है. कुछ लोग नाम के इतिहास को खोजने में लगे हैं. इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी याद आ गए. दरअसल, मुख्यमंत्री के रूप में अपने आखिरी कार्यकाल में मुलायम सिंह विधानसभा में एक प्रस्ताव लेकर आए थे. ये प्रस्ताव संविधान में 'इंडिया' से पहले 'भारत' लाने का था. विधानसभा में ये प्रस्ताव पारित भी हो गया था.

साल 2004 की बात है. लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने मैनिफेस्टो में भी इसकी चर्चा की थी. वादा किया था कि अगर वो सत्ता में आती है तो देश का नाम 'भारत' करेगी. पार्टी का कहना था कि देश की गरिमा और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए, देश का नाम इंडिया से भारत होना चाहिए. अंग्रेजी अखबार टेलीग्राफ में छपी खबर के मुताबिक, सपा ने मैनेफेस्टो (2004) में कहा था, 

"200 सालों के ब्रिटिश राज में देश के नाम को तोड़-मरोड़कर इंडिया कर दिया गया. भगवान जाने संविधान निर्माताओं ने भारत से पहले इंडिया का जिक्र क्यों किया और लगातार करते रहे."

इसके बाद 3 अगस्त, 2004 को मुलायम सिंह यादव विधानसभा में एक प्रस्ताव लेकर आए. इसमें कहा गया कि संविधान में संशोधन कर "इंडिया, दैट इज भारत" के बदले "भारत, दैट इज इंडिया" किया जाना चाहिए. सदन में ये प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया. हालांकि ध्यान देने वाली बात यहां ये है कि इससे पहले बीजेपी के विधायक सदन से वॉक आउट कर चुके थे. 

कुछ जगहों पर ये खबर लिखी है कि बीजेपी ने इसी ‘भारत’ वाले प्रस्ताव पर वॉक आउट कर दिया था. हालांकि 'आज' अखबार की पुरानी रिपोर्ट से पता चलता है कि बीजेपी ने हरिद्वार को उत्तर प्रदेश में शामिल कराए जाने के मुद्दे पर वॉक आउट किया था. उसी दिन ये प्रस्ताव भी लाया गया था.

संविधान का अनुच्छेद-1 कहता है, 'इंडिया, दैट इज भारत, जो राज्यों का संघ होगा.' इसका मतलब है कि अनुच्छेद-1 'इंडिया' और 'भारत', दोनों को मान्यता देता है.

इस मसले पर मुलायम सिंह यादव का स्टैंड समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रेरित था. लोहिया देश में अंग्रेजी थोपे जाने का विरोध किया करते थे. हालांकि उन्होंने इसके बदले हिंदी लाने की बात नहीं की थी. बल्कि लोहिया ने अंग्रेजी के बदले हिंदुस्तानी ज़बानों की वकालत की थी. उनका मानना था कि आबादी का एक छोटा हिस्सा जिसे अंग्रेजी में महारत हासिल है, वो उसे सत्ता या स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करता है. लोहिया के मुताबिक, दुनिया के हर देश में सभी सरकारी या सार्वजनिक काम उसी भाषा में होते हैं, जिसे बहुसंख्यक लोग समझते और जानते हैं लेकिन हमारे देश में ठीक इसका उल्टा है.

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समाजवादी पार्टी के नेता सुनील सिंह यादव ने भी 2004 के इस प्रस्ताव का जिक्र किया. सुनील सिंह ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए बताया, 

"नेताजी (मुलायम सिंह यादव) ने 2004 में ये बात कही थी कि अगर हम कभी सत्ता में आए तो इंडिया का नाम बदलकर भारत कर देंगे. लेकिन नेताजी का भाव क्या था? भारत का मतलब क्या है, भारत का मतलब गांवों में रहने वाला आदमी, किसान, गरीब. हम बचपन से भारत माता की जय बोलकर ही देश को प्रणाम करते हैं. लेकिन नेताजी की भारत को लेकर मंशा ये थी कि किसान और गरीब की मदद हो. लेकिन बीजेपी नाम तो रख रही है लेकिन 9 साल में भारत के लिए क्या किया, किसान और गरीब के लिए क्या किया? बीजेपी ये सिर्फ राजनीतिक फायदा लेने के लिए कर रही है."

हालांकि सरकार ने किसी तरह की घोषणा नहीं की है, लेकिन चर्चा शुरू हो गई कि सरकार देश का नाम सिर्फ 'भारत' कर देगी. केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने इस तरह की चर्चा को अफवाह बता दिया है. अनुराग ठाकुर ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि ये सिर्फ अफवाहें हैं, वे सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि जो कोई भी भारत शब्द पर आपत्ति जताता है, वो साफ तौर पर उसकी मानसिकता को दिखाता है.

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