ज्ञानवापी मस्जिद और इससे जुड़ी चीजें हर तरफ चर्चा का विषय बनी हुई हैं. इनमें मस्जिद का वजूखाना भी शामिल है. सर्वे के दौरान इसी वजूखाने में वो आकृति मिली थी जिसे हिंदू पक्ष ने 'शिवलिंग' करार दिया है. हम इस कथित शिवलिंग पर बात नहीं करने जा रहे. इस रिपोर्ट में जानेंगे कि नमाज पढ़ने से पहले मुस्लिम वजूखाने में वजू क्यों करते हैं और वजू होता क्या है.
वजू क्या है और नमाज से पहले इसे करना कितना जरूरी है?
इस रिपोर्ट में जानेंगे कि नमाज पढ़ने से पहले मुस्लिम वजूखाने में वजू क्यों करते हैं और वजू होता क्या है.

वजू है क्या?
नमाज अदा करने से पहले मुस्लिम समुदाय के लोग शारीरिक शुद्धता के लिए वजू करते हैं. वजू इस्लाम धर्म की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शरीर को शुद्ध करने के लिए मुंह, सिर, पैर और दोनों हाथों को कुहनियों तक पानी से अच्छी तरह धोया जाता है. इस्लाम धर्म के जानकार बताते हैं कि वजू करने के बाद ही नमाज पढ़ी जा सकती है या अल्लाह की इबादत की जा सकती है.
लेकिन वजू के इतिहास और उससे जुड़े दूसरे तथ्यों की पूरी जानकारी तो हमारे पास नहीं थी गुरु. अब एक साथ सब विषयों का ज्ञाता तो बना नहीं जा सकता. लेकिन आप लोगों के लिए जानकारी जुटानी भी ज़रूरी है. सो हमने बात की इंडिया इस्लामिक अकेडमी के डायरेक्टर चीफ मेहंदी हसन से. उनसे सबसे पहले हमने सवाल पूछा कि वजू है क्या और उसके मायने क्या हैं? उन्होंने हमें बताया,
“‘वजू’ शब्द का अर्थ होता है साफ़- सफाई करना. इस्लाम में वजू करना फ़र्ज़ है, माने ज़रूरी है. हम जब अपने रब के सामने नमाज़ के दौरान खड़े होते हैं तो उसके लिए साफ़-सफाई रखनी ज़रूरी होती है. नमाज़ के दौरान जैसे हमारा दिल साफ़ होता है वैसे ही हमारा शरीर भी साफ़ होना चाहिए. इसके लिए वजू की प्रक्रिया लाज़मी होती है.”
हमने मेहंदी हसन से अगला सवाल किया कि वजू का इतिहास क्या है? ये कहां से आया? इसके जवाब में उन्होंने हमें बताया,
“वजू का ज़िक्र खुद कुरआन में मिलता है. कुरआन की सुरह मायदा, आयत नंबर 6 में वजू के बारे में अल्लाह ने आदेश दिया हुआ है. और कुरआन में जिस चीज़ का आदेश होता है वो फ़र्ज़ की कैटेगिरी में आता है, माने उसका करना लाज़मी होता है. उस आयत में चेहरे, हाथ, सिर, पैर को धोकर वजू करने का ज़िक्र है.”
मेहंदी हसन ने ये भी बताया कि अगर कोई उम्र दराज़ हो गया है और उसको पानी से वजू करने में ठंड लगती है या कोई परेशानी है, तो उसके लिए इस्लाम में एक सब्स्टिट्यूट दिया गया है. इसका नाम है तैयमुम. इसमें होता ये है कि आप किसी भी मिट्टी वाली जगह में हाथ-पैर को लगाकर वजू जैसी प्रक्रिया कर सकते हैं. बस उसमें हाथ-पैर फेरने हैं. और जहां मिट्टी न हो, वहां किसी पत्थर, चट्टान का इस्तेमाल किया जा सकता है. घर में हों तो दीवार से ये प्रकिया की जा सकती है.
क्या वजू बनाना फ़र्ज़ है, बिना इसके काम नहीं चलेगा?
इस सवाल के जवाब में मेहंदी हसन ने बताया कि बिना वजू के दूसरी इबादतें की जा सकती हैं. मसलन रोज़ा रखना या और कुछ. लेकिन नमाज़ पढ़ने के लिए वजू बनाना ज़रूरी है. लेकिन अगर आप गुसल (नहाना) करके आए हों, तो वजू बनाना ज़रूरी नहीं. इसका मतलब क्या? माने गुरु, अगर आप सिर से पांव तक नहा लिए हों तो आपको वजू करने की ज़रूरत नहीं है. क्योंकि वजू में वही किया जाता है. और जब आप नहा लेते हैं तो शरीर के वो हिस्से खुद ब खुद ही धुल जाते हैं.
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