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अमेरिकी पत्रकार को जासूस बताकर रूस ने गिरफ्तार क्यों किया?

इवान गेर्शकोविच की पूरी कहानी क्या है?

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इवान गेर्शकोविच को रूस ने क्यों गिरफ्तार किया? (फोटो: आजतक)

‘अक्टूबर 2017 की बात है, मेरे दोस्त इवान गेर्शकोविच ने मोस्को जाने की एक रात पहले मुझे टेक्स्ट किया. उसने लिखा मैं कल सुबह मोस्को जा रहा हूं. वो बहुत खुश लग रहा था. उसने मुझे कहा कि अपने सभी दोस्तों से कह दो मुझे रूस घुमाने के लिए तैयार रहें. अगली सुबह जब वो मोस्को पहुंचा तो उसने मुझे फिर टेक्स्ट किया- लिंडा मैं पहुंच गया हूं. यहां बहुत ठण्ड है. लेकिन उसने मौसम की परवाह नहीं की. उसे वहां के लोगों और उस जगह से प्यार हो गया था. पिछले हफ्ते ही मेरे दोस्त इवान को हिरासत में ले लिया गया. उसका कसूर क्या था. उसका रूस के प्रति प्यार ही उसे वहां खींच लाया था’

ये बात लिंडा ने अपने दोस्त इवान गेर्शकोविच के लिए लिखी हैं. इवान अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार हैं और लगभग 6 सालों से रूस में रह रहे थे. वो अखबार के लिए बतौर रूसी संवादाता काम करते थे. लेकिन 30 मार्च 2023 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है. वो रूसी शहर येकातेरिनबर्ग में रिपोर्टिंग के लिए गए हुए थे. तभी उनकी गिरफ्तारी हुई है. रूस का कहना है कि वे जासूसी कर रहे थे, उन्हें रंगे हाथों पकड़ा गया है, लेकिन वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज किया है. व्हाइट हाउस ने भी कड़े शब्दों में इसकी निंदा की है.

तो आइए जानते हैं
इवान गेर्शकोविच की पूरी कहानी क्या है?
उन्हें रूस ने क्यों गिरफ्तार किया? और अमेरिका का इसपर क्या रिएक्शन आया.
साथ ही ऐसे कुछ केस जानेंगे जिनमें अमेरिकी नागरिक रूस की जेल में बंद रहे, अमेरिका ने उनकी रिहाई करवाई.

कहानी इवान गेर्शकोविच की

साल 1979 में इवान के माता पिता सोवियत यूनियन छोड़कर अमेरिका आ बसे. वो सोवियत यूनियन छोड़कर पराए मुल्क आ तो ज़रूर गए थे लेकिन उसकी छापफ अभी भी नहीं मिटी थी. इवान और उनकी बहन रूसी भाषा बोलते हुए बड़े हो रहे थे. भाषा के इतर इवान का रूसी कल्चर से ख़ास लगाव था. उन्होंने न्यू जर्सी के प्रिंसटन हाई स्कूल से पढ़ाई की. उसके बाद इवान ने फिलॉसफी और अंग्रेज़ी भाषा पढ़ने का मन बनाया. उन्होंने इसके लिए बॉडन कॉलेज में दाखिला ले लिया. पढ़ाई के दौरान ही इवान की लिखने में रुचि पैदा हुई. कॉलेज में रहते हुए ही वो ‘द बॉडन ओरिएंट’ के लिए लिखने लगे. ये उनके कॉलेज का अखबार था. 2014 तक इवान का ग्रेजुएशन पूरा हो गया. ग्रेजुएशन के फ़ौरन बाद वो थाईलैंड चले गए. वहां वो पत्रकारिता से जुड़ी एक फेलोशिप करने लगे. इवान ग्रेजुएशन के बाद लिखाई पढ़ाई में मशगूल हो गए थे. लेकिन फेलोशिप से मिला पैसा कितने दिन साथ देता. फेलोशिप भी खत्म होने को आ रही थी. ऐसे में इवान को एक पर्मानेंट नौकरी की तालाश थी.

हमने शुरुआत में लिंडा का ज़िक्र किया. लिंडा पेशे से पत्रकार हैं और कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में काम कर चुकी हैं. वो इवान को कॉलेज के वक्त से ही जानती हैं. फेलोशिप के बाद जब इवान को नौकरी की ज़रूरत समझ आई तो उन्होंने लिंडा को ही एक खत लिखकर मदद मांगी. उनसे पूछा की मीडिया में जॉब कैसे मिलेगी? इवान, लिंडा को अपने लेख और कई बार स्टोरी पिच भी भेजा करते थे. लिंडा कहती हैं कि इवान के अंदर एक पत्रकारिता का एक जूनून सवार था. वो एक पेशेवर पत्रकार बनने के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार थे.

साल 2016 में इवान की पहली नौकरी लगी. उसने न्यू यॉर्क टाइम्स के साथ काम करना शुरू किया. पर इवान का दिल रूस में लगता था. जैसा कि उसके दोस्त बताते हैं वो रूसी कल्चर से प्रभावित था और उसे वहां के लोगों से प्यार था. इसलिए न्यू यॉर्क टाइम्स में एक साल काम करने के बाद इवान ने बैग पैक कर रूस की टिकट कटा ली. और पहुंच गए मोस्को. साल 2017 में उन्होंने ‘दी मोस्को टाइम्स’ ज्वाइन कर लिया. मोस्को टाइम्स अंग्रेजी और रूसी भाषा में छपने वाला अखबार है. जिस साल इवान ने ये यहां काम शुरू किया उसी साल इसका ऑनलाइन संस्करण भी लॉन्च हुआ. अखबार अक्सर पुतिन की पॉलिसीज़ को लेकर आलोचना किया करता था. साल 2020 में अखबार को अपना हैडक्वाटर रूस से शिफ्ट करना पड़ा. क्योंकि रूस में मीडिया की आज़ादी सीमित करने के लिए कई नियम कानून लाए जा रहे थे. साल 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया. अखबार पर सरकार की आलोचना के आरोप लगे. 

इसी साल अखबार को रूस में बैन कर दिया गया था. पर इवान शायद ये सब पहले ही भांप चुके थे. इन सबके पहले ही साल 2020 में वो नई नौकरी की तालाश में लग गए थे. फिर उन्हें न्यूज़ एजेंसी AFP की तरफ से ऑफर आया. इवान ने कबूल कर लिया. नौकरी बदली लेकिन जगह नहीं. अब इवान जैसे रूस के होकर ही रह गए थे. इवान ने AFP के साथ तकरीबन 2 साल काम किया. और फिर साल 2022 में उन्होंने अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ज्वाइन कर लिया. वो अखबार में बतौर रूसी संवादाता काम करने लगे.

फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ. इवान ने इससे जुड़ी कई स्टोरीज़ अखबार के लिए कवर कीं. मार्च 2023 में इवान रूस के येकातेरिनबर्ग शहर गए. रिपोर्टिंग के लिए. उन्हें वहां वैगनर ग्रुप से जुड़ी कुछ स्टोरी कवर करनी थीं. वैगनर एक प्राइवेट मिलिट्री ग्रुप है, इसका मलिक पुतिन का शेफ़ कहा जाने वाले येवगेनी प्रिगोझिन हैं. प्रिगोझिन एक जाने-माने रूसी फाइनेंसर भी हैं. फरवरी 2021 में येवगेनी का नाम एफबीआई की मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में जोड़ा गया था. वैगनर ग्रुप रूस की तरफ से यूक्रेन की जंग में लड़ रहा है. और बढ़ चढ़कर लड़ रहा है. जानकार बताते हैं कि जब सेना कहीं रिटेलिएट करती है तो आगे हमेशा वैगनर के सैनिकों को ही रखा जाता है. इवान इसी से जुड़ी कुछ स्टोरी कवर करने गए थे. उसी समय उन्हें अरेस्ट किया गया था.

कैसे हुई उनकी गिरफ्तारी?

29 मार्च की शाम इवान फील्ड से लौटे. वो येकातेरिनबर्ग के एक रेस्तरां में गए. ठीक 2 घंटे बाद उनका फोन ऑफ आने लगा. दोस्तों ने उनसे संपर्क साधने की बहुत कोशिशें कीं लेकिन वो नहीं मिले. उनकी लास्ट लोकेशन वहीं बताई जा रही है. 30 तारीख को मीडिया में ख़बर आई कि रूसी सुरक्षा ऐजेंसियों ने उन्हें जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया है. 30 मार्च को ही इवान को मोस्को के एक कोर्ट के सामने से निकलते हुए देखा गया. उनके साथ पुलिस के अफसर मौजूद थे और उन्हें एक गाड़ी में ले जाया जा रहा था. मोस्को कोर्ट की प्रेस सर्विस ने कहा कि इवान को 29 मई तक कस्टडी में रखा जाएगा.

रूसी सुरक्षा एजेंसी FSB का कहना है कि इवान को अवैध गतिविधियों के कारण गिरफ्तार किया गया है. उनपर जासूसी करने का संदेह है. वो पत्रकारिता की आड़ में जासूसी कर रहे थे. हमने इवान को गिरफ्तार कर उनकी अवैध गतिविधियों को रक दिया है. इवान ने रूस में अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ अपील दायर की है. हालांकि अभी तक उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए कोई तारीख मुकर्रर नहीं की गई है. 29 मई तक उन्हें रूस की लेफोटोवो जेल में एक प्री-ट्रायल डिटेंशन सेंटर में रखा गया है. अमेरिका ने इवान की तत्काल रिहा करने की मांग की है. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ टेलीफोन पर बातचीत के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने गहरी चिंता जाहिर की है. और इवान की जल्द से जल्द रिहाई की मांग भी की है.

इवान की गिरफ्तारी से केवल अमेरिका नाराज़ नहीं है बल्कि इसका पूरी दुनिया से रिएक्शन आया है. दुनियाभर के तीन दर्जन से ज़्यादा एडिटर्स ने अमेरिका में रूसी राजदूत को पत्र भेजा है और उसमें अपने साइन किए हैं. पत्र में इवान की हिरासत की निंदा की गई है और कहा गया है कि इवान की अनुचित गिरफ्तारी सरकार की प्रेस विरोधी निति को ज़ाहिर करती है. रूस इवान को गिरफ्तार करके ये संदेश भेज रहा है कि उसकी सीमाओं के भीतर पत्रकारिता करना अपराध है. इस लैटर को साइन करने वालों में द वॉल स्ट्रीट जर्नल, न्यूयॉर्क टाइम्स, बीबीसी, वाशिंगटन पोस्ट और कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स समेत और भी कई संस्थाओं और समूहों के लोग शामिल हैं. इस केस को लेकर लेटेस्ट अपडेट क्या है? अब वो जान लेते हैं.

10 मार्च को अमेरिका ने इवान को "wrongfully detained" का तमगा दिया है. wrongfully detained माने उन्हें झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. इस तमगे के क्या मायने हैं? जब भी किसी नागरिक को विदेश में गिरफ्तार किया जाता है और अमेरिका को पता होता है कि उनका नागरिक बेक़सूर है तो अमेरिका उनकी रिहाई की भरपूर प्रयास करता है. लेकिन जब बात नहीं बनती तो गिरफ्तार शख्स को "wrongfully detained" का तगमा दिया जाता है और उसके केस को office of the Special Envoy for Hostage Affairs को सौंप दिया जाता है. इस डिपार्टमेंट में केस जाने के बाद उसे ज़्यादा तवज्जोह दी जाती है. फिर उस गिरफ्तार शख्स की प्रोफाइल को आगे बढ़ाया जाता है. सरकार उसकी रिहाई के लिए और संसाधन खर्च करने की अनुमति दे देती है. उम्मीद जताई जा रही है कि इसके बाद इवान की रिहाई का रास्ता खुलेगा.  

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन इवान की गिरफ्तारी पर गंभीर नज़र आते हैं. वो पहले दिन से ही इवान की गिरफ्तारी को अवैध बताते आए हैं. आगे क्या होना है ये कहना तो मुश्किल है. लेकिन ऐसे केसेज़ में अब तक का इतिहास क्या कहता है वो आपको ज़रूर बता सकते हैं.

सबसे पहले हालिया घटना पर ही चलते हैं. अमेरिका की बास्केटबॉल प्लेयर ब्रिटनी ग्राइनर फरवरी 2022 में एक बास्केटबॉल चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने के लिए रूस गई थीं. लेकिन रूस पहुंचते ही एयरपोर्ट पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया. रूसी कस्टम अधिकारियों का दावा है कि उनके पास दशमलव सात ग्राम हैश ऑयल मिला था. 07 जुलाई को ग्राइनर को अदालत में पेश किया गया. जहां उन्होंने अपना गुनाह कबूल कर लिया. हालांकि, उन्होंने कहा कि मैं जान-बूझकर ड्रग्स नहीं लाई थी. जल्दबाजी में सामान पैक करते समय डब्बा बैग में छूट गया था. मेरा कानून तोड़ने का कोई इरादा नहीं था. चूंकि ब्रिटनी का केस हाईप्रोफाइल था इसलिए अमेरिका लगातार रूस के साथ नेगोसीएशन में लगा रहा. 8 दिसंबर को 2022 को अमेरिकी जो बाइडन ने ट्वीट कर ब्रिटनी की रिहाई की जानकारी दी. लेकिन उसकी रिहाई के पीछे क्या कहानी है? उसकी रिहाई हुई कैसे? 

हुआ ये कि ब्रिटनी के बदले रूस ने भी अपना एक कैदी मांगा. नाम विक्टर बाउट. ‘मौत का सौदागर’ कहा जाने वाला विक्टर बाउट पिछले एक दशक से अमेरिका की जेल में बंद था. उसकी सज़ा 2036 में खत्म होने वाली थी. विक्टर दुनियाभर में हथियारों की बिक्री और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए कुख्यात था. उसका नेटवर्क अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, सूडान, अंगोला, कांगो, लाइबेरिया, फिलीपींस और रवांडा तक फैला हुआ था. 2007 में उस पर 'मर्चेंट ऑफ डेथ' किताब भी लिखी गई थी. साल 2008 में वो अमेरिका की गिरफ्त में आया था.
दोनों कैदियों को आबूधाबी एयरपोर्ट पर लाया गया. दोनों प्लेन से एयरपोर्ट पर उतरे और अपने-अपने देश के अधिकारियों के साथ अपने-अपने देश चले गए. इस तरह हुई थी एक अमेरिकी नागरिक की रिहाई जो रूस की जेल में करीब 8 माह तक रही थी.

ये तो एक कहानी हुई. लेकिन सोवियत संघ और अमेरिका के बीच कैदियों की अदलाबदली का लम्बा इतिहास रहा है. कोल्ड वॉर के दौर में दोनों देश एक-दूसरे के जासूसों की अदलाबदली करते रहे हैं. आख़िरी बार दोनों के बीच अदला बदली कि प्रक्रिया अप्रैल 2022 में हुई थी. जिन दो लोगों की अदला-बदली हुई थी, उनके नाम थे, ट्रेवर रीड और कोंस्टांटिन यारोशेंको.
ट्रेवर रीड एक पूर्व मरीन हैं जो 2019 में मॉस्को गए थे, अपनी प्रेमिका से मिलने. वहां पुलिस ने उन्हें शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. साथ में एक आरोप लगा. आरोप ये कि पुलिस की गाड़ी में बैठे हुए ट्रेवर रीड ने ड्राइवर का हाथ पकड़ने की कोशिश की, जिसके चलते गाड़ी का एक्सीडेंट होते-होते बचा. इस मामले में रीड को 9 साल की सजा सुनाई गई. इधर रीड का परिवार उनकी रिहाई की कोशिश में लगा रहा. अप्रैल 2022  रीड की रिहाई को लेकर अमेरिका और रूस के बीच एक डील हुई. रूस रीड की रिहाई के लिए तैयार हो गया. बदले में अमेरिका को कोंस्टांटिन यारोशेंको को रूस के हवाले करना पड़ा. यारोशेंको 2010 से अमेरिका की जेल में बंद थे. उसे कोकीन स्मगल करने के आरोप में पकड़ा गया था. यारोशेंको की सजा के आठ साल बाकी थे. लेकिन उससे पहले ही उन्हें रूस के हवाले कर दिया गया. ध्यान दीजिए ये घटनाक्रम तब हुआ जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हो चुका था. और, अमेरिका और रूस के बीच तनाव अपने चरम पर था. चूंकि कैदियों की रिहाई से दोनों देशों के हित सधते हैं, इसलिए अदला-बदली की प्रक्रिया चलती रहती है.

ट्रेवर रीड और ब्रिटनी ग्राइनर के केस से तो ऐसा ही लगता है कि इवांस की रिहाई भी कुछ इस तरह हो सकती है. हम किसी तरह का दावा नहीं कर रहे हैं. लेकिन दोनों देशों का इतिहास तो यही बताता है. ऊपर से इवांस का केस हाई प्रोफाइल बन गया है. वो एक बड़े मीडिया संस्थान में पत्रकार हैं. 

वीडियो: दुनियादारी: पत्रकार या जासूस? अमेरिका-रूस के बीच बड़े झगड़े का प्लॉट तैयार हो गया है!