The Lallantop

ये स्ट्रॉबेरी चंद्र ग्रहण क्या है, जिसे देखने के लिए हर कोई बड़ा एक्साइटेड है?

भारत वाले इसे कितने बजे देख सकते हैं?

post-main-image
तस्वीर जुलाई 2019 में हुए पार्शियल चंद्र ग्रहण की है. फोटो- PTI.

5 जून, 2020 की रात चंद्र ग्रहण है. वो भी स्ट्राबेरी वाला. इसे देखने के लिए लोग बड़े एक्साइटेड हैं. सोशल मीडिया पर रंग-बिरंगे चांद की तस्वीरें डल रही हैं, लेकिन इन सबके बीच सवाल आता है कि ये चंद्र ग्रहण होता क्या है और इसका स्ट्रॉबेरी से क्या लेना-देना है? टाइमिंग क्या है, कैसे देखेंगे? ऐसे ढेरों सवाल हैं. एक-एक करके आगे जवाब जानते हैं.

क्या होता चंद्र ग्रहण?

जब सूरज, पृथ्वी और चांद सीधी लाइन में आ जाते हैं, और पृथ्वी की छाया चांद पर पड़ती है, तब चंद्र ग्रहण होता है. वैसे साल भर में कम ही बार ऐसा होता है, लेकिन जितनी बार भी होता है, पूर्णिमा की रात को ही होता है.


देखिए, चांद पृथ्वी के चक्कर लगाता है, और पृथ्वी सूरज के. चांद करीब-करीब 29 दिन में एक चक्कर पूरा करता है. यही वजह है कि चांद का साइज़ हमें घटता बढ़ता दिखता है. उसके जितने हिस्से में सूरज की रोशनी पड़ती है, पृथ्वी से हम चांद का उतना ही हिस्सा देख पाते हैं. फिर 29 दिनों में एक दिन (या रात कह लीजिए) ऐसा आता है, जब हम पूरा चांद देखते हैं, यानी पूर्णिमा की रात होती है. ऐसा तभी होता है, जब सूरज और चांद पृथ्वी से ऑपोज़िट डायरेक्शन में होते हैं. यानी अगर सूरज पृथ्वी के दाहिनी ओर है, तो चांद बाईं और रहे.

अब ऐसी ही किसी एक रात को पृथ्वी जो है वो सूरज और चांद के एकदम बीचोंबीच आ जाती है, एकदम सीधी लाइन में या फिर करीब-करीब सीधी लाइन में. इस कंडिशन में पृथ्वी की छाया चांद पर पड़ने लगती है, इसे ही चंद्र ग्रहण कहते हैं.

सवाल- फिर हर पूर्णिमा में ग्रहण क्यों नहीं होता?

क्योंकि 'चंदा मामा' का जो पृथ्वी वाला चक्कर है, यानी जो ऑर्बिट है, वो पांच डिग्री झुका हुआ है. इसलिए सूरज, पृथ्वी और चांद के एकदम सीधी लाइन में आने के मौके कम ही बनते हैं. और जब बनते हैं, तब ग्रहण होता है.


Lunar Eclipse
चांद का ऑर्बिट थोड़ा झुका हुआ है. (फोटो- National Geographic वीडियो का स्क्रीनशॉट)

अब ये चंद्र ग्रहण भी तीन तरह के होते हैं-

टोटल/पूर्ण
पार्शियल/आंशिक
पेनम्ब्रल/उप छाया

पृथ्वी को एक ऑब्जेक्ट समझिए और सूरज को टॉर्च. टॉर्च की रोशनी जब ऑब्जेक्ट पर पड़ती है, तो दो तरह की लाइट्स निकलती हैं. पहली एकदम अंधेरी, छाया जैसी. दूसरी थोड़ी उजली, जो छाया वाली लाइट के अलग-बगल से निकलती है. सूरज और पृथ्वी के केस में भी ऐसा होता है. अंधेरी और छाया जैसी रोशनी वाले इलाके को अम्ब्रा (Umbra) कहते हैं. हल्की रोशनी वाले इलाके को पेनम्ब्रा (Penumbra). इन्हीं इलाकों में चांद की मौजूदगी से तीन तरह के ग्रहण होते हैं.


Lunar Eclipse 4
इस तस्वीर में जिस इलाके के ऊपर अम्ब्रा लिखा है, वो अम्ब्रा है. जिसके ऊपर पेनम्ब्रा लिखा है, वो पेनम्ब्रा है. (फोटो- National Geographic वीडियो का स्क्रीनशॉट)

पूर्ण चंद्र ग्रहण- ये तब होता है, जब चांद पूरी तरह से अम्ब्रा में पहुंच जाता है. ऐसे में पृथ्वी सूरज की किरणों को सीधे तौर पर चांद पर नहीं पड़ने देती. सूरज की रोशनी पृथ्वी से छनकर चांद पर पड़ती है. ये किरणें पृथ्वी के धरातल से टकराकर अलग-अलग रंगों में बंटती हैं, जो नीले रंग की किरणें होती हैं, वो अलग-अलग दिशा में निकल जाती हैं. वहीं लाल रंग की किरणें नीचे की तरफ मुड़ती हैं और चांद पर पड़ती हैं. इससे चांद एकदम गहरा लाल दिखने लगता है. पृथ्वी के वातावरण में जितने ज्यादा डस्ट पार्टिकल या धुआं होगा, चांद उतना गहरा लाल दिखेगा.


Lunar Eclipse 2
इस तस्वीर में आप पूर्ण चंद्र की प्रोसेस देख रहे हैं. (फोटो- National Geographic वीडियो का स्क्रीनशॉट)

पार्शियल- इस कंडिशन में चांद पेनम्ब्रा में होता है, लेकिन उसका हल्का सा हिस्सा अम्ब्रा में एंट्री कर लेता है. ऐसी कंडिशन में पृथ्वी की थोड़ी ही छाया चांद पर पड़ती है.


Lunar Eclipse 1
इस तस्वीर में आप आंशिक चंद्र ग्रहण होने की प्रोसेस देख रहे हैं, चांद का थोड़ा ही हिस्सा अम्ब्रा में एंटर किया है. (फोटो- National Geographic वीडियो का स्क्रीनशॉट)

पेनम्ब्रल- चांद का कोई भी हिस्सा अम्ब्रा में एंटर नहीं करता है. पृथ्वी की मुख्य छाया के बाहर ही होता है. ऐसे में पृथ्वी की छाया सीधे तौर पर चांद पर तो नहीं पड़ती, लेकिन उसकी चमक फीकी ज़रूर पड़ जाती है. चांद मटमैला दिखने लगता है.


Lunar Eclipse 3
ये तस्वीर पेनम्ब्रल चंद्र ग्रहण की प्रोसेस की है. (फोटो- National Geographic वीडियो का स्क्रीनशॉट)

अभी वाला चंद्र ग्रहण कौन-सा है?

पेनम्ब्रल है. यानी लाल नहीं दिखेगा, बल्कि फीका और मटमैला दिखेगा. BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, विज्ञान प्रसार के वरिष्ठ वैज्ञानिक टी.वी. वेंकटेश्वरन ने बताया कि ग्रहण का असर बहुत ज्यादा नहीं दिखेगा. चांद के केवल 58 फीसद हिस्से पर इसका असर होगा.

इसे स्ट्रॉबेरी क्यों कह रहे हैं?

क्योंकि जून के महीने के आस-पास स्ट्राबेरी की अच्छी-खासी खेती होती है, तो ये इस महीने में पड़ने वाले ग्रहण को स्ट्रॉबेरी निकनेम के तौर पर दिया गया है.

कब और कहां दिखेगा?

5 जून की रात 11 बजकर 15 मिनट से ग्रहण शुरू होगा. हाई लेवल पर 12 बजकर 54 मिनट पर पहुंचेगा. 6 जून की सुबह 2 बजकर 34 मिनट पर खत्म होगा. यानी कुल तीन घंटे का ग्रहण होगा. इस दौरान एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अफ्रीका से ये ग्रहण देखा जा सकेगा.

स्ट्रॉबेरी चंद्र ग्रहण साल 2020 का दूसरा चंद्र ग्रहण है. पहला जनवरी में हुआ था. और तीसरा जुलाई और चौथा नवंबर में होगा.



वीडियो देखें: क्या होता है फ्लावर सुपरमून? भारत में इसे कब देख सकते हैं?