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क्या है शालिग्राम पत्थर, डायनासॉर से क्या कनेक्शन है? जानिए एकदम सही कहानी

शालिग्राम से बनाई जा रही है अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति

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शालिग्राम और डायनासॉर में क्या समानताएं हैं?

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण (Ayodhya Ram Mandir) कार्य के साथ वहां स्थापित की जाने वाली भगवान राम की प्रतिमा का काम भी चल रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रामलला की मूर्ति शालिग्राम पत्थर (shaligram) से तैयार की जाएगी. ये पत्थर नेपाल की गंडकी नदी से निकाले गए हैं और जानकारों के मुताबिक, ये पत्थर दो टुकड़ों में है. दोनों टुकड़ों का वजन मिलाकर कुल 127 कुंतल है. इन शिलाखंडों को 2 फरवरी 2023 की तारीख को अयोध्या लाया जा चुका है.

तो क्या हैं शालिग्राम पत्थर? क्या है इनकी महत्ता? आइए जानते हैं.

जिस तरह एक तरह का तर्क है धर्म, वैसे ही एक तरह का तर्क है विज्ञान.

धर्म के आधार पर बात करें तो जिस तरह हिंदू धर्म में अरघे पर विराजे शिवलिंग को भगवान शिव के स्वरूप के रूप में जाना जाता है. वैसे ही शालिग्राम पत्थर को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में माना जाता है. अभी भी कई परिवारों में तुलसी विवाह की प्रथा का पालन किया जाता है, जिसमें तुलसी का विवाह शालिग्रामरूपी भगवान विष्णु से कराया जाता है. एक पूरा उत्सव.

धर्म की बात पर थोड़ा और आगे बढ़ते हैं. कुल 33 तरह के शालिग्राम के बारे में जानकारियां मिलती हैं. इन्हें भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़कर भी देखा जाता है.

मसलन, गोलाकार शालिग्राम को भगवान विष्णु का गोपाल रुप माना जाता है.

मछली के आकार के शालिग्राम को मत्स्य अवतार का रुप माना जाता है.

कछुए के आकार को कच्छप अवतार का प्रतीक माना जाता है.

वहीं शालिग्राम में उभरने वाले चक्र को या जिन शालिग्राम में रेखाएं होती हैं, उन्हें श्री कृष्ण का रुप माना जाता है.

सभी का संबंध एकादशी व्रत से.  

शालिग्राम ही क्यों?

शास्त्रों में लिखा गया है. हम इंटरनेट के माध्यम से बता रहे. देव विग्रह के रूप में शालिग्राम का ही ज़िक्र है. क्यों? क्योंकि इनमें भगवान विष्णु का वास माना गया है.

अब दूसरे तथ्य की ओर चलते हैं  - विज्ञान. इस दृष्टि से शालिग्राम को जानकार एक पत्थर मानेंगे, एक अमोनाइट जीवाश्म (Ammonite Fossil). ये वो जीवाश्म हैं, जो डायनासॉर के समय - जुरासिक पीरियड - के हैं. हां, इसी पीरियड के नाम पर ही जुरासिक पार्क और जुरासिक वर्ल्ड जैसी पिच्चरें बनी-बढ़ी हैं. जीवाश्म हैं तो किसी जीव के हिस्से ही होंगे. जिस परिवार में सीपियां होती हैं, जिस परिवार में घोंघे होते हैं,  जिस परिवार में शंख होते हैं, उसी परिवार के रहने वाले थे ये जीव. जब मृत हुए तो मिट्टी, बालू पत्थर में मिल गए. बहुत दिनों तक पड़े रहे. धीरे-धीरे जीव जीवाश्म में बदल गए. काले पत्थर के रूप में.

खतरा ये भी है कि इस जीवाश्म वाले तर्क से लोग 'आहत' हों. आहत होने के बाद बॉयकाट होने की बारी आती है. लेकिन इसीलिए ये लाइन गाढ़ी होनी चाहिए - तर्क की लाइन. तथ्य की लाइन.

पत्रिका है हिमाल साउथएशियन. वहां पर छपी है शालिग्राम पर एक रिपोर्ट. कहा गया है कि दुनिया भर में तो मिलते हैं ये अमोनाइट जीवाश्म.लेकिन मस्तांग जिले में बहने वाली काली गंडकी नदी में मिलने वाले ये जीवाश्म ही शालिग्राम के रूप में प्रसिद्ध हैं. मतलब जीवाश्म मिलते तो दुनिया भर में हैं, लेकिन नेपाल की गंडकी नदी में जो मिलते हैं, उनके अभक्त हिस्सों को शालिग्राम के रूप में पूजा जाता है.

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