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मायरा क्या होता है जिसमें मामा ने इतने करोड़ रुपये बहा दिए?

इसके पीछे दो कहानियां चलती हैं

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राजस्थान में प्रचलित है ये परंपरा

गुरूवार, 17 मार्च को राजस्थान के ख़बर आई कि एक व्यक्ति ने अपनी भांजी की शादी में मायरा भरा और इसमें 3 करोड़ से अधिक रुपये ख़र्च कर दिए. मामला नागौर ज़िले की डेह तहसील (जायल उपखंड) के बुरड़ी गांव का है. बुरड़ी के भंवरलाल गरवा ने अपने तीन बेटों के साथ मिलकर अपनी भांजी (अनुष्का) की शादी में 81 लाख रुपये कैश, नागौर में रिंग रोड पर 30 लाख का प्लॉट, 16 बीघा खेत, 41 तोला सोना, 3 किलो चांदी, धान से भरी हुई एक नया ट्रैक्टर-ट्रॉली और एक स्कूटी दी है. दहेज नहीं दिया, मायरा भरा. सोशल मीडिया पर ये ख़बर ख़ूब चली. लेकिन एक ये भी चर्चा हुई कि मायरा दहेज ही है. एक धड़े ने इसका विरोध किया. दूसरों ने कहा कि नाम चाहे जो रख लो, लड़की वालों के घर से जाने वाला कोई भी धन दहेज ही है. अगर आपने वो खबर नहीं पढ़ी हो तो यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं. अब हम आपको बताते हैं कि मायरा क्या होता है?

मायरा होता क्या है?

शादियों में कई रीति-रिवाज होते हैं. ऐसा ही एक रिवाज होता है मायरा, जिसे कई जगहों पर भात भी कहा जाता है. राजस्थान में ये सबसे ज़्यादा प्रचलित है. आज से नहीं, लंबे वक़्त से. इसमें कोई व्यक्ति अपनी बहन के बच्चों के लिए, यानी भांजा-भांजी की शादी में मायरा लेकर आते हैं. भांजे और भांजी, दोनों की शादी में. गहने, कैश, कपड़े और बाक़ी सामान. लोग अपनी हैसियत के हिसाब से मायरा भरते हैं. इसमें दो कहानियां चलती हैं. एक मिथकीय है. दूसरी ऐतिहासिक.

हमने इंडिया टुडे के पत्रकार विनय सुल्तान से बात की, जो राजस्थान से ही हैं. विनय ने हमें दोनों प्रचलित कहानियां सुनाईं.

पहली कहानी जुड़ी है 15वीं शताब्दी के संत नरसी मेहता से. उनकी बेटी थीं नानी बाई. उनकी बेटी सुलाचना बाई की शादी थी. नानी बाई आईं अपने पिता के पास. मामा न भी हों तो मायरा मायके से ही मांगा जाता है. पिता इनके थे संन्यासी. कोई संपत्ति नहीं थी. मांग के खाते थे, कुटिया में सोते थे. तो कथा ये है कि नानी बाई की बेटी का मायरा कृष्ण ने भरा. ये कहानी बहुत चलती है. धर्म गुरू भी बांचते हैं और इस पर लोकगीत भी बने हैं.

दूसरी घटना है राणा सांगा की. महाराणा प्रताप के दादा संग्राम सिंह या राणा सांगा. ऐतिहासिक साक्ष्य तो नहीं हैं, लेकिन कहानी चलती है कि एक दिन राणा सांगा शिकार पर निकले थे. दिन ढल गया. शाम को उन्हें भूख लगी. इधर-उधर भटक रहे थे. एक कुटिया दिखी तो उसके सामने रुके. कुटिया में एक गुर्जर समुदाय की महिला रहती थी. उन्होंने राणा सांगा को खाना खिलाया. खाना खाते हुए राणा ने महिला से पूछा कि वो मायूस क्यों हैं? महिला ने बताया कि उसके पिता हैं नहीं और सारे भाइयों की भी मौत हो चुकी है. अब उनकी बेटी की शादी है और सवाल है कि इसका मायरा कौन भरेगा? राणा सांगा ने उस महिला से तुरंत राखी बंधवाई और वादा किया कि उसकी बेटी का मायरा वो भरेंगे. और, उन्होंने भरा.

बेटी का नाम था पन्ना धाय. राजस्थान के 16वीं शताब्दी के इतिहास में इस नाम का ज़िक्र मिलता है. बाद में पन्ना धाय ने ही अपने इकलौते बेटे चंदन का बलिदान देकर राणा सांगा के बेटे उदयसिंह को बचाया था. मेवाड़ के उदय सिंह या महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह.

ये थी दो कहानियां. बीते कुछ वक्त में नागौर जिले में ऐसे कई मायरे भरे गए हैं. एक-एक करोड़ के मायरों की तो लाइन लगी हुई है. लेकिन 3 करोड़ के इस मायरे ने तो सारी सीमाएं तोड़ दी हैं. हाल में भी एक ऐसी ही घटना ने ख़ूब सुर्खियां बनाई थीं. जांडवाला बागड़ की मीरा का न तो भाई जीवित था, न ही माता-पिता. भात के न्योते के लिए मीरा ने अपनी भाई कि समाधि पर टीका लगा दिया. बात गांव में फैली और पूरे गांव ने चंदा कर के मीरा की बेटी का मायरा भरा. 

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