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वो कौन सी शर्तें थी, जिसके तहत कश्मीर भारत का हिस्सा बना?

इस समझौते को अंग्रेजी में कहते हैं इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन, जिसका जिक्र अमित शाह ने भी किया था.

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कश्मीर का भारत में विलय करने के लिए इसी इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन हुए थे.
1947. भारत आजाद हुआ. मगर आजाद सिर्फ भारत नहीं हुआ था. 560 से ज्यादा रियासतें भी हुई थीं. इनको भारत या पाकिस्तान में शामिल करने के लिए एक बाकायदा एक लिखित दस्तावेज तैयार हुआ. इसको नाम दिया गया इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन (अधिमिलन पत्र).  आसान शब्दों में कहिए तो वो नियम और शर्तें, जिनके आधार पर ये रियासतें किसी देश में शामिल हो रही थीं.
सरदार पटेल ने इसी इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन की मदद से करीब 562 रियासतों को भारत में मिलाया था. हालांकि कश्मीर के राजा हरि सिंह पहले भारत में शामिल होने में नखरे खा रहे थे. स्वतंत्र रहने की बात कर रहे थे. मगर पाकिस्तान की ओर से जब उन पर कबीलाई हमला हुआ, तो वो इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन करने के लिए तैयार हो गए. 26 अक्टूबर 1947 को उन्होंने आईओए पर साइन किए और फिर भारत ने राजा हरि सिंह की मदद की.
नेहरू के बाद के सालों में कांग्रेस ने अपने कई नेताओं की विरासत की अनदेखी की. इनमें एक सरदार पटेल भी थे. वक्त के साथ बीजेपी (और संघ) ने पटेल को थाम लिया. ये नैरेटिव पेश किया जाने लगा कि नेहरू विलन और पटेल सुपरहीरो थे. जबकि कायदे से तो दोनों ही हीरो हैं. पटेल के बारे में बीजेपी बहुत कुछ कहती है. वो जिस संघ से निकलकर आई है, उसके लिए भी पटेल ने अपने जीते-जी काफी कुछ कहा था.
सरदार पटेल ने 562 रियासतों को भारत में शामिल करवाया था.

हालांकि कश्मीर जिन हालातों में भारत का हिस्सा बना वो हिंसा का दौर था. और भारत की पॉलिसी ये थी कि विलय करने वाली जिन रियासतों में कुछ भी दिक्कत है, वहां जनमत संग्रह करवाके लोगों की मंशा के मुताबिक विलय हो, न कि राजा की मर्जी से. मगर कश्मीर के मसले पर ऐसा नहीं हो सका था. उस समय लॉर्ड माउंटबेटेन ने भी कहा था कि सरकार की ये इच्छा है कि जैसे ही कश्मीर में कानून व्यवस्था बहाल हो जाती है, वैसे ही राज्य को भारत में शामिल करने का फैसला वहां के लोगों द्वारा लिया जाएगा. साल 1948 में भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर पर पेश किए गए श्वेत पत्र में लिखा गया है कि भारत में कश्मीर का शामिल होना पूरी तरह से अस्थायी और अल्पकालीन है.
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला को 17 मई 1949 को वल्लभभाई पटेल और एन. गोपालास्वामी अइयंगर की सहमति से लिखे एक पत्र में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी यही बात दोहराई थी.
क्या था जम्मू-कश्मीर के इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन में?
# जम्मू कश्मीर के लिए बने इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन में ये था कि केंद्र को सिर्फ जम्मू-कश्मीर  के रक्षा, विदेश और संचार से संबंधित कानून बनाने का अधिकार होगा. बाकि मसले राज्य खुद देखेगा.
# इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन के क्लॉज 5 में राजा हरि सिंह ने उल्लेख किया था कि इस इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन को किसी भी संशोधन के जरिए बदला नहीं जा सकेगा.
# इसको बदलने का अधिकार सिर्फ राजा हरि सिंह के पास होगा. जब तक हरि सिंह कोई दूसरे इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन नहीं करते, पुराना वाला ही मान्य होगा.
# क्लॉज 7 में था कि भविष्य में भारत का संविधान बनने पर उन्हें उसे स्वीकार करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं माना जाएगा. न ही उन्हें भविष्य में बनने वाले संविधान के अनुसार भारत सरकार के साथ किसी समझौते के लिए कहा जाएगा.
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तो फिर अनुच्छेद 370 क्या है?
अनुच्छेद 370 को 17 अक्टूबर, 1949 को भारत के संविधान में शामिल किया गया था. इसके तहत जम्मू कश्मीर को अपना एक अलग संविधान बनाने और भारतीय संविधान (अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 को छोड़कर) को लागू न करने की इजाजत दी गई थी. अब जो सवाल उठ रहा है कि कश्मीर किस तरह भारत में शामिल हुआ. इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन की मदद से या धारा 370 से. तो पहला पुल तो इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन ही है, क्योंकि ये 1947 में ही साइन हो गया था. धारा 370 तो 1949 में वजूद में आई. मगर कानूनन अनुच्छेद 370 में जिस अनुच्छेद 1 का उल्लेख है, उसी के जरिए जम्मू कश्मीर को भारत के राज्यों की सूची में शामिल किया गया है.
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप बताते हैं-
जब तक ये संविधान नहीं बना, तब तक ही ये इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन चला. क्योंकि संविधान बनते ये ही सभी रियासतों में लागू हो गया था. हालांकि जम्मू-कश्मीर के हालात को देखते हुए उसे अनुच्छेद 370 के तहत अलग अधिकार मिले.
इन्हीं अधिकारों को लेकर पिछले 70 सालों से बहस चली आ रही है. और अब 5 अगस्त, 2019 को गृहमंत्री अमित शाह ने इसके दो हिस्से खत्म करने की बात कही है. साथ ही लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग करने का प्रावधान रखा है. जम्मू कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश होंगे. जम्मू कश्मीर में विधानसभा होगी, जबकि लद्दाख बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश होगा.


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