The Lallantop

'ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी...', क्या तुलसीदास महिला और दलित विरोधी थे?

एक्सपर्ट्स ने अपनी राय रखी है.

Advertisement
post-main-image
तुलसीदास का चित्र और बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर. (फोटो: कॉमन सोर्स/ आज तक)

बिहार (Bihar) के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस (Ramcharitmanas) को लेकर विवादित बयान दिया. उन्होंने रामचरितमानस को नफरत फैलाने वाला ग्रंथ कहा. चंद्रशेखर ने पटना के नालंदा ओपन विश्वविद्यालय (Nalanda open University) के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए ये बात कही थी. उन्होंने रामचरितमानस को समाज को बांटने वाला ग्रंथ बताया था. इसके बाद जब उनसे इसको लेकर सावल पूछा गया तो उन्होंने अपने शब्दों को सही बताया. 

Advertisement

रामचरितमानस की कई चौपाइयों को लेकर पहले भी विवाद होते रहे हैं. इसी के तहत रामचरितमानस के रचनाकार तुलसीदास पर महिला और दलित विरोधी होने के आरोप लगते रहते हैं. बिहार के शिक्षा मंत्री के बयान के बाद एक बार फिर से ये बहस जिंदा होती है. इसी सिलसिले में रामचरितमानस की एक चौपाई की खूब बात हो रही है. जो इस तरह से है,

''प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं। 
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।। ''

Advertisement
ताड़ना का अर्थ क्या है?

इस चौपाई को लेकर हमने कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी से बात की. उन्होंने हमें बताया,

' ताड़ना का अर्थ ही है दंडित करना, सज़ा देना. ढोल को, शूद्र को, जानवरों को, और नारी को दंड देकर ही नियंत्रण में रखा जा सकता है.'

उन्होंने आगे बताया,

Advertisement

'तुलसीदास को डिफेंड करने वाले लोगों का मानना है कि वो शब्द तुलसीदास के नहीं, बल्कि रामचरितमानस में मौजूद पात्र समुद्र के हैं. जब राम समुद्र से रास्ता देने की विनती कर रहे होते हैं और तीन दिन तक उनको रास्ता नहीं मिलता है, तो राम अपना धनुष बाण उठा कर कहते हैं कि मैं अपने बाणों से समुद्र को सुखा दूंगा. इस घटना के बाद समुद्र प्रकट होता है और माफी मांगता है. इसी प्रसंग के दौरान ये वाली चौपाई आती है. इस चौपाई में समुद्र अपने को ही लांछित करता है. कहता है कि हम इसी लायक हैं कि हमें दंडित किया जाए.'

कवि पंकज चतुर्वेदी अपना पक्ष रखते हुए बताते हैं,

'मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि तुलसीदास वर्णाश्रम धर्म के समर्थक थे और उनके द्वारा लिखी किसी कहानी में ऐसी चौपाई आ रही है, तो ये उसका विचारात्मक कारण है. रामचरितमनस में तुलसीदास ने वर्णाश्रम का प्रस्ताव भी किया है, तो ये उसके अनुरुप है. और मुझे नहीं लगता है कि तुलसीदास को डिफेंड करना चाहिए क्योंकि तुलसीदास खुद इतने बड़े कवि हैं, तो उनको किसी के डिफेंस की जरुरत नहीं है. और इसमें जो स्त्री की निंदा की गई है वो भक्तिकाल के जितने भी कवि हुए हैं, मीरा को छोड़कर, सबने स्त्रियों की निंदा की है.'

एक और चौपाई की खूब बात हो रही है. ये इस तरह से है,

'सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता॥
पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना॥'

इस चौपाई के बारे में पंकज चतुर्वेदी ने हमें बताया,

‘इसमें तुलसीदास कह रहे हैं कि ब्राह्मण जितना भी बुरा हो जाए, वो हमेशा पूज्यनीय होगा. और शूद्र जितना भी पढ़ा लिखा हो फिर भी उसके गुण गिनने नहीं चाहिए. हालांकि, तुलसीदास वर्ण व्यवस्था के समर्थक थे मगर सांप्रदायिक नहीं थे. उन्होंने 13 किताबें लिखी हैं लेकिन किसी भी किताब में हिंदू शब्द का ज़िक्र नहीं है.’

इस पूरे विवाद को लेकर हमने डॉक्टर माधव हाड़ा से भी बात की. डॉक्टर माधव हाड़ा की भक्तिकालीन साहित्य पर अच्छी पकड़ है. उन्होंने दो दशक तक तुलसीदास पर रिसर्च की है. डॉक्टर हाड़ा ने हमें बताया,

‘दो बातें हैं. एक तो हमें केवल कुछ शब्दों पर ही फोकस नहीं करना चाहिए. किसी भी महान कवि के कुछ पदों और कुछ शब्दों को आधार बनाकर राय नहीं बनानी चाहिए. उसपर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. तुलसीदास सभ्य समाज की नींव रखने के लिए लोगों को परंपरा सम्मत राह में ले जाते हैं. वो जीवन मूल्यों को अपनी रचनाओं में लिखते हैं. तुलसीदास जिस दौर के हैं, उस दौर में मानव जाति के बहुत से मूल्य खतरे में थे. तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में इन मूल्यों को आधार बनाकर उनकी फिर से प्रतिष्ठा की है.’

उन्होंने आगे बताया,   

‘बड़ी बात ये है कि किसी भी कवि को उसके समय और समाज में रखकर देखना चाहिए. ये जो टिप्पणियां हैं, ये उस समय के समाज के मूल्यों के हिसाब से हैं. अगर तुलसीदास दलित विरोधी होते या स्त्री विरोधी होते, तो रामचरितमानस में सबरी का प्रसंग भी है और सीता का प्रसंग भी है. स्त्री के पक्ष में वो उनकी चिंता करते हैं. जार्ज ग्रियर्सन ने कहा था कि भगवान बुद्ध के बाद लोगों की आस्था को लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले सबसे बड़े व्यक्ति तुलसीदास ही थे. और आप शब्दों पर मत जाइए. रामचरितमानस के सारे शब्द कोई न कोई किसी से कह रहा है. रामचरितमानस के शब्दों को अलग अलग करके देखेंगे तो अनर्थ हो जाएगा. मगर पूरी रामचरितमानस को अगर देखें तो सारी बातें, सारी चौपाईयां किसी न किसी संदर्भ में हैं. हो सकता है इसका जो प्रचलित अर्थ है दंड देना वो ही हो. मगर किसी भी बात को संदर्भ से नहीं काटना चाहिए.’

फिलहाल, बिहार के शिक्षा मंत्री के बयान पर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है. लोग अपनी अलग-अलग राय रख रहे हैं. 

(ये स्टोरी हमारे साथी आर्यन ने लिखी है.)

वीडियो: 'रामचरितमानस' लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास के जीवन के पांच रोचक किस्से सुनिए

Advertisement