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सरकार वक्फ कानून में क्या-क्या संशोधन लाई है जिन पर हंगामा मच गया है?

सरकार का दावा है कि मुस्लिमों में गरीब तबकों के बीच लंबे समय से वक्फ कानून में बदलाव की मांग की जा रही थी. अब इसी कानून में बड़े बदलाव की तैयारियां चल रही हैं, जिस पर विवाद हो रहा है.

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वक्फ बिल को जेपीसी के पास भेजा गया है. (फोटो- पीटीआई)

एनडीए सरकार में कानूनों में बदलाव किए जाने और नए कानून लाए जाने पर विवाद आम हो चुका है. अब तीसरे कार्यकाल में भी सरकार की तरफ से लाया गया एक बिल विवादों में घिरा हुआ है. बिल को वक्फ कानून में बदलाव के लिए लाया गया है. 8 अगस्त को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 पेश किया गया. लेकिन विपक्षी सांसदों के विरोध और संविधान पर हमले के गंभीर आरोपों के बाद इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया गया. यानी तुरंत ये कानून का रूप नहीं ले रहा. अगर इन बदलावों को संसद और राष्ट्रपति से मंजूरी मिलती है तो नए कानून का नाम होगा - वक्फ (संशोधन) कानून, 2024.

सरकार का दावा है कि मुस्लिमों में गरीब तबकों के बीच लंबे समय से वक्फ कानून में बदलाव की मांग की जा रही थी. केंद्रीय संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल में द हिंदू अखबार को बताया था कि गरीब मुस्लिम महिलाओं और समूहों का दबाव है कि वक्फ की संपत्तियों का प्रबंधन पारदर्शी तरीके से हो. उन्होंने कहा था कि इन बदलावों के लिए अलग-अलग समूहों से पिछले कई सालों से बातचीत चल रही है.

इस्लामिक कानून के तहत वक्फ का मतलब उन चल या अचल संपत्तियों से होता है, जिसे धार्मिक या जनकल्याण के मकसद के लिए दान किया जाता है. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अलग-अलग वक्फ बोर्ड के पास 8 लाख 70 हजार से ज्यादा संपत्तियां हैं. ये 9 लाख 40 हजार एकड़ में फैली हुई है. इन संपत्तियों की कीमत 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये है. संपत्तियों के लिहाज से सशस्त्र बल और भारतीय रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड तीसरे नंबर है.

वक्फ की संपत्तियों के प्रबंधन के लिए आजादी के बाद ही वक्फ एक्ट बन गया था. पहली बार 1954 में ये कानून बना. इसके तहत, वक्फ बोर्ड का गठन हुआ और सारी वक्फ संपत्तियां बोर्ड के हिस्से आ गई. बाद में इसमें कई संशोधन होते रहे. साल 1995 में नया वक्फ कानून बना. इससे पहले 2013 में इस कानून में कई संशोधन हुए थे. अब इसी कानून में बड़े बदलाव की तैयारियां चल रही हैं, जिस पर विवाद हो रहा है. बताया जा रहा है कि इस कानून में कम से कम 40 बदलाव प्रस्तावित हैं.

बिल में बड़े बदलाव क्या हैं?

> केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्यों के वक्फ बोर्ड में महिलाओं को शामिल करने का प्रावधान है. मौजूदा कानून की धारा-9 और 14 में बदलाव करके परिषद में दो महिलाओं को शामिल किया जाएगा.

> इसके अलावा, वक्फ बोर्ड के मैनेजमेंट में दो गैर-मुस्लिम विशेषज्ञों को शामिल किए जाने का प्रावधान है.

> नए बिल के मुताबिक, अब केंद्र सरकार वक्फ प्रॉपर्टी का ऑडिट भी करा सकती है. ऑडिटर की नियुक्ति नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) या केंद्र सरकार की तरफ से सीधे होगी.

> वक्फ बोर्ड को अपनी संपत्ति जिला मजिस्ट्रेट के ऑफिस में रजिस्टर करानी होगी. ताकि संपत्ति के मालिकाना हक की जांच हो सके. इसके पीछे भी सरकार ने पारदर्शिता का हवाला दिया है.

> वक्फ ट्राइब्यूनल के फैसले को कोर्ट में चुनौती देने का प्रावधान है. पहले वक्फ ट्राइब्यूनल के फैसले को सिविल, राजस्व या अन्य अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती थी. 

> मौजूदा कानून की धारा-40 को खत्म करने का भी प्रावधान है. कोई संपत्ति वक्फ बोर्ड की संपत्ति होगी, इस धारा के तहत ही बोर्ड को ये शक्ति दी गई है.

> वक्फ कानून, 1995 के तहत राज्य सरकार को राज्य की संपत्तियों के सर्वे के लिए सर्वे कमिश्नर नियुक्त करना जरूरी था. अब सर्वे कमिश्नर की जगह जिला कलेक्टर को इस पद के लिए नियुक्त किए जाने का प्रावधान है.

> नए कानून के बनने से पहले या बाद में, अगर किसी सरकारी संपत्ति को वक्फ संपत्ति माना या घोषित किया गया है, तो अब वो वक्फ प्रॉपर्टी नहीं होगी. विवाद की स्थिति में जिला कलेक्टर मामले को देखेंगे.

> अगर कलेक्टर किसी वक्फ संपत्ति को सरकारी संपत्ति मानता है तो उसे राजस्व रिकॉर्ड में जरूरी बदलाव करवाने होंगे और राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपनी होगी.

> जब तक कलेक्टर अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपते हैं तब तक उस प्रॉपर्टी को वक्फ प्रॉपर्टी नहीं माना जाएगा. यानी इस मुद्दे पर जब तक सरकार कोई फैसला नहीं ले लेती है, तब तक इस विवादित जमीन को वक्फ बोर्ड इसे नियंत्रित नहीं कर सकता है.

> अब बिना कागजात के कोई संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी. उदाहरण के लिए, वक्फनामा नहीं होने पर अभी एक मस्जिद को वक्फ की संपत्ति मान ली जाती है. लेकिन नए बिल में वैध वक्फनामा नहीं होने पर वक्फ की संपत्ति संदेह के घेरे में आएगी.

> संशोधन के जरिये केंद्र सरकार को शक्ति मिल गई है कि वो केंद्रीय वक्फ परिषद में किसी भी तीन सांसद (लोकसभा से दो, राज्यसभा से एक) को रख सकती है. जरूरी नहीं कि वे मुस्लिम हों. अब तक इस परिषद में तीन सांसद मुस्लिम समुदाय से ही होते थे.

बदलाव के तहत अब बोहरा और अगखानी समुदायों के लिए अलग वक्फ बोर्ड बनाने का प्रावधान है. और इसमें शिया, सुन्नी, बोहरा, अगखानी और मुस्लिम समुदाय में आने वाले पिछड़े वर्ग को प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई है.

विपक्ष ने विरोध में क्या कहा?

कानून में हो रहे इन बदलावों को लेकर लोकसभा में विपक्ष के सांसदों ने आपत्ति दर्ज कराई. कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि ये संविधान से मिले ‘धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन’ है. उन्होंने कहा, 

“इस विधेयक के जरिये यह प्रावधान लाया जा रहा है कि गैर-मुस्लिम भी वक्फ गवर्निंग काउंसिल के सदस्य होंगे. यह धर्म की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है. आज आप मुस्लिमों के खिलाफ जा रहे हैं, कल ईसाइयों और जैन के खिलाफ जाएंगे. भारत के लोग अब इस तरह की विभाजनकारी राजनीति को बर्दाश्त नहीं करेंगे.”

वहीं, AIMIM के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे भेदभावपूर्ण और मनमाना बताते हुए कहा कि यह विधेयक अनुच्छेद 14, 15 और 25 में दिए गए सिद्धांतों का उल्लंघन करता है. कन्नौज से लोकसभा सांसद अखिलेश यादव ने भी सवाल किया कि वक्फ बोर्ड में किसी गैर मुसलमान को शामिल करने की वजह क्या बनती है.

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भारी विरोध के बीच केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बिल का बचाव किया और कहा कि विपक्ष लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने कहा कि संविधान से ऊपर कोई कानून नहीं हो सकता है. रिजिजू ने दलील दी कि कुछ लोगों ने वक्फ पर कब्जा किया हुआ है और कहा कि किसी का हक छीना नहीं जा रहा है बल्कि जिनको अभी तक कुछ नहीं मिला, उनको दिया जाएगा.

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