क्या है पहली एफआईआर में?

ये विवेक तिवारी के हत्याकांड के एफआईआर की कॉपी है. इसमें लाल घेरें में पुलिसवालों के नाम अज्ञात हैं. वहीं घटनाक्रम में गोली मारने का जिक्र तक नहीं है.
पहली एफआईआर हत्याकांड की चश्मदीद सना की ओर से दर्ज करवाई गई है. हालांकि सना ने ये भी कहा है कि पुलिस ने उससे सादे कागज पर दस्तखत करवाए थे. बाद में उसी कागज पर तहरीर लिख ली और उसी आधार पर एफआईआर दर्ज कर ली. एफआईआर नंबर 1132 के मुताबिक एफआईआर दर्ज करने का समय 29 सितंबर 2018 की सुबह 4 बजकर 57 मिनट का है.सना के दस्तखत से दर्ज एफआईआर में लिखा है-
सना अपने कलिग विवेक तिवारी के साथ घर जा रही थी. सीएमएस गोमतीनगर विस्तार के पास उनकी गाड़ी खड़ी थी. अचानक से दो पुलिसवाले आए. विवेक और सना ने बचकर निकलने की कोशिश की वहीं पुलिसवालों ने उन्हें रोकने की कोशिश की. सना के मुताबिक उसके बाद अचानक से ऐसा लगा कि गोली चली है, जिसके बाद विवेक ने गाड़ी आगे बढ़ा दी और वो अंडरपास दीवार से टकरा गई. विवेक के सिर से काफी खून बहने लगा. थोड़ी देर में पुलिस आ गई, जिसने हमें अस्पताल पहुंचाया. अभी सूचना मिली है कि विवेक की मौत हो गई है.इस एफआईआर में न तो गोली मारने का जिक्र है और न ही गोली मारने वाले सिपाही प्रशांत और उसके साथी का नाम दर्ज है. लेकिन जब विवेक की पत्नी कल्पना ने विरोध दर्ज करवाया तो खुद डीएम कौशलराज शर्मा ने कहा कि अगर कल्पना तहरीर देती हैं, तो पुलिस केस दर्ज करेगी. कल्पना ने तहरीर दी और फिर पुलिस ने दूसरी एफआईआर भी दर्ज कर ली.
क्या है दूसरी एफआईआर में?

विवेक हत्याकांड में दूसरी एफआईआर भी हो गई है और ये एफआईआर कल्पना ने करवाई है.
दूसरी एफआईआर भी गोमतीनगर थाने में ही दर्ज की गई है. इस एफआईआर का नंबर 1140 है, जिसे 30 नवंबर की शाम 6 बजकर 57 मिनट पर दर्ज किया गया है. इस एफआईआर में लिखा है-
मेरे पति एपल कंपनी में ASM थे. प्रशांत चौधरी ने उनकी हत्या की है. सना ने जो मुझे बताया है उसके मुताबिक, सना और विवेक रात में लगभग डेढ़ बजे घर वापस आ रहे थे, तो अचानक प्रशांत चौधरी और संदीप कुमार कार के सामने आ गए. ASM साहब डर के मारे रात में मेरे महिला होने के कारण अपनी कार बचाकर वापस निकालकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे. उसी समय मोटरसाइकल पर पीछे बैठा हुआ एक सिपाही उतरा जो हाथ में डंडा लिए हुए था. आगे बैठे प्रशांत चौधरी ने गाड़ी के शीशे से अपनी पिस्टल सटाकर जान से मारने की नीयत से फायर कर दिया, जिससे उनकी हत्या हो गई. चूंकि दोनों सिपाहियों ने अपनी वर्दी पर नेम प्लेट लगा रखी थी, उससे सना ने पहचान लिया कि गोली मारने वाला प्रशांत ही था और साथ के सिपाही संदीप चौधरी ने प्रशांत को गोली मारने से मना नहीं किया और वो डंडे से गाड़ी का बोनट पीटता रहा. घटना के बाद भी विवेक डर के मारे अपनी गाड़ी बगल से निकालकर ले गए, लेकिन ठुड्डी में गोली लगने की वजह से आधा किलोमीटर के बाद ही कार खंभे से लड़ गई और बंद हो गई. विवेक के चेहरे से खून बह रहा था, सना चिल्ला रही थी और लोगों को रोकने की कोशिश कर रही थी. इस बीच जो भी पुलिसवाले आए, वो न तो सना को फोन दे रहे थे और न ही सना को फोन उठाने दे रहे थे. पुलिसवालों ने जबरन सना से सादे कागज पर दस्तखत करवा लिए और बाद में मीडिया और पुलिस अधिकारियों के दबाव में सना से बोल बोलकर जबरन उस सादे कागज पर लिखवाया गया. सना डरी हुई थी, तो पुलिसवाले जो भी बोल रहे थे, वो लिखती जा रही थी. पुलिसवाले सना और विवेक के बारे में उल्टा-सीधा बोल रहे थे.हालांकि दूसरी एफआईआर में दोनों सिपाहियों के नाम तो दर्ज हैं, लेकिन अब भी उस एफआईआर में सिपाहियों का स्थानीय पता और स्थायी पता दर्ज नहीं किया गया है.
केस एक फिर एफआईआर दो क्यों?

दोनों एफआईआर को एक साथ देखिए. अंतर साफ समझ में आ जाएगा.
ये सवाल लखनऊ के क्राइम रिपोर्टर भी उठा रहे हैं और वकील भी. अगर हत्या एक हुई है तो एफआईआर भी एक ही होनी चाहिए थी. लेकिन एडीजी जोन राजीव कृष्ण ने दो एफआईआर का लॉजिक बताया है. एडीजी जोन के मुताबिक कृष्ण कुमार बनाम केरल सरकार के मामले में 19 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया था कि अगर परिस्थितियां विशेष हों, तो एक ही मामले में दो एफआईआर दर्ज की जा सकती है. इस मामले में भी पहली वादी सना थीं, तो उनकी तहरीर पर एफआईआर दर्ज की गई. वहीं जब विवेक की पत्नी कल्पना ने हत्या की बात की तो उनकी भी एफआईआर दर्ज की गई. ऐसे में पुलिस पहली वाली एफआईआर के आधार पर जांच करेगी और दूसरी एफआईआर को पहली के साथ जोड़ दिया जाएगा. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में वकील विवेक राय का मानना है कि चूंकि दोनों ही एफआईआर में प्रत्यक्षदर्शी सना हैं, इसलिए पुलिस अपनी तफ्तीश के दौरान दोनों एफआईआर को जोड़ देगी.

यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा है कि एक ही मामले में दो एफआईआर नहीं हो सकती है.
वहीं इस मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह सहमत नहीं हैं. विक्रम सिंह ने कहा है कि एक मामले में दो एफआईआर संभव नहीं है. अगर कोई नया तथ्य सामने आता भी है, तो उसे तफ्तीश में शामिल किया जा सकता है. लेकिन अलग से एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है. पुलिस इस मामले को इतना पेचीदा बनाने की कोशिश कर रही है कि केस कमजोर हो जाए.
विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना का वो वायरल बयान जो उन्होंने दिया ही नहीं