उत्तरकाशी टनल हादसे (Uttarkashi tunnel collapse) में बचाव दल के सामने एक और बड़ी मुश्किल आ गई है. ड्रिलिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऑगर मशीन से काम नहीं बना. अब मलबे को काटने के लिए जल्द ही मैनुअल ड्रिलिंग (manual drilling) की जाएगी.
उत्तरकाशी सुरंग हादसा: ड्रिलिंग मशीन से काम नहीं बना, अब कैसे बचेंगे 41 मजदूर?
उत्तरकाशी टनल हादसे में अमेरिका की बनी हुई ऑगर मशीन को ड्रिलिंग के काम से हटा लिया गया है. अब एक नई तकनीक से मलबे को काटा जाएगा.
न्यूज एजेंसी ANI के इनपुट्स के मुताबिक़, बचाव दल और मजदूरों के बीच मात्र 6 से 9 मीटर का फासला और बचा है. एजेंसी ने अधिकारियों के हवाले से लिखा कि अमेरिका में बनी ऑगर ड्रिलिंग मशीन को पाइपलाइन से हटा लिया गया है. अब मैनुअल ड्रिलर्स काम शुरू करेंगे. उम्मीद लगाई जा रही है कि जल्द ही फंसे हुए मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाएगा.
कई अन्य मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अधिकारी वर्टिकल ड्रिलिंग के विकल्प पर भी विचार कर रहे हैं. बचाव अभियान में जुटी सरकारी एजेंसियां वर्टिकल ड्रिलिंग की तैयारी में लगी हैं. इस पर जल्द ही कोई निर्णय लिया जा सकता है.
इंडिया टुडे से जुड़े आशुतोष मिश्रा की रिपोर्ट के मुताबिक़, 24 नवंबर की शाम को ड्रिलिंग के दौरान सरियों का जाल सामने आ गया. ऑगर मशीन के ब्लेड सरियों के जाल में फंस गए थे. इसीलिए अब मैनुअल ड्रिलिंग करने का फ़ैसला किया गया है.
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मैनुअल ड्रिलिंग माने आदमी के हाथ का काम. मलबा हटाने का काम पूरी तरह इंसानो पर निर्भर होगा. ड्रिलर्स छोटे-छोटे औजारों या मशीनों के ज़रिए खुदाई का काम करते हैं.
बीते 12 नवंबर को उत्तराखंड की निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढह गया था. तब से ही वहां बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के 41 मजदूर फंसे हुए हैं. दो हफ़्ते से लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने ANI को बताया कि ऑगर मशीन से ड्रिलिंग करते समय अगर हर दो से तीन फीट पर कोई रुकावट आती है, तो उसे हटाना पड़ता है. और जब भी कोई नई रुकावट आती है, तो मशीन को पाइपलाइन से 50 मीटर पीछे खींचना पड़ता है. इसमें करीब 5 से 7 घंटे का समय लगता है. इस वजह से बचाल कार्य में इतना समय लग रहा है. हालांकि, अफ़सरों ने ये नहीं बताया कि अभी और कितनी समय लगेगा. उन्होंने उम्मीद जताई कि मैन्युअल ड्रिलिंग शुरू होने के बाद अच्छे नतीजे आ सकते हैं.
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इससे पहले, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण NDMA के मेंबर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने एक प्रेस कॉन्फेरेंस की थी. कहा था कि ऑपरेशन एक युद्ध की तरह है. इस तरह के ऑपरेशनों को टाइमलाइन नहीं दी जानी चाहिए. इससे टीम पर भी प्रेशर बनता है. युद्ध में हम नहीं जानते कि दुश्मन कैसे प्रतिक्रिया देगा. यहां हिमालय का भूविज्ञान हमारा दुश्मन है. सुरंग किस एंगल से गिरी है, कोई नहीं जानता.
इस बीच, पारसन ओवरसीज़ प्राइवेट लिमिटेड दिल्ली की टीम ने सुरंग की जांच करने के लिए ग्राउंड-पेनिट्रेटिंग रडार (GPR) तकनीक का भी प्रयोग किया. ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार को जीपीआर, जियो-राडार, सब-सर्फेस इंटरफेस रडार या जियो-प्रोबिंग रडार भी कहते हैं. इसका इस्तेमाल ज़मीन के नीचे दबी चीज़ों की लोकेशन और गहराई का पता लगाने के लिए किया जाता है.