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प्रेग्नेंसी के कारण महिला को नौकरी नहीं दी, कोर्ट ने राज्य सरकार को बुरी तरह सुना दिया

अस्पताल प्रशासन ने गर्भवती होने के कारण महिला को अस्थायी रूप से नौकरी के लिए अयोग्य घोषित किया गया था. अस्पताल के इस रवैये को लेकर महिला ने कोर्ट में याचिका दायर की थी.

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कोर्ट ने भारत के राजपत्र (असाधारण) के नियम को लेकर भी नाराजगी जताई है. ( फोटो- इंडिया टुडे )

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 26 फरवरी को एक प्रेग्नेंट महिला को नौकरी से वंचित करने के फैसले को रद्द कर दिया है. एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि मां बनना ‘बड़ा वरदान’ है. और इसके लिए महिलाओं को रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने भारत के राजपत्र (असाधारण) के नियम को लेकर भी नाराजगी जताई है. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा? ये जानने के लिए पूरा मामला समझते हैं. 

गर्भवती महिला को जॉइनिंग से रोका

आज तक से जुड़े ललित सिंह बिष्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, नैनीताल के बीडी पांडे अस्पताल में मिशा उपाध्याय नाम की महिला की नियुक्ति हुई थी. नर्सिंग अधिकारी के पद के लिए खुद चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के महानिदेशक ने मिशा को नियुक्ति पत्र सौंपा था. लेकिन फिटनेस सर्टिफिकेट में उन्हें अस्थायी तौर पर अयोग्य घोषित कर दिया गया. वजह थी मिशा का गर्भवती होना. यानी कि मिशा को कोई शारीरिक समस्या नहीं थी, सिर्फ वो गर्भवती थीं.

इसलिए अस्पताल प्रशासन ने उन्हें अस्थायी रूप से नौकरी करने के लिए अयोग्य घोषित किया गया था. अस्पताल के इस रवैये को लेकर मिशा ने कोर्ट में याचिका दायर की. इसी याचिका पर पंकज पुरोहित की सिंगल बेंच ने अस्पताल को मिशा की नियुक्ति तुरंत कराने का आदेश दिया है.

गर्भवती महिलाओं के लिए राजपत्र में क्या लिखा है?

भारत के राजपत्र (असाधारण) के नियम के मुताबिक, अगर जांच में महिला उम्मीदवार 12 सप्ताह या उससे ज्यादा समय की गर्भवती पाई जाती है. तो उसे अस्थाई रूप से अस्वस्थ घोषित किया जाना चाहिए. जब तक कि उसका प्रसव ना हो जाए. ये भारत के राजपत्र (असाधारण) के पार्ट-1, सेक्शन-1, पेज-120, क्लॉज-9 में लिखा है.

इसके मुताबिक, किसी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर से स्वस्थ प्रमाण पत्र पेश करने पर डिलिवरी की तारीख के 6 हफ्ते बाद महिला का फिर से मेडिकल टेस्ट किया जाना चाहिए.

HC की फटकार, संविधान का उल्लंघन

अस्पताल ने मिशा को इस इसी नियम के तहत सर्टिफिकेट में जॉइनिंग के लिए अयोग्य बताया है. लेकिन उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस नियम को असंवैधानिक कहते हुए गहरी नाराजगी व्यक्त की है.

जस्टिस पंकज पुरोहित ने राज्य सरकार की कार्रवाई को महिलाओं के प्रति भेदभाव माना है. कोर्ट ने कहा कि ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन है. कोर्ट ने आगे कहा,

“जब नियुक्ति के बाद महिला गर्भवती होती है तो उसे मैटरनिटी लीव मिलती है. लेकिन ताज्जुब की बात है कि महिलाओं की नियुक्ति के समय अगर वो गर्भवती हों तो नौकरी जॉइन नहीं कर सकती.” 

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हाई कोर्ट ने मिशा उपाध्याय की नियुक्ति तुरंत कराने का फैसला देते हुए इसे देश के लिए महत्वपूर्ण मैसेज बताया. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के साथ उनकी गर्भावस्था की स्थिति के आधार पर भेदभाव न किया जाए.

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