अमेरिका के मिशिगन की रहने वाली जेनिफर फ्लेवेलेन 36 साल की थीं, जब उनका कार एक्सीडेंट हुआ. डॉक्टर ने बताया था कि वो कोमा में चली गई हैं. 5 साल तक जेनिफर कोमा में रहीं. लेकिन उनके परिवार ने हार नहीं मानी. उनकी मां और बच्चे हर रोज़ हॉस्पिटल आते. जेनिफर से बातें करते. अपनी जिंदगी में होने वाले हर नए अनुभव साझा करते. इसी कड़ी में एक दिन जेनिफर कोमा से जाग उठीं. किस बात पर? अपनी मां के एक जोक पर.
5 साल कोमा में थी बेटी, एक दिन मां के जोक पर खिलखिला कर जाग उठी
एक कार एक्सीडेंट के कारण महिला कोमा में चली गई थी. लेकिन परिवार ने हार नहीं मानी. परिवार सालों तक हॉस्पिटल आता रहा, अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की बातें करता रहा. इसी कड़ी में एक दिन महिला कोमा से जाग उठी.

जी हां, जेनिफर की मां पैगी मीन्स हमेशा की तरह उनसे बात कर रही थीं. उन्होंने अपनी बेटी से कुछ मजाक किया और चमत्कार हो गया. 5 साल से कोमा में रही जेनिफर उन्हें हंसती नज़र आईं. जेनिफर की ये कहानी इंस्टाग्राम पेज goodnews_movement पर बताई गई है.
People मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में, जेनिफर की मां पैगी मीन्स ने उस दिन की बात बताई है, जब कोमा में गई जेनिफर अचानक उनकी बात पर हंसने लगी थीं. पैगी मीन्स ने कहा,
"जब वह उठी, तो पहले उसे देखकर मैं डर गई थी क्योंकि वो हंस रही थी और उसने (बीते 5 सालों में) ऐसा कभी नहीं किया था."
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जेनिफर की मां इसे अपना सपना सच होना बताती हैं. उनका ये सपना 25 अगस्त, 2022 को सच हुआ था. अब जेनिफर अपनी स्पीच और मूवमेंट को पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. वो अपने बच्चों के साथ वक्त बिता रही हैं. वो अपने बेटे जूलियन का फुटबॉल मैच देखने गई थीं. जूलियन बताते हैं कि वो 11 साल के थे, जब उनकी मां कोमा में चली गई थीं. वो कहते हैं,
"मां मेरी सबसे बड़ी सपोर्टर थीं. इसलिए उनका एक बार फिर फुटबॉल मैच पर आकर मुझे प्रोत्साहित करना, सपने जैसा था."
जेनिफर की मां बताती हैं कि उस दिन जेनिफर कोमा से जागीं जरूर, लेकिन वो बोल नहीं सकती थीं. कोमा से निकलने के शुरुआती दिनों में जेनिफर बहुत सोती थीं. लेकिन धीरे-धीरे वो मजबूत होती जाएंगी और अधिक देर तक जागेंगी, ऐसी उम्मीद उनकी मां को है.
मिशिगन के मैरी फ्री बेड रिहैबिलिटेशन हॉस्पिटल में जेनिफर के डॉक्टर राल्फ वांग बताते हैं कि जेनिफर का कोमा से निकलना एक दुर्लभ मामला है. सिर्फ कोमा से उठना नहीं, बल्कि इस कदर प्रोग्रेस करना भी दुर्लभ है. उनके मुताबिक ऐसा सिर्फ 1 से 2 फीसदी मरीजों के साथ होता है.