केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए नई यूनिफाइड पेंशन स्कीम (Unified Pension Scheme) UPS को मंजूरी मिल गई है. पिछली नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) को लेकर सरकार को काफी विरोध का सामना करना पड़ रहा था. कर्मचारी ओल्ड पेंशन वापस (OPS) लाने की मांग कर रहे थे. इसी कड़ी में सरकार कर्मचारियों के लिए नई स्कीम ले आई. इसकी घोषणा के साथ ही हर तरफ चर्चा है कि क्या वाकई UPS पिछली पेंशन स्कीमों से बेहतर है? क्या ये स्कीम OPS की मांग कर रहे कर्मचारियों की समस्या सुलझा देगी? इन सवालों का जवाब जानने के लिए तीनों स्कीमों को विस्तार से समझना होगा.
NPS और OPS से कितनी अलग है UPS? इस पेंशन स्कीम ने कर्मचारियों की टेंशन खत्म कर दी?
UPS- Unified Pension Scheme को नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) के समांतर पेश किया गया है. यानी सरकारी कर्मचारियों के लिए NPS और UPS चुनने का विकल्प रहेगा. क्या ये नई स्कीम कर्मचारियों की नाराजगी दूर करेगी और क्या इससे OPS की मांग बंद हो सकती है?

इसमें सरकारी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन के लिए एक भी पैसा देना नहीं पड़ता था. सीधा-सीधा गणित था कि नौकरी के आखिरी महीने में जो भी सैलेरी मिलती थी उसका आधा यानी 50% पेंशन बन जाती थी. अगर लास्ट सैलरी एक लाख है तो कर्मचारी को हर महीने 50,000 रुपये पेंशन मिलेगी. इसमें सर्विस के दौरान कर्मचारियों की सैलेरी से कोई पैसा नहीं कटता था. रिटायरमेंट के बाद कर्मचारियों को पेंशन राशि के साथ साल में दो बार महंगाई भत्ते में संशोधन का भी फायदा मिलता था. बस एक शर्त थी कि सर्विस कम से कम 10 साल की होनी चाहिए.
सब ठीक चल रहा था. फिर सरकार नई पेंशन स्कीम लाई.
31 दिसंबर, 2004 के बाद जिन भी सरकारी कर्मचारियों की भर्ती हुई, केंद्र सरकार ने तय किया कि पेंशन के लिए उनकी बेसिक सैलरी में से हर महीने 10% काटा जाएगा. सरकार ने तय किया कि जितनी रकम कर्मचारियों की सैलेरी से कटेगी, उतनी ही रकम सरकार की ओर से भी जमा की जाएगी. हालांकि बाद में मोदी सरकार ने सरकार का हिस्सा 10 से बढ़ाकर 14 फीसदी कर दिया. जब ये योजना शुरू हुई, तो केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए डिजाइन की गई थी. फिर 2009 में इसे भारत के सभी नागरिकों के लिए खोल दिया गया.
नई पेंशन स्कीम के तहत रिटायरमेंट के बाद कितना पैसा मिलेगा ये फिक्स नहीं था. क्योंकि इकट्ठा हुए पैसों पर कोई निश्चित ब्याज नहीं तय किया गया. तय हुआ कि इन पैसों को अलग-अलग स्कीम्स के तहत बाजार में लगाया जाएगा. इक्विटी, डेट या सरकारी बॉन्ड्स में. माने इकट्ठा हुए पैसे पर मार्केट के हिसाब से ब्याज जुड़कर जो भी पैसा बनेगा, उसके हिसाब से ही मासिक पेंशन तय होगी. तो इस चक्कर में पेंशन के पैसे पर रिस्क आ गया.
OPS vs NPSOPS के तहत सैलेरी में से पैसा कटाए बिना 50 फीसदी पेंशन की गारंटी थी, लेकिन NPS इससे एकदम उलट है. सैलेरी में से पैसा भी कटेगा और रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन की रकम भी तय नहीं होगी. पहली स्कीम में फायदा था तो दूसरी में योगदान और निवेश. NPS के तहत छह महीने में मिलने वाला महंगाई भत्ता भी बंद कर दिया गया. लेकिन ऐसा क्यों किया गया?
दरअसल, पुरानी पेंशन स्कीम केंद्र और राज्य सरकार के लिए एक नुकसान का सौदा थी. ट्रजेरी पर बोझ था क्योंकि पेंशन के लिए कोई पैसा नहीं इकट्ठा था जो लगातार बढ़ सके. बढ़ती महंगाई के साथ हर साल ज्यादा पैसा भी देना पड़ रहा था. इस लिहाज से सरकार को NPS में फायदा दिखा और कर्मचारियों को नुकसान.
इस स्कीम का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ. कर्मचारियों का तर्क था कि नई पेंशन स्कीम के तहत पेंशन शेयर मार्केट पर निर्भर होती है और शेयर मार्केट में फायदा नहीं हुआ तो पेंशन कम हो जाएगी. हालांकि सरकार की तरफ से कहा गया कि निवेश के चलते कर्मचारियों को पेंशन की रकम में कुछ पैसा बढ़ाकर भी मिल सकता है.
फिर आई UPS. यूनिफायड पेंशन सर्विस. ये स्कीम भी योगदान वाले फॉर्मूले पर आधारित है. UPS में कर्मचारी अपनी बेसिक सैलरी का 10% ही कंट्रीब्यूट करेगा, लेकिन सरकार अपनी तरफ से कर्मचारी की बेसिक सैलरी का साढ़े 18% कंट्रीब्यूट करेगी.
इसके अलावा UPS में पेंशन की रकम भी तय की गई है. UPS के तहत कर्मचारी को मिलने वाली पेंशन उसके सर्विस के समय पर डिपेंड करेगी. अगर 25 साल की सर्विस हो गई है तो आखिरी 12 महीनों की जो सैलेरी है, उसके एवरेज बेसिक पे का 50 फीसदी पैसा पेंशन के तौर पर मिलेगा. अगर 25 साल से कम और 10 साल से ज्यादा का समय हुआ है तब पेंशन की रकम सर्विस के सालों के हिसाब से तय की जाएगी. नई योजना के तहत रिटायरमेंट के बाद हर महीने कम से कम 10 हजार रुपये पेंशन की गारंटी दी गई है.
UPS में कर्मचारी के परिवार को भी ध्यान में रखा गया है. अगर किसी कर्मचारी की मौत हो जाती है तो उनके परिवार को पेंशन मिलेगी. कर्मचारी को जो पेंशन मिल रही थी, उस रकम का 60 फीसदी हिस्सा परिवार को मिलेगा. इससे कर्मचारी के डिपेंडेंट्स की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित होगी. पिछली स्कीमों में ये रकम तय नहीं थी.
ये स्कीम 1 अप्रैल 2025 से लागू की जाएगी. साल 2004 के बाद रिटायर हुए 23 लाख कर्मचारियों को इस स्कीम का फायदा मिलेगा. कर्मचारियों को ऑप्शन दिया गया है कि वो पहले से चल रही NPS (नेशनल पेंशन स्कीम) या UPS में से किसी एक को चुन सकते हैं.
NPS vs UPSNPS में जहां सरकार का योगदान 14 फीसदी था वो UPS में बढ़कर साढ़े 18 फीसदी हो जाएगा. NPS में रिटायरमेंट के बाद कितना पैसा मिलेगा, वो रकम तय नहीं थी क्योंकि इकट्ठा हुआ पैसा मार्केट में लगाया जा रहा था. UPS में पेंशन की रकम तय है. ये कर्मचारी के सर्विस के समय के आधार पर तय की जाएगी. यहां पर देखा जाए तो सरकार ने कर्मचारियों की फिक्स पेंशन वाली समस्या दूर करने की कोशिश की है.
कुछ समानताएं भी हैंOPS की तरह UPS में भी सैलेरी की 50 फीसदी रकम बतौर पेंशन हर महीने दी जाएगी. NPS की तरह ही UPS में भी कर्मचारी को सैलेरी से 10 फीसदी पैसा पेंशन की हिस्सेदारी के तौर पर कटवाना होगा. हर तीन साल पर सरकार अपनी हिस्सेदारी में बदलाव कर सकती है.
मोटा-माटी जो समझ आता है वो ये है कि UPS के जरिए सरकार और सरकारी कर्मचारियों के लिए एक बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है. इससे सरकारी पैसे पर OPS जितना बोझ नहीं पड़ेगा. साथ ही NPS को लेकर कर्मचारियों की जो समस्या थी, उनमें से कुछ का निबटारा भी करने की कोशिश भी की गई है.
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