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UGC के नियमों में ऐसा क्या बदलने वाला है? जिसने राज्य सरकारों के माथे पर बल डाल दिया है

UGC के नए ड्राफ्ट पर विपक्षी दल भड़क गए हैं. हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक ने संयुक्त रूप से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से UGC के नए नियमों को वापस लेने की मांग की है.

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नए UGC मसौदे के विरोध में विपक्ष के नेताओं के साथ जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करते राहुल गांधी. (PTI)

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने ड्राफ्ट रेगुलेशंस 2025 (Draft Regulations 2025) पेश किया. नए ड्राफ्ट का उद्देश्य भारत के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शैक्षणिक स्टाफ की नियुक्ति और पदोन्नति की प्रक्रिया में बदलाव लाना है. हालांकि, इन प्रस्तावित बदलावों को लेकर कई राज्यों ने विरोध जताया है और इन्हें राज्यों के अधिकारों का हनन बताया है.

UGC के नए नियम

कुलपति की नियुक्ति: इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों (Vice Chancellors) की नियुक्ति का अधिकार चांसलर (Governor) को दिया जाएगा. अधिकतर राज्यों में चांसलर, राज्यपाल होते हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. इससे राज्य सरकारों की भूमिका कुलपति नियुक्ति में सीमित हो जाएगी. कहा जा रहा है कि इससे राज्यों की स्वायत्तता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. UGC के नए नियमों के तहत स्टेट विश्वविद्यालयों में नॉन-टीचिंग एक्सपीरियंस वाले लोगों को भी कुलपति बनाया जा सकता है. इस प्रस्ताव पर कई राज्य सरकारों ने कड़ी आपत्ति जताई है.

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फैकल्टी भर्ती और प्रमोशन: नए नियमों के तहत शिक्षकों की नियुक्ति और पदोन्नति की प्रक्रिया में बदलाव किया गया है. अब API (Academic Performance Indicator) स्कोर प्रणाली को हटा दिया गया है, ताकि उम्मीदवारों का मूल्यांकन ज्यादा व्यापक रूप से किया जा सके. शिक्षकों के चयन के लिए अनुभव और योग्यताओं को प्राथमिकता दी जाएगी.

पीएचडी की अनिवार्यता: असिस्टेंट प्रोफेसर (लेवल 12), एसोसिएट प्रोफेसर (लेवल 13A) और प्रोफेसर (लेवल 14) के प्रमोशन के लिए पीएचडी अनिवार्य होगी. जिन उम्मीदवारों की Ph.D का विषय उनके स्नातक या परास्नातक (UG/PG) से अलग होगा, उनकी योग्यता उनके पीएचडी विषय के आधार पर तय होगी.

विरोध में उतरा विपक्ष

यूजीसी के नए ड्राफ्ट पर विपक्षी दल भड़क गए हैं. हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक ने संयुक्त रूप से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से यूजीसी के नए नियमों को वापस लेने की मांग की है. राज्यों की प्रमुख आपत्तियां हैं कि नए नियमों से राज्यों के अधिकारों का हनन होगा. राज्य सरकारों का कहना है कि राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति पूरी तरह से केंद्र के हाथों में देने से उनकी स्वायत्तता खत्म हो जाएगी. संविधान के संघीय ढांचे (Federal Structure) पर खतरा पैदा होगा. राज्य सरकारों का तर्क है कि शिक्षा एक समवर्ती सूची (Concurrent List) का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार को इसमें दखल नहीं देना चाहिए.

डीएमके (DMK) की छात्र इकाई द्वारा यूजीसी (UGC) के नए मसौदा नियमों के खिलाफ आयोजित विरोध प्रदर्शन में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी गुरुवार को शामिल हुए. इस विरोध प्रदर्शन में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और सांसद कनिमोझी करुणानिधि भी शामिल हुए. यह प्रदर्शन दिल्ली के जंतर मंतर पर आयोजित किया गया था. उन्होंने कहा कि यह मसौदा देश की शिक्षा प्रणाली पर RSS की विचारधारा थोपने का प्रयास है.

राहुल गांधी ने नए नियमों का विरोध करते हुए कहा,

"हम कांग्रेस और INDIA गठबंधन में बिल्कुल स्पष्ट हैं कि हर राज्य का सम्मान होना चाहिए. हर राज्य का इतिहास, भाषा और परंपरा समान रूप से देखी जानी चाहिए."

उन्होंने आगे कहा,

"हमारे चुनावी घोषणापत्र में पहले ही कहा गया है कि शिक्षा को फिर से राज्य सूची (State List) में लाया जाएगा और हम इसके लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं."

राहुल गांधी ने RSS पर निशाना साधते हुए कहा,

"हम आरएसएस के भारत के प्रति दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करते. चाहे वे कितनी भी कोशिश कर लें, इस देश की जनता आरएसएस की विचारधारा को स्वीकार नहीं करेगी."

दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी भाजपा और RSS की आलोचना करते हुए कहा, “बीजेपी-RSS राज्य सरकारों की सारी शक्तियां छीनना चाहते हैं. वे राज्यों पर पूरा नियंत्रण हासिल करना चाहते हैं, जिसे हम स्वीकार नहीं करेंगे.”

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