सुप्रीम कोर्ट में 16 अक्टूबर को बिहार जातिगत जनगणना से जुड़ा एक मामला पहुंचा. कोर्ट ने सर्वे में ट्रांसजेंडर (Supreme Court on Transgender) को अलग जाति बताने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि ट्रांसजेंडर समूह कोई जाति नहीं है. इन्हें अलग जाति बताना संभव नहीं हो सकता.
बिहार जातिगत सर्वे: सुप्रीम कोर्ट ने 'ट्रांसजेंडर' को जाति मानने से क्यों इनकार किया?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "ट्रांसजेंडर्स के साथ अलग व्यवहार किया जा सकता है, साथ ही कुछ लाभ दिए जा सकते हैं. लेकिन ये सब उन्हें एक अलग जाति मानकर नहीं दिया जा सकता."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाभ पहुंचाने के लिए ट्रांसजेंडर्स के साथ विशेष व्यवहार किया जा सकता है. लेकिन उन्हें इसके लिए एक अलग जाति के रूप में नहीं दिया जा सकता.
बिहार सरकार ने हालिया जातिगत सर्वे में ‘हिजड़ा’, ‘किन्नर’, ‘कोठी’ और ट्रांसजेंडर्स को शामिल किया था. इसी के खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. कानूनी मामलों से जुड़ी न्यूज वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक याचिकाकर्ता की मांग थी कि सर्वे में ट्रांसजेंडर्स को अलग जाति के रूप में शामिल किया जाए. लेकिन कोर्ट ने इस मांग पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर्स के डेटा (सामाजिक-आर्थिक स्थिति) के लिए बिहार सरकार ने सर्वे में अलग से कॉलम बनाया है.
बेंच ने कहा कि ट्रांसजेंडर कभी कोई जाति नहीं रही और इसको अलग जाति मानना संभव नहीं है. उनके साथ विशेष व्यवहार रखते हुए कुछ लाभ दिए जा सकते हैं, लेकिन एक जाति के रूप में नहीं. क्योंकि इसमें अलग-अलग जातियों के ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी हो सकते हैं.
जनगणना के आंकड़ेबिहार में जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा आबादी अति-पिछड़ा वर्ग की है - करीब 36 फीसदी. वहीं पिछड़ा वर्ग 27 फीसदी है. अनुसूचित जाति 19 फीसदी से ज्यादा है. 15.52 फीसदी सवर्ण (अनारक्षित) हैं और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति के लोग हैं.
बिहार सरकार में विकास आयुक्त विवेक सिंह ने आंकड़े जारी करते हुए बताया था कि सरकार ने जातीय जनगणना का काम पूरा कर लिया है. इसमें राज्य की जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 निकल कर आई है. आंकड़ों के मुताबिक बिहार में यादव 14 फीसदी, ब्राह्मण 3.66 फीसदी, राजपूत 3.45 फीसदी, कुर्मी 2.87 फीसदी, मुसहर 3 फीसदी और भूमिहार 2.86 फीसदी हैं.
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