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सद्दाम हुसैन की कब्र खोदकर कौन निकाल ले गया उसकी लाश?

लोग कह रहे हैं कि सद्दाम की बेटी चुपके से आई और पिता का कंकाल निकालकर ले गई. कुछ कह रहे हैं ISIS ने कब्र खोदी.

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30 दिसंबर, 2006. इसी दिन सुबह के वक्त इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को फाांसी दी गई थी. सद्दाम की लाश उसके गांव में बने एक मकबरे के अंदर दफना दी गई. इराकी फौज और ISIS की लड़ाई में ये मकबरा टूट-फूट गया. लाश भी गायब हो गई. अब इसके पीछे कई तरह की बातें हो रही हैं. कुछ कह रहे हैं कि सद्दाम की बेटी चुपके से एक प्लेन लेकर आई और अपने पिता का कंकाल निकालकर जॉर्डन ले गई.
क्या सद्दाम हुसैन की लाश कब्र से गायब हो गई? क्या कोई सद्दाम की लाश को कब्र खोदकर निकाल ले गया? सद्दाम हुसैन के कंकाल के साथ हुआ क्या? क्या जॉर्डन में रह रही सद्दाम की बेटी चुपके से आकर अपने पिता की लाश साथ ले गई?
30 दिसंबर, 2006. इसी दिन सुबह के वक्त इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को फांसी दी गई थी. 1979 में इराक की सत्ता सद्दाम के हाथ में आई. 2003 तक वो इराक का तानाशाह बना रहा. 2003 में अमेरिका और ब्रिटेन ने इराक पर हमला किया. उनका कहना था कि सद्दाम खतरनाक हथियार बनाने में लगा है. सद्दाम हार गया. उसे पकड़कर उसके ऊपर मुकदमा चलाया गया. सजा मुकर्रर हुई. इराक की राजधानी बगदाद में उसे फांसी दी गई. फांसी के बाद अमेरिकी सेना के एक खास हेलिकॉप्टर में रखकर उसके लाश को अल-अवजा पहुंचाया गया. इसी गांव में सद्दाम पैदा हुआ था. बादशाह और सुल्तान अपने जीते-जी अपना मकबरा बना जाते थे. ऐसे ही सद्दाम ने भी सालों पहले यहीं गांव में अपना मकबरा बनाया था. सफेद संगमरमर से बना. इसी के अंदर उसकी लाश दफनाई गई. सद्दाम के दो बेटों (उदय और कुशय), कुशय का बेटा मुस्तफा ये सब पहले ही मारे जा चुके थे. इनकी लाशों को भी उनकी कब्रों से निकालकर लाया गया और यहीं दफ्न कर दिया गया. और भी कुछ रिश्तेदार यहीं दफनाए गए.
ये सद्दाम हुसैन की कब्र है. शिया समुदाय नहीं चाहता था कि सद्दाम की लाश किसी मकबरे में दफ्न की जाए. उन्हें डर था कि ये जगह किसी तीर्थ का रूप ले लेगी. ऐसा हुआ भी. इसके अलावा सद्दाम से जुड़े सारे प्रतीकों पर बैन लगा दिया गया था.
ये सद्दाम हुसैन की कब्र है. शिया समुदाय नहीं चाहता था कि सद्दाम की लाश किसी मकबरे में दफ्न की जाए. उन्हें डर था कि ये जगह किसी तीर्थ का रूप ले लेगी. ऐसा हुआ भी. इसके अलावा सद्दाम से जुड़े सारे प्रतीकों पर बैन लगा दिया गया था.

सद्दाम के पिता की कब्र के साथ भी ऐसा ही हुआ था 2015 में तिकरित पर कब्जे के लिए इराकी फौज और ISIS के बीच लड़ाई हुई. खबर आई कि ISIS ने इस मकबरे के ऊपर अपने स्नाइपर्स को तैनात कर दिया था. इराकी फौज ने उनके ऊपर बम गिराया और इसी बम ने पूरी इमारत को बर्बाद कर दिया. हशीद अल-शाबी गठबंधन के शिया लड़ाके यहां ISIS से लड़ रहे थे. उनका भी कहना है कि लड़ाई के दौरान मकबरा तहस-नहस हो गया. कुछ लोगों का कहना है कि सद्दाम की बेटी हाला एक निजी विमान में बैठकर यहां आई. वो अपने पिता की लाश चुपके से अपने साथ जॉर्डन ले गई. मगर जानकार इससे इनकार कर रहे हैं. उनका कहना है कि हाला कभी लौटकर इराक नहीं गई. सद्दाम के पिता हुसैन अल-माजिद की कब्र के साथ भी ऐसा ही हुआ था. 2014 में खबर आई कि ISIS ने उस कब्र को बम से उड़ा दिया.
ये अल-फिरदौस स्क्वैयर है. इराक की राजधानी बगदाद का एक हिस्सा. 9 अप्रैल, 2003 को अमेरिकन मरीन्स ने यहां पर सद्दाम हुसैन की मूर्ति नीचे गिरा दी थी.
ये अल-फिरदौस स्क्वैयर है. इराक की राजधानी बगदाद का एक हिस्सा. 9 अप्रैल, 2003 को अमेरिकन मरीन्स ने यहां पर सद्दाम हुसैन की मूर्ति नीचे गिरा दी थी.

2014 में ही कबीलेवालों ने लाश निकाल ली थी! सद्दाम अल्बु नासिर कबीले का था. उसके कबीलेवालों का कहना है कि लड़ाई के बाद शिया लड़ाकों ने मकबरे को तहस-नहस कर दिया. अगस्त 2014 की इस खबर के मुताबिक, शिया लड़ाकों ने सद्दाम के मकबरे में घुसकर तोड़-फोड़ की और वहां आग लगा दी. सब बर्बाद कर दिया. तस्वीरों को भी नहीं छोड़ा. तब सद्दाम के कबीले वालों (अल्बु नासिर ट्राइब) ने कहा था कि उन्हें पहले से ही अंदाजा था कि ऐसा कुछ हो सकता है. इसीलिए एहतियात बरतते हुए वो करीब आठ महीने पहले ही सद्दाम की लाश को किसी सुरक्षित जगह पर ले गए थे. कहां ले गए, ये नहीं बताया. बस ये कहा कि लाश इतने हिफाजत से रखी गई है कि दुश्मनों के हाथ नहीं लग सकती. इसका मतलब है सद्दाम की लाश को उसकी बेटी नहीं ले गई.
2015 में तिकरित पर कब्जे के लिए इराकी फौज और ISIS के बीच लड़ाई हुई. खबर आई कि ISIS ने इस मकबरे के ऊपर अपने स्नाइपर्स को तैनात कर दिया था. इराकी फौज ने उनके ऊपर बम गिराया और इसी बम ने पूरी इमारत को बर्बाद कर दिया.
2015 में तिकरित पर कब्जे के लिए इराकी फौज और ISIS के बीच लड़ाई हुई. खबर आई कि इसी लड़ाई के दौरान इराकी फौज ने मकबरे पर बम गिराया.

सद्दाम के जन्मदिन पर यहां मेला लगता था 28 अप्रैल को सद्दाम का जन्मदिन होता है. उसकी मौत के बाद हर साल इस तारीख पर उसके समर्थक यहां उसकी कब्र पर आते थे. जैसे सूफी संतों की मजार पर सालाना उर्स होता है. वैसे ही. ये एक किस्म का तीर्थ था उनके लिए. बच्चे, औरतें, आदमी. स्कूली बच्चे. फिर खबर आई कि इराकी सरकार ने लोगों के यहां आने पर बैन लगा दिया. फिर पता चला कि ग्रुप्स के आने पर बैन है. अकेले-दुकेले आने वालों पर कोई बैन नहीं है. इसके बाद 2014 में जब ISIS इराक में पैठा, तब ऐसी किसी परंपरा का कोई स्कोप ही नहीं था.
इराक के शिया सद्दाम से नफरत करते हैं. सद्दाम जब तक जिंदा था, उसने शियाओं पर बहुत जुल्म किया. शिया और कुर्द, दोनों उसे शैतान मानते थे. सुन्नी समुदाय में सद्दाम का बहुत मान था. सुन्नी अब भी सद्दाम को अपना हीरो मानते हैं.


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