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"भगवान को राजनीति से दूर रखिए"- तिरुपति लड्डू विवाद पर SC ने आंध्र सरकार को खूब सुनाया

Tirupati Laddu Row: सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) से पूछा है कि इस बात का सबूत कहां है कि मंदिर का लड्डू बनाने में मिलावटी घी का इस्तेमाल किया गया.

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सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति मंदिर 'लड्डू विवाद' को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर 30 सितंबर को लगभग एक घंटे सुनवाई की. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर 'लड्डू विवाद' (Tirupati Laddu Controversy) पर 30 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के हालिया बयान की आलोचना की है. बता दें कि आंध्र प्रदेश के CM ने बयान दिया था कि पिछली सरकार के कार्यकाल में तिरुपति मंदिर के लड्डू में जानवर की चर्बी वाला घी इस्तेमाल किया गया. कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में जब स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) की जांच चल रही थी, तो इस दौरान सार्वजनिक बयान नहीं दिया जाना चाहिए था. बेंच ने ये भी कहा कि भगवान को राजनीति से दूर रखना चाहिए. 

दरअसल, तिरुपति मंदिर लड्डू विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं. इन याचिकाओं में मांग की गई है कि आंध्र प्रदेश सरकार ने मंदिर के लड्डू में मिलावट का जो आरोप लगाया है, उसकी कोर्ट की निगरानी में जांच हो. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लगभग एक घंटे सुनवाई की. 

'ऐसा बयान देना सही नहीं था'

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा,

"ये याचिका पूरी दुनिया में रहने वाले करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ी है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया था कि पिछले शासन के दौरान तिरुपति के लड्डू बनाने के लिए जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया जा रहा था. हालांकि, कुछ प्रेस रिपोर्ट्स के मुताबिक तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने भी बयान दिया था कि ऐसे मिलावटी घी का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया. याचिकाएं स्वतंत्र जांच और धार्मिक ट्रस्टों के मामलों और विशेष रूप से प्रसाद के निर्माण को रेगुलेट करने के निर्देश के लिए दायर की गई हैं."

कोर्ट ने आगे कहा,

“TTD की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा के अनुसार, जून में सप्लाई किए गए घी और 4 जुलाई तक उसी सप्लायर के घी को एनालिसिस के लिए नहीं भेजा गया था. जबकि, 6 और 12 जुलाई को दो टैंकरों का घी NDDB (National Dairy Development Board) को भेजा गया था. ये सबमिट किया गया है कि सभी चार सैंपल्स में घी मिलावटी पाया गया. साथ ही, ये भी बताया गया कि लड्डू बनाने में वो घी इस्तेमाल किया गया था, जो जून में और 4 जुलाई तक सप्लाई हुआ था.”

बेंच ने आगे टिप्पणी की,

“बेशक, राज्य सरकार के अनुसार भी, जांच जरूरी थी और 25 सितंबर की FIR की जांच के लिए SIT बनाई गई. इसलिए ये कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया बयान FIR और SIT बनाए जाने से पहले का था क्योंकि CM ने 18 सितंबर को सार्वजनिक रूप से बयान दिया था. हम इस बात पर विचार कर रहे हैं कि जब जांच चल रही थी, तो ऊंचे पद बैठे व्यक्ति की ओर से ऐसा बयान देना उचित नहीं था, जिससे करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं.”

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता से मदद मांगी है. पूछा है कि इस पर राज्य की SIT की जांच जारी रहनी चाहिए या किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच होनी चाहिए.

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तिरुपति लड्डू विवाद को लेकर कोर्ट के सामने 30 सितंबर को तीन याचिकाएं लिस्ट की गई थीं. याचिका दायर करने वालों में BJP नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, राज्यसभा सांसद और पूर्व TTD अध्यक्ष वाईवी सुब्बा रेड्डी, इतिहासकार डॉ. विक्रम संपत और आध्यात्मिक प्रवचन देने वाले दुष्यंत श्रीधर शामिल हैं.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने 30 सितंबर की दोपहर 1 बजे मामले पर सुनवाई शुरू की. सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राजशेखर राव ने कहा,

"पब्लिक डोमेन में दावा किया गया कि प्रसाद की सामग्री मिलावटी थी. TTD  के अधिकारी ने खुद कहा है कि मिलावटी घी का कभी इस्तेमाल नहीं किया गया. इस मामले में निगरानी की जरूरत है. अगर देवता के प्रसाद पर कोई सवाल उठता है, तो इसकी जांच की जानी चाहिए."

राजशेखर राव ने आगे कहा,

“क्या किसी राजनीतिक हस्तक्षेप की मंजूरी दी जानी चाहिए? मैं इस बात से चिंतित हूं कि सार्वजनिक बयान को किस आधार पर एक स्पष्ट तथ्य के तौर पर पेश किया जाता है. बिना किसी सबूत के ये बयान देना कि प्रसाद मिलावटी है...परेशान करने वाला है. ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति की क्या जिम्मेदारी है? आज धर्म का मामला है, कल ये कुछ और हो सकता है.”

बेंच ने इसी तरह की मांग वाली दूसरी याचिकाओं के बारे में पूछा. इस पर एक और याचिका के तहत इस मामले में किसी रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाए जाने की मांग की गई.

कोर्ट ने पूछा- प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी?

आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि दायर की गई याचिकाएं मौजूदा सरकार पर हमले का प्रयास हैं. वहीं जस्टिस बीआर गवई ने रोहतगी से पूछा कि उनके पास ‘लड्डू में मिलावट’ के नतीजे पर पहुंचने के लिए कोई मटेरियल था. इस पर रोहतगी ने लैब रिपोर्ट का हवाला दिया. 

जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा,

“(रिपोर्ट) बिल्कुल स्पष्ट नहीं है. अगर आपने पहले ही जांच का आदेश दे दिया था, तो प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? रिपोर्ट जुलाई में आई, बयान सितंबर में आया.”

जस्टिस बीआर गवई ने भी प्रेस में जाने पर सवाल उठाते हुए कहा,

“आपने (मामले में) SIT का आदेश दिया. जांच के नतीजे आने तक, प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? आप हमेशा से ही ऐसे मामलों में पेश होते रहे हैं...ये दूसरी बार है. जब आप संवैधानिक पद पर होते हैं, तो आपसे ये अपेक्षा की जाती है कि आप...हम उम्मीद करते हैं कि भगवान को राजनीति से दूर रखा जाए.”

जस्टिल बीआर गवई ने आगे पूछा,

"क्या जो घी मानकों के अनुरूप नहीं पाया गया, उसका इस्तेमाल प्रसाद के लिए किया गया था?"

इस पर TTD की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने बताया कि इसकी जांच की जा रही है. लूथरा के इस जवाब पर जस्टिस गवई ने कहा,

"फिर तुरंत प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? आपको धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की जरूरत है. इस बात का सबूत कहां है कि मिलावटी घी लड्डू बनाने में इस्तेमाल किया गया था?"

सिद्धार्थ लूथरा ने बताया कि लोगों ने लड्डू का स्वाद ठीक नहीं होने की शिकायत की थी. इस पर जस्टिस बीआर गवई ने पूछा कि क्या ‘अलग स्वाद वाले लड्डू’ को NDDB के पास मिलावट की जांच के लिए भेजा गया था. 

‘रिजल्ट फॉल्स पॉजिटिव हो सकता है’

इसके बाद बेंच ने TTD के वकील से उस रिपोर्ट के डिस्क्लेमर को पढ़ने के लिए कहा जिसके आधार पर लड्डू में मिलावट का बयान दिया गया. लूथरा ने रिपोर्ट से पढ़ा कि फॉल्स पॉजिटिव नतीजा भी मिल सकता है. 

जस्टिस विश्वनाथन ने सवाल,  ‘क्या इसमें दूसरी राय नहीं लेनी चाहिए थी?’ उन्होंने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि NDDB की रिपोर्ट के मुताबिक जिस घी में मिलावट की बात कही गई, वो घी लड्डू में इस्तेमाल किया गया.

वहीं सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने कहा,

“ये आस्था का मामला है. अगर इस (मिलावटी) घी का इस्तेमाल किया गया था, तो ये अस्वीकार्य है. ये देखा जाना चाहिए कि कौन जिम्मेदार था...आखिरकार, इसकी जांच होनी चाहिए.”

जस्टिस बीआर गवई ने सॉलिसिटर जनरल से कहा,

"हम चाहते हैं कि आप इस बात की जांच करें कि क्या इस SIT द्वारा जांच की जानी चाहिए?"

उन्होंने ये भी कहा कि अगर इस मामले में SIT का आदेश दिया गया था, तो जांच चलने के दौरान कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया जाना चाहिए था.

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