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इस स्कूल में सिर्फ एक स्टूडेंट, सरकार ने लाखों खर्च कर टीचर, रसोइया, सफाईकर्मी का इंतजाम किया

कुछ लोग इसको लेकर सवाल उठा रहे हैं. तर्क इस मुहिम की निरंतरता को लेकर है, कि क्या ऐसा आगे भी होता रहेगा. उनका कहना है कि सरकार कितने दिन तक एक ही छात्र पर इतनी अधिक राशि खर्च कर पाएगी. हालांकि, कई ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने इस योजना का बचाव किया है.

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तेलंगाना में एक सरकारी स्कूल केवल एक छात्रा को पढ़ाने के लिए सालाना 12 लाख रुपये खर्च कर रही. (तस्वीर:आजतक)

तेलंगाना सरकार केवल एक छात्रा को पढ़ाने के लिए सालाना 12 लाख रुपये से अधिक खर्च कर रही है. वही, तेलंगाना जहां से 6 महीने पहले खबर आई थी कि 125 छात्रों को पढ़ाने के लिए केवल एक शिक्षक नियुक्त किए जाने पर अभिभावकों ने बवाल काट दिया. तेलंगाना के खम्मम जिले के नारापानेनिपल्ली गांव के इस सरकारी स्कूल में किसी जमाने में सैकड़ों छात्र पढ़ते थे. लेकिन प्राइवेट स्कूलों के बढ़ते प्रभाव के चलते यहां के छात्रों की संख्या कम होती चली गई. 2023-24 का शैक्षणिक वर्ष आते-आते हालत ये हो गई कि केवल एक छात्रा ने एडमिशन लिया है.

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टीचर के अलावा, रसोइया और सफाईकर्मी का भी प्रबंध

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल में कीर्तन नाम की छात्रा ने एडमिशन लिया है. वो चौथी कक्षा में पढ़ती हैं. सरकार ने उनके लिए एक टीचर को एक लाख 1,167 रुपये की मासिक तनख्वाह पर नियुक्त किया है. इसके अलावा, स्कूल में एक रसोइया और एक सफाईकर्मी को भी नियुक्त किया गया है. उन्हें हर महीने 3,000 रुपये की तनख्वाह मिलती है. सरकार स्कूल रखरखाव अनुदान के तहत 5,000 रुपये और खेल अनुदान के तहत 5,000 रुपये भी जारी करती है. यानी कुल मिलाकर, अकेली एक छात्रा पर साल का कुल खर्च 12.84 लाख पड़ रहा है.

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कई समर्थन में, तो कुछ ने उठाए सवाल

अब एक छात्र के हिसाब से देखा जाए तो सरकार पढ़ाई पर पर्याप्त खर्च कर रही है. लेकिन कुछ लोग इसको लेकर सवाल उठा रहे हैं. तर्क इस मुहिम की निरंतरता को लेकर है, कि क्या ऐसा आगे भी होता रहेगा. उनका कहना है कि सरकार कितने दिन तक एक ही छात्र पर इतनी अधिक राशि खर्च कर पाएगी. हालांकि, कई ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने इस योजना का बचाव किया है. ऐसे लोगों ने इस मुहिम का बचाव ग्लोबल उदाहरण देकर किया है. जैसे कि चीन, जहां कथित तौर पर एक छात्र की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक ट्रेन चलाई थी.

रिपोर्ट के मुताबिक स्कूल की हेडमास्टर उमा ने संतुलन के साथ स्टैंड लिया है. उनका मानना है कि इस तरह का निवेश शिक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. लेकिन सरकारी स्कूलों में छात्रों का एडमिशन नहीं लेना एक चिंता का विषय है. उन्होंने यह भी कहा कि गांव के लोगों की प्राथमिकता अंग्रेजी मीडियम के प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को भेजनी की होती है. ऐसे लोगों को लगता है कि प्राइवेट स्कूल उनके बच्चों के भविष्य संवारने के लिए अधिक फायदेमंद साबित होंगे.

वहीं, स्थानीय निवासियों की भी राय इससे जुदा नहीं है. उनका भी मानना है कि कई माता-पिता अपने बच्चों की अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों की तलाश कर रहे हैं.

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