मौका था 12 जुलाई को गुजरात के गांधीनगर में नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (NFSU) के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर रिसर्च एंड एनालिसिस ऑफ नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्स्टेंसेज के उद्घाटन का. अमित शाह ने बात की थर्ड डिग्री टॉर्चर पर. पहले भी इस पर बोल चुके हैं. फिल्मों में भी लोग थर्ड डिग्री की बात करते हुए सुनाई देते हैं. कोई बहुत ही घटिया फिल्म देखने चला जाए तो हॉल से निकल के कहता है क्या थर्ड डिग्री टॉर्चर था. हमने लोगों से पूछा कि थर्ड डिग्री टॉर्चर कहने पर उनके ध्यान में क्या आता है. तो हमें ये जवाब मिले:
बहुत मारते पीटते हैं.
नाखून उखाड़ लेते हैं.
भूखा-प्यासा रखते हैं.
आंख में मिर्ची डाल देते हैं.
लेकिन असल में इस थर्ड डिग्री टॉर्चर में होता क्या है?
इसकी कोई गाइडलाइन नहीं है. आपको कहीं ये लिखा हुआ नहीं मिलेगा किसी कोडबुक में. ये कोई टेक्नीकल टर्म नहीं है. टॉर्चर का मतलब प्रताड़ित करना होता है. डिक्शनरी की परिभाषा के अनुसार टॉर्चर का मतलब होता है किसी को बेतरह चोट पहुंचाना या दर्द देना ताकि उससे कुछ करवाया या उगलवाया जा सके. ये सज़ा के रूप में भी इस्तेमाल होता है.

टॉर्चर के फर्स्ट और सेकण्ड डिग्री की बात कभी होती नहीं सुनी होगी आपने. इसकी वजह क्या है? (सांकेतिक तस्वीर: एमनेस्टी इंटरनेशनल)
इसमें थर्ड डिग्री कैसे आया?
एडविन जे हेनरी ने एक किताब लिखी. मेथड्स ऑफ टॉर्चर एंड एक्जेक्यूशन. 1966 में छप कर आई थी. इसमें एडविन बताते हैं:
कैदी या अभियुक्त को जुर्म कुबूल करवाने या जवाब दने के लिए मजबूर करने का जो तरीका है, वो स्पेनिश इन्क्विजिशन द्वारा इस्तेमाल होने वाले तरीकों से आया है. इसमें कई तरह के तरीके अपनाए जाते हैं. जैसे बेंत से लगातार जोर से मारना, भूखा-प्यासा रखना, सोने न देना, या शरीर की प्राकृतिक क्रियाएं (मल-मूत्र त्याग) करने से रोक देना.
(स्पेनिश इन्क्विजिशन एक ट्रिब्यूनल था. जिसे स्पेन के राजाओं ने बनाया था. पंद्रहवीं सदी में. कैथलिक धर्म को सख्ती से लागू करने के लिए. जो लोग धर्म बदलकर क्रिश्चियन बनते थे, वो कोई भूल चूक न करें और धर्म का पालन करें इसके लिए. जो नहीं करते थे, उन्हें बेहद क्रूर सज़ा दी जाती थी. ये लगभग 300 साल तक चला.)

कई सौ सालों तक टॉर्चर के अलग-अलग तरीके इस्तेमाल किए गए, कभी जानकारी निकलवाने के लिए तो कभी अपराध स्वीकार करवाने के लिए. (तस्वीर: विकिमीडिया)
जॉन स्वेन की लिखी किताब द प्लेजर्स ऑफ़ द टॉर्चर चेंबर (1931) में भी कमोबेश यही बात कही गई है कि टॉर्चर की डिग्री स्पेनिश इन्क्विजिशन से ही ली गई है. जूलियस ग्लेरस के अनुसार टॉर्चर की पांच डिग्रियां होती हैं.
# टॉर्चर की धमकी देना.
# टॉर्चर की जगह पर ले जाना.
#कपड़े उतार कर बांध देना.
#ऊपर उठाना.
#कलाइयों को रस्सी से बांधकर लटकाना, टखनों में वज़न बांध कर तेज़ झटके देना (इसे अंग्रेज़ी में squassation कहते हैं)
पिएरजॉर्जियो ओदिफ्रेदी इटली के मैथमटीशियन (गणितज्ञ) हुए. उनके हिसाब से मैथ में थर्ड डिग्री के इक्वेशन यानी क्यूबिक इक्वेशन सुलझाने मुश्किल होते हैं सेकण्ड डिग्री के मुकाबले. इसलिए मुश्किल टॉर्चर को थर्ड डिग्री टॉर्चर कहने के पीछे एक ये भी वजह है.
अमेरिका में थॉमस बायर्न्स और रिचर्ड सिल्वेस्टर नाम के दो पुलिस अफसर बहुत कड़क माने जाते थे. इनका नाम भी थर्ड डिग्री से जोड़कर देखा जाता है. सिल्वेस्टर ने टॉर्चर को तीन डिग्रियों में बांटा था. अरेस्ट थी पहली, जेल ले जाना दूसरी, और पूछताछ तीसरी.
1977 में छपी इंडिया टुडे की स्टोरी में बताया गया है कि थर्ड डिग्री के नाम पर पुलिस किस तरह के टॉर्चर के तरीके इस्तेमाल करती थी.
नवम्बर 4, 1976 को हिरमन लक्ष्मण पगर को आंध्र प्रदेश पुलिस ने नक्सली होने के आरोप में गिरफ्तार किया. हिरमन ने बताया,
29-30 नवंबर की रात को मुझे पास के लिंगापुर पुलिस कैम्प में ले जाया गया . यहां पर 15 पुलिस ऑफिसर्स ने मुझसे पूछताछ की. उनमें से एक मेरे हाथों पर कील वाले बूट पहन कर चल रहा था, और बाकी मुझे हर तरफ से पीट रहे थे. उसके बाद मुझे एक ‘हैदराबादी गोली खाने’ के लिए मजबूर किया गया. ये एक आदमी के हाथ के साइज़ की लाठी थी जिसके ऊपर ढेर सारा मिर्ची पाउडर लगा हुआ था. मेरे कपड़े उतार दिए गए और ये लाठी ये मेरे मलद्वार में घुसा दी गई. मैं लगभग आठ घंटे तक बेहोश रहा. मुझे लक्षतीपेट लॉकअप में ले जाया गया और मेरा एक हाथ कोठरी की खिड़की से बांध दिया गया. मुझे इसी अवस्था में रहने को मजबूर किया गया, जहां 15 दिनों तक न तो मैं ढंग से बैठ पाया और न ही सो पाया.

पुलिस के ऊपर ज्यादती के कई आरोप लगते आए हैं. लेकिन इन मामलों में डिटेल हमेशा बाहर नहीं आ पाती. (सांकेतिक तस्वीर: AP)
इसी स्टोरी के अनुसार अखिल बंग महिला समिति ने एक रिपोर्ट तैयार की. इसमें बताया गया कि किस तरह महिला कैदियों के साथ व्यवहार होता था.
कुछ महिलाओं को कलकत्ता के लाल बाज़ार पुलिस स्टेशन ले जाया गया. इनके कपड़े उतार दिए गए, शरीर के कई हिस्सों पर उन्हें जलाया गया. कुछ केसेज़ में वजाइना और मलद्वार में लोहे की स्केल डाली गई. ये भी आरोप लगे कि इंटेरोगेशन रूम में पुलिस के निर्देशों के अनुसार एक महिला अभियुक्त के साथ दूसरे क्रिमिनल्स ने लगातार रेप किया.
थर्ड डिग्री को अमित शाह ने पुराना तरीका कह दिया है. होना भी चाहिए. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पुलिस टॉर्चर का इस्तेमाल नहीं करती. कई खबरें अभी भी ऐसी आती हैं, जहां अभियुक्त पुलिस द्वारा ज्यादती की शिकायत करते हैं. इसको लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी कई कैम्पेन चलाए हैं जिनमें टॉर्चर को ख़त्म करने की बात कही गई.
2014 में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने रिपोर्ट किया कि 141 देश अभी भी टॉर्चर का इस्तेमाल करते हैं. 1948 में यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स ने टॉर्चर को गैर-कानूनी घोषित कर दिया था. यूएन कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर पर एक समझौता हुआ. उस पर भारत ने साइन कर दिए. 1997 में. लेकिन अब तक उसे स्वीकार नहीं किया है. यानी कि कोई कानूनी बाध्यता नहीं है उसको मानने की. साइन करने का मतलब सिर्फ इतना है कि समझौते से सहमति दे दी गई है. स्वीकार करने के बाद ही उस समझौते की शर्त कानूनी रूप से मान्य होंगी उस देश के लिए. इस वक़्त भारत के ऊपर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है.
# टॉर्चर की जगह पर ले जाना.
#कपड़े उतार कर बांध देना.
#ऊपर उठाना.
#कलाइयों को रस्सी से बांधकर लटकाना, टखनों में वज़न बांध कर तेज़ झटके देना (इसे अंग्रेज़ी में squassation कहते हैं)